☆ “जलनाद (लम्बा नाटक)” – लेखक- श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆ चर्चा – श्री विभूति खरे ☆

(17 तारीख को जलनाद (लम्बा नाटक) का विमोचन इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स में आयोजित है। ई-अभिव्यक्ति परिवार की हार्दिक शुभकमनाएं)

पुस्तक – जलनाद (लम्बा नाटक)

लेखक – विवेक रंजन श्रीवास्तव

प्रकाशक – इण्डिया नेट बुक्स, नोएडा

मूल्य – १२५ रु

चर्चा …. श्री विभूति खरे, बानेर, पुणे

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

न केवल जीवन और पर्यावरण में जल का महत्व निर्विवाद है बल्कि जल श्रोत सांस्कृतिक एवं धार्मिक आयाम में भी गहरे रूप से जुड़े हुए हैं। पानी की कमी या नदियों की बाढ़ दोनो ही स्थितियां त्राहि त्राहि की स्थितियां पैदा कर देती है। इसीलिये लोगों के मन में पानी का महत्व स्थापित करने हेतु प्रत्येक धर्म में पानी की शुद्धता और बचत को लेकर अनेक कथानक गढ़े गये हैं। विवेक रंजन श्रीवास्तव अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानो से पुरस्कृत बहुविध लेखक हैं। वे शिक्षा तथा पेशे से मूलतः इंजीनियर रहे हैं। उनकी लगभग २० किताबें विभिन्न विषयों पर प्रकाशित और चर्चित हैं। ये पुस्तकें ई प्लेटफार्म किंडल आदि पर भी सुलभ हैं। विवेक रंजन श्रीवास्तव को नाटक के लिये मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी का प्रसिद्ध हरिकृष्ण प्रेमी सम्मान प्राप्त हो चुका है। उन्होंने १२ अंको का लम्बा नाटक “जलनाद” लिखकर स्टेज के जरिये पानी के प्रासंगिक महत्व को रेखांकित किया है। जल के देवता भगवान इंद्र को ही वरुण देव और भगवान झूलेलाल के नामों से भी प्रतिपादित किया गया है। मुस्लिम धर्म में भी पानी के पीर, जिन्दह पीर की कल्पना है। भारत रत्न सर मोक्षगुण्डम विश्वैश्वरैया जी के महान कार्यों में से एक मैसूर का सुप्रसिद्ध नागार्जुन सागर बांध है। पानी भविष्य की एक बड़ी वैश्विक चुनौती है । भारत दुनियां का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन चुका है, विश्व की जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है, इससे स्वच्छ जल की आवश्यकता बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन और जन सांख्यकीय वृद्धि के कारण जल स्त्रोतो पर जल दोहन का असाधारण दबाव बन रहा है । बारम्बार बादलो के फटने और अतिवर्षा से जल निकासी के मार्ग तटबंध तोड़कर बहते हैं, बाढ़ से विनाश लीला के दृश्य बनते हैं । समुद्र के जलस्तर में वृद्धि से आवासीय भूमि कम होती जा रही है, अनेक द्वीप डूबने के खतरे हैं। पेय जल की कमी से वैश्विक रुप से लोगो के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है । विशेषज्ञों के अनुसार जल आपदा से बचने हेतु हमें अपने आचरण बदलने चाहिये, जल उपयोग में मितव्ययता बरतनी चाहिये .पर वास्तविकता इससे कोसों दूर है। पानी के प्रति जन मानस में सही समझ विकसित करने तथा पानी को लेकर सुव्यवस्थित इंफ्रास्ट्रकचर बांध, नहरें, पीने के पानी व सिंचाई के पानी की आपूर्ति की व्यवस्थायें, वर्षा जल के संग्रहण तथा   शहरों से निकासी पर बहुत काम करने की जरूरत है।

थियेटर वह समुचित मीडिया है जो दर्शको को भावनात्मक और मानसिक रूप से एक समग्र अनुभव देते हुये, मानव जाति और उसके पूर्वजो की अनुष्ठानिक पृष्ठ भूमि और सांकेतिकता के साथ उनकी विविधता किन्तु पानी के साथ एक सार्वभौमिक सम्बंध का सही परिचय करवा सकता है । इस तरह हमारी विविध सांस्कृतिक समानताओ को ध्यान में रखते हुये दुनिया को देखने और बेहतर समझने का बड़ा दायरा इस कला प्रदर्शन का सांस्कृतिक तत्व है । अगले विश्वयुद्ध के लिये आतुर दुनियां को पानी का सार्वभौमिक महत्व तथा हम सबके पूर्वजो द्वारा पानी के महत्व की समझ की शिक्षा दोहराने से पानी वैश्विक एका स्थापित करने का माध्यम बन सकता है। औद्योगिक प्रगति ने नदियों के प्रदूषण का विष दिया है, यह नाटक इन सभी बिन्दुओ को रेखांकित करता है।

