श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – आज का रांझा… ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

(सन् 1972 में उन दिनों के लोकप्रिय अखबार वीर प्रताप द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में मेरी यह लघुकथा सर्वप्रथम रही थी। आज आपकी अदालत में – कमलेश भारतीय)

उन दोनों ने एक दूसरे को देख लिया था और मुस्कुरा दिए थे । करीब आते ही लड़की ने इशारा किया था और क्वार्टरों की ओर बढ़ चली । लड़का पीछे पीछे चलने लगा ।

लड़के ने कहा -तुम्हारी आंखें झील सी गहरी हैं ।

-हूं ।

लड़की ने तेज तेज कदम रखते इतना ही कहा ।

-तुम्हारे बाल काले बादल हैं ।

-हूं ।

लड़की तेज चलती गयी ।

बाद में लड़का उसकी गर्दन, उंगलियों, गोलाइयों और कसाव की उपमाएं देता रहा । लड़की ने हूं भी नहीं की ।

क्वार्टर खोलते ही लड़की ने पूछा – तुम्हारे लिए चाय बनाऊं ?

चाय कह देना ही उसकी कमजोर नस पर हाथ रख देने के समान है, दूसरा वह बनाये । लड़के ने हाँ कह दी । लड़की चाय चली गयी औ, लड़का सपने बुनने लगा । दोनों नौकरी करते हैं । एक दूसरे को चाहते हैं । बस । ज़िंदगी कटेगी ।

पर्दा हटा और ,,,,

लड़का सोफे में धंस गया । उसे लगा जैसे लड़की के हाथ में चाय का प्याला न होकर कोई रायफल हो, जिसकी नली उसकी तरफ हो । जो अभी गोली उगल देगी ।

-चाय नहीं लोगे ?

लड़का चुप बैठा रहा ।

लड़की से, बोली -मेरा चेहरा देखते हो ? स्टोव के ऊपर अचानक आने से झुलस गया । तुम्हें चाय तो पिलानी ही थी । सो दर्द पिये चुपचाप बना लाई ।

लड़के ने कुछ नहीं कहा । उठा और दरवाजे तक पहुंच गया ।

-चाय नहीं लोगे ?

लड़की ने पूछा ।

-फिर कब आओगे?

– अब नहीं आऊंगा ।

-क्यों ? मैं सुंदर नहीं रही ?

और वह खिलखिला कर हंस दी ।

लड़के ने पलट कर देखा,,,

लड़की के हाथ में एक सड़ा हुआ चेहरा था और वह पहले की तरह सुंदर थी ।

लड़का मुस्कुरा कर करीब आने लगा तो उसने सड़ा हुआ चेहरा उसके मुंह पर फेंकते कहा -मुझे मुंह मत दिखाओ ।

लड़के में हिम्मत नहीं थी कि उसकी अवज्ञा करता ।

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क :   1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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subedar pandey

उत्कृष्ट सृजन यथार्थ चित्रण बधाई अभिनंदन अभिवादन स्वीकार करें आदरणीय श्री