श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है श्रावण पर्व पर विशेष प्रेरक एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा “कांवड़ यात्रा”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 164 ☆
☆ श्रावण पर्व विशेष ☆ लघुकथा – 🚩 कांवड़ यात्रा 🚩 ☆
एक छोटा सा गाँव। बड़ी श्रद्धा से कांवड़ यात्रा निकली थी। सावन सोमवार का दिन हजारों की संख्या में लोग महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। रिमझिम बारिश की फुहार, भीड़ अपार, ऊपर से कांवड़ यात्रा।
अपने में मस्त भगवान भोलेनाथ की जय कार लगाते लोग बढ़ते चले जा रहे थे। गाँव में आने-जाने के परिवहन के साधन की कमी रहती है, और इस माहौल पर रिक्शा चालक तो पहले से ही कांवड़ यात्रा में शामिल हो चुके होते हैं।
गाँव में अचानक एक गरीब परिवार दीपा और सोहन लाल की एक वर्ष की बच्ची की तबीयत खराब हो गई। देखते देखते वह गंभीर अवस्था में पहुँच गई । उसके पास साइकिल था। साइकिल पर बच्चे को ले दीपा बैठ गई, और जाने लगे ।
कांवड़ यात्रा के बीच में पुलिस वालों का सख्त आदेश था… ‘बीच में अन्य कोई भी ना आए।’ अब सोहन और दीपा के लिए बहुत मुश्किल मार्ग हो गया, क्योंकि अस्पताल और मंदिर दोनों गाँव से बाहर ही बने थे और दूर भी बहुत थे।
किनारे-किनारे साइकिल पर चलते जा रहा था। बारिश का मौसम फिर कोई उसे रोक देता, गरीब कुछ कह नहीं पाता। उसकी अपनी मजबूरी बताते हुए किसी तरह आगे बढ़ रहा था। थोड़ी दूर पर स्वागत के लिए टेबल लगाया गया था। जहाँ पर फूल माला और फल, शरबत, ठंडा पानी का इंतजाम था। दीपा सोची हम यहां से जल्दी निकल जाए।
परंतु धक्का-मुक्की में सोहन की साइकिल दस कदम दूर पीछे चली गई। अचानक शरबत बाँटते संतोष की नजर उस पर पड़ी। वह भी कांवड़ लिए चल रहे थे।
वे कई वर्षों से लगातार कावड़ यात्रा में शामिल होते थे, गाँव के एक अच्छे इंसान थे। एक गगरी में जल और दूसरी गगरी में दूध भरा रहता था। सोहन और उसकी पत्नी साथ में बच्चे को देख कर समझ गए कि मामला कुछ ठीक नहीं है, मुसीबत में फंसा है।
उसने आगे बढ़ कर एक दुकानदार से उसकी दो पहिया गाड़ी को मांग लिया। पहचान होने के कारण उसे दे दिया। सोहन की साइकिल वहाँ लगा। सोहन और उसकी पत्नी को पीछे बिठा अस्पताल की ओर चल पड़ा।
अस्पताल पहुँचकर संतोष ने सबसे पहले बच्ची का इलाज शुरू करवा दिया। कांवड़ एक किनारे रखा हुआ था। वहाँ सभी एक दूसरे को देख रहे थे। आज अस्पताल में कांवर कैसे आ गया है। संतोष थोड़ी देर बाद निकल कर एकदम शांत दिखाई दे रहे थे और जितने बाहर बैठे थे उनसे कहा.. “जिसको दूध लेना है और जल लेना है अपना गिलास ले आए।”
देखते-देखते अस्पताल परिसर में भीड़ लग गई। आज संतोष ने गगरी का दूध और जल सभी जरूरतमंद को बांट दिए।
मन में धैर्य और श्रद्धा से भरे हुए कांवड़ को लेकर गाड़ी में बैठ अपने घर की ओर बढ़ चले। आज की कांवड़ यात्रा अब तक की कांवड़ यात्रा से बहुत अद्भुत थी।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