सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आप प्रत्येक मंगलवार, साप्ताहिक स्तम्भ -यायावर जगत के अंतर्गत सुश्री ऋता सिंह जी की यात्राओं के शिक्षाप्रद एवं रोचक संस्मरण  आत्मसात कर सकेंगे। इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत है आपका यात्रा संस्मरण – मेरी डायरी के पन्ने से…हमारी इटली यात्रा… का भाग 1 – )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ –यात्रा संस्मरण – यायावर जगत # 13 ☆  

? मेरी डायरी के पन्ने से… हमारी इटली यात्रा – भाग 1 ?

(अक्टोबर 2017 )

सफ़र करना किसे नहीं भाता है पर सफ़र के दौरान अगर सभी इंद्रियों का उचित उपयोग करें तो हम न केवल दृश्य देखने का आनंद ले सकते हैं बल्कि नए लोगों से परिचय भी बढ़ा सकते हैं। मैं ये दोनों बातें अपने अनुभव से कह रही हूँ। इससे सफ़र का आनंद भी बढ़ जाता है।

अपने पाठकों के साथ मैं अपना एक सुंदर स्मरणीय अनुभव साझा करना चाहूँगी।

वर्ष 2017 अक्टोबर हम इस वर्ष इटली और ग्रीस घूमने गए थे। पहला पड़ाव रोम था। हमारे रहने की व्यवस्था एयरपोर्ट से पचास किलो मीटर दूर एक सुंदर गॉल्फ क्लब रिज़ोर्ट में की गई थी।

शहर से दूर होने के कारण इस रिज़ोर्ट से रोज़ सुबह दो बार मुख्य मेट्रो रेलवे स्टेशन तक यात्रियों को ले जाने की व्यवस्था रखी गई थी। शाम को साढ़े सात बजे फिर वहीं से यात्रियों को रिज़ोर्ट वापस ले आने की व्यवस्था भी थी। इस व्यवस्था के कारण सभी रोज़ कहीं न कहीं सैर करने निकलते। सारा दिन दर्शनीय स्थानों तक यात्रा करते आनंद लेते और संध्या होते ही लौट आते। मेट्रो रेलवे की सुविधा उपलब्ध होने के कारण खास टैक्सी द्वारा यात्रा करने की भी आवश्यकता नहीं होती है जिससे काफी समय और धन की बचत भी होती है।

हम 14 अक्टोबर 2017 रोम पहुँचे। दूसरे दिन हम लोकल विज़िट के लिए रवाना हुए।

हम सबसे पहले कोलेज़ियम देखना चाहते थे! इस शहर के दर्शनीय आकर्षक स्थानों के फ़ेहरिस्त में कोलेजियम सर्वोपरि था।

बचपन से इतिहास में इसकी तस्वीरें और अन्य ऐतिहासिक पुस्तकों में ग्लैडियटर्स की लड़ाइयों के बारे में भी खूब पढ़ा था इसलिए हम उसे साक्षात आँखों से देखकर उस इतिहास को जीना चाहते थे।

यहाँ पूरे परिसर का अगर आप चक्कर काटना चाहते हैं तो दस -पंद्रह लोगों के समूह के साथ एक गाइड साथ चलता है और वह विस्तार से जानकारी देता है। इसके लिए बड़ी रकम भी टिकट के लिए देनी पड़ती है। हमें इटालियन भाषा आती नहीं अतएव अंग्रेज़ी में बोलने वाले गाइड के साथ हम भी हो लिए।

अब घर से बाहर निकले हैं तो खास जगहें तो देखनी ही है फिर जेब की ओर ध्यान देंगे तो आनंद लेने से दूर हो जाएँगे। यह सोचकर हमने भी बड़ी कीमत अदा की और गाइड के साथ हो लिए। यह तय कर लिया कि कहीं और एडजस्ट करेंगे ताकि आर्थिक संतुलन न बिगड़े।

यह कलोज़ियम 70 ईसा पूर्व जनता के मनोरंजन के लिए बनाया गया था। इसे बनने में भी काफी समय लगा था। यह एक विशालकाय एम्फ़ीथियेटर था। यह संसार का सबसे बड़ा एम्फीथिएटर था जो आज रोम शहर के मध्य में स्थित है। यह विशाल गोलाकार में बनाई गई चार मंज़िला इमारत है।

आज से दो हज़ार पूर्व रोम का योरोप के कई राज्यों पर भयंकर दबदबा रहा है। यूरोप के अधिकांश राज्य काथ्रेज जिसे हम आज स्पेन कहते हैं, ग्रीस तथा ईजिप्ट (अफ्रीका) आदि तक सब पर रोम का ही प्रभुत्व रहा है। इस राज्य को इटली नाम बाद में दिया गया और रोम उसकी राजधानी बनी। उस समय वहाँ के निवासी रोमन कहलाते थे। आज रोम को लोकल रोमा कहते हैं।

उनकी सभ्यता, आर्थिक लेन-देन व व्यापार, राजनैतिक परिपाटी, विशाल सैन्य दल और खुला समाज अपने काल में उसे इतिहास के पृष्ठों पर अलग दर्ज़ा देता रहा है।

कोलेज़ियम के स्थायित्व को मद्देनजर नज़र रखते हुए उसका निर्माण पहाड़ के पास किया गया था।

इसकी ऊँचाई 50 मीटर थी और भीतरी खुला हिस्सा 180 मीटर लंबा। यहाँ एक समय में पचास हज़ार दर्शक बैठ सकते थे। अंडाकार में निर्मित यह अद्भुत संरचना उस समय की वास्तु कला के महत्त्व को दर्शाता है।

कोलेज़ियम के भीतर सामने की सीटें खास अतिथियों और सेनेटॉर्स के लिए आरक्षित होती थी। आम जनता के लिए मनोरंजन निःशुल्क होता था।

प्रारंभ में कोलेजियम में पानी भरा जाता था, जिसमें छोटे जहाजों के आपसी युद्ध के खेल दिखाए जाते थे। बाद में इस व्यवस्था को रद्द किया गया।

अरेना के भीतर ग्लैडियटर्स, जंगली जानवर आदि के निवास की व्यवस्था थी। नीचे उनके आने-जाने के गुप्त मार्ग बने थे। पशुओं के लिए जालीदार चैंबर्स बने होते थे। अधिकतर ग्लैडियटर्स दास ही होते थे। अफ्रीका से बब्बर शेरों को लाकर, ग्लैडियटर्स के साथ भिड़ाया जाता था। ये सब खूंखार खेल थे। इस कोलेजियम में हज़ारों पशु और लाखों ग्लैडियटर्स की मनोरंजन के नाम पर बलि चढ़ाई गई थी।

इस पूरे परिसर को देखने के लिए हमें चार घंटे लगे। पुराने ज़माने में जब वहाँ खेल होता था तो हर आर्च के नीचे आकर्षक मूर्तियाँ लगी होती थीं। भीतर भी पर्याप्त छोटे -छोटे फव्वारे सजावट के रूप में लगाए गए थे। जनता के लिए पीने के पानी की व्यवस्था भी थी। इस पूरे कोलेजियम में अस्सी द्वार थे जहाँ से आम जनता आना जाना करती थी। कोलेजियम आज अपनी आँखों से देखकर इस बात का अनुमान लगाना कठिन हो रहा था कि दो हज़ार वर्ष पूर्व यह जाति एक तरफ अति सभ्य और उन्नत थी कि इस तरह का विशाल और अद्भुत संरचना करने में सक्षम थी और वहीं दूसरी ओर बर्बरता की मात्रा भी अपनी चरम सीमा पर थी।

स्त्री – पुरुष सभी इस स्थान पर आकर हत्या और बर्बरतापूर्ण होने वाले इन खेलों के चश्मदीद गवाह हुआ करते थे। संभवतः क्रूरता अब उनके खून में थी तभी तो जूलियस सीज़र को निहत्थे हाल में छुरा भोंककर मारते समय उनके निष्ठुर करीबियों के हाथ नहीं काँपे थे।

 मनुष्य के मन पर उन सब बातों का प्रभाव पड़ता है जो वह नियमित देखता है। भूखे पशुओं के साथ जब ग्लैडियटर्स भिड़ते थे तब वे लहुलुहान हो जाते थे। हिंस्र और वह भी भूखे शेर के सामने भला मनुष्य कब तक टिक पाता। अगर ग्लैडियटर अत्यंत शक्तिशाली होता था तो वह संपूर्ण प्रहार के साथ पशु को मार गिराता। भीड़ तालियाँ बजाती और प्रसन्न होती। ग्लैडियटर्स की जयजयकार होती। पर फिर भी वह और अन्य अनेक युद्ध लड़ने के लिए दास का जीवन जीता ही रहता और प्रशिक्षण पाता रहता था। कई बार ग्लैडियटर्स आपस में साथ रहते और प्रशिक्षण लेते हुए अच्छे मित्र बन जाते। फिर बढ़िया खेल की उपमा देकर दो दोस्तों को मैदान पर उतारा जाता। इस दृश्य को देखने के लिए विशाल भीड़ एकत्रित होती, खेल लंबा चलता, दोनों वार से बचते रहते फिर भीड़ वार करने और घायल करने के लिए दोनों को प्रोत्साहित करती। आखिर दो दोस्तों में से एक क्षत-विक्षत की हालत में धराशाई हो जाता और राजा अपना अंगुष्ठा नीचे की ओर कर देता जिसका अर्थ होता मार डालो। फिर एक ही वार से अपने ही मित्र की विवशता से हत्या करनी पड़ती। सोचकर देखिए दो हज़ार वर्ष पूर्व मनुष्य किस हद तक निष्ठुर था।

 फिर समय ने करवट बदली। यह अत्यंत दुख की बात है कि भयंकर आगजनी और भूकम्प के कारण कोलेजियम आज खंडहर बन गया। शायद क्रूरता की इति इसी तरह संभव थी। हम जब कोलेजियम देखने गए तब भारी मात्रा में वहाँ रिस्टोरेशन के काम चल रहे थे।

इटली जाने से पूर्व हमने स्वदेश में रहते ही पसंदीदा स्थानों के इतिहास के पन्ने पलटे थे, कुछ अंग्रेज़ी में बने डाक्यूमेंट्री फ़िल्म्स भी देखी थी जिस कारण कोलेज़ियम की भव्यता, वहाँ होनेवाले खेलों और प्रदर्शनों का अंदाज़ लगा सके।

हम कोलेजियम के भीतर सीढ़ियाँ चढ़ते उतरते और बरामदों में चलते हुए बहुत थक चुके थे। हमें लौटते हुए शाम हो गई थी।

योरोप के हर शहर में हॉप ऑन हॉप ऑफ बसों की व्यवस्था होती है। हम भी इसी बस से रेल्वे स्टेशन पहुँचे और वहाँ से रिसोर्ट।

हमने एक इटालियन पिज्जा हाउस में वहाँ का लोकल व्हेज पिज्जा खाया, तुलनात्मक दृष्टि से हमारे देश में बिकनेवाला पिज्जा अधिक स्वादिष्ट है। वहाँ के लोग बड़ी मात्रा में गोमांस खाते हैं इसलिए मांसाहारी भोजन से हमने दूर रहना उचित समझा। चिकन खाने की यहाँ लोगों को आदत नहीं है।

इटली वैसे अपने इतिहास के कारण ही पर्यटकों की भीड़ एकत्रित करने में सक्षम है अन्यथा यहाँ के लोगों की भाषा, बर्ताव, विदेशियों के प्रति दृष्टिकोण खास सकारात्मक नहीं है। वहाँ के लोग बिल्कुल अंग्रेजी नहीं बोलते या समझते। अधिकतर लोग साधारण शिक्षित हैं अतएव साधारण नौकरी ही करते हैं। आसपास के यूरोपीय देशों में युरोरेल द्वारा यात्रा करते हुए काम पर जाते हैं।

हम जिस रिज़ोर्ट में रुके थे वहाँ हमारे साथ एक दंपति कैरोलीन और डेनिस भी थे। वे आस्ट्रेलिया के ऑरेंज काऊँटी नामक स्थान से आए थे। वे भी कोलेजियम देखने निकले थे। रिजो़र्ट के शटल में बैठते ही हमारा परिचय उनके साथ हुआ और हमारी मानसिक कैमेस्ट्री मैच होती नज़र आई! कैरोलीन बहत्तर वर्ष की थीं और डेनिस चौहत्तर वर्ष के। परंतु दोनों ही फाइन ऍन्ड फिट थे।

दोस्ती हुई और दस दिन हम सब साथ -साथ घूमते रहे! दोनों पति-पत्नी हँसमुख और मिलनसार थे। डेनिस को मज़ाक करने की अच्छी आदत थी जिसके कारण सैर करते समय वक्त अच्छा कटता था! हम हर स्थान पर साथ – साथ एक परिवार की तरह रहे। समय -समय पर भारतीय सूखा नाश्ता जैसे चकली, च्यूड़ा, लड्डू, नमकीन आदि हम उनके साथ शेयर करते रहे और उन्हें बहुत आनंद आया। वे हमारे नाती शिवेन के फैन भी हो गए।

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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