पहले अंक में धरती पर जीवन के प्रादुर्भाव के लिये पानी की आवश्यकता बताई गई है, हम सब जानते हैं कि वैज्ञानिक अनुसंधानो के अनुसार पानी में ही सर्वप्रथम जीवन प्रारंभ हुआ था। यही कारण है कि ब्रह्माण्ड में अन्य ग्रहों पर जहां भी वैज्ञानिक जीवन की संभावना तलाश रहे हैं सर्वप्रथम वे वहां पानी की उपस्थिति की जांच करते हैं। जल में जीवन सृजित करने की क्षमता होती है वहीं यह विनाश भी कर सकता है .पानी समस्त मानवता को जोडता है, यह हम सबके लिये बराबरी से महत्व का तत्व है । विवेक जी के नाट्य लेखन की विशेषता है कि नाटक के न केवल संवाद लिखे गये हैं वरन् उन्होने दृश्य, मंच की साज सज्जा, म्युजिक, सूत्रधार के नेपथ्य व्यक्तव्य सब कुछ रेडी रूप से किताब में प्रस्तुत किये हैं। नाटक ज्ञानवर्धक और मनोरंजक है। काले वस्त्रों में मेघ, रेन ड्राप, नदी, समुद्र, धरती, सूर्य किरण, आदि को चरित्रो के रूप में रचकर उनसे अभिनय और नृत्य के मनोरम दृश्यों का निर्माण किया गया है जो दर्शकों को बांध रखने में सक्षम हैं। पौराणिक आख्यानों पर आधारित नाटक के अंक स्वतंत्र रूप से पूर्ण एकांकी हैं जो अलग से खुद एक छोटे नाटक की तरह प्रस्तुत किये जा सकते हैं। समुद्र मंथन के कथानक पर दूसरा अंक निर्मित है। तीसरा अंक बाल कृष्ण के द्वारा कालिका नाग के मद मर्दन पर आधारित है, जो नदियों के प्रदूषण के विरुद्ध संदेश देता है। नदियों के सामाजिक महत्व को रेखांकित करता “नर्मदा परिक्रमा” चौथा अंक है।

भागवत में वरुण देवता के विश्राम में विघ्न के वृतांत की कहानी को नात्य परिवर्तन कर पांचवा अंक लिखा गया है, जो जल स्त्रोतो से छेड़छाड़ के विरुद्ध शिक्षा देता है। यह अंक कथक नृत्य नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया जायेगा जिसमें संवाद न होकर नृत्य मुद्राओ से ही कथ्य कहा जायेगा। छठवें अंक में जल के दुरुपयोग के प्रति चेतना जागृत करने के लिये द्रौपदी द्वारा दुर्योधन के उपहास का प्रसंग उठाया गया है। सातवें अंक में कुंभ के मेलों के जरिये पानि के सामाजिक महत्व को रेखांकित किया गया है। आठवां अंक पुनः मेघदूत पर आधारित कथक नृत्य नाटिका है। जिसमें जल का मानवीकरण किया गया है। नौवें अंक का कथानक माण्डू के जल महल का है, जिसके माध्यम से वाटर हार्वेस्टिंग, के वैज्ञानिक संदेश को समझाया गया है। दसवें अंक का शीर्षक है नदी की मनोव्यथा। नदियों के प्रदूषण की वर्तमान स्थिति पर जन आव्हान के रूप में गीत और नृत्य नाटिका के मंचन द्वारा संदेश देने का यत्न इस अंक की कथा वस्तु है। ग्यारहवें अंक में बच्चों के खेल गोल गोल रानी इत्ता इत्ता पानी के जरिये हिन्दू और मुस्लिम धर्मों में पानी के महत्व पर संवाद हैं। बारहवें अंक में जलतरंग वाद्य यंत्र की प्रस्तुति के साथ काव्य वाचन है

हे जल देवता !

जो कुछ भी मुझमें अपवित्र हो

अशुभ हो

उसे बहा दे। ….

हे जल देवता

मेरा आचरण

अब तेरे जेसा हो

तेरा रसायन मुझमें समा जाये

तू आ

मुझे ओजस्वी बना। ….

जिस तरह जल सबका कल्याण करता है, जिस बर्तन में डालो वैसा ही रूप ले लेता है, …ॠग्वेद की सूक्ति के हिन्दी काव्य रूपांतर की ये अंतिम पंक्तियां नाटक का संदेश हैं।

सबसे बड़ा, सबसे ऊंचा बांध की जो होड़ हमें दुबा रही है, भूकंप ला रही है जंगलों का विनाश और गांवो का विस्थापन हुआ है। इन विभिन्न  समस्याओ पर यह नाटक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रकाश डालता है तथा  बौद्धिकता को मथकर सवाल खड़े करने में सफल है। अब समय आ गया है कि जलाशयो, वाटरबाडीज, शहरो के पास नदियो को ऊंचा नही गहरा किया जावे इन बिंदुओ पर काम हो । पानी के संरक्षण के हर सम्भव प्रयास करे जायें। पानी की इसी सार्व भौमिक भूमिका को ध्यान में रखते हुये इस आशा के साथ कि इसका नाट्य प्रदर्शन जल्दी ही आपके सम्मुख होगा। गाइड फिल्म का अल्ला मेघ दे पानी दे गुड़धानी दे ..। जैसे अकाल और सूखे के कारुणिक दृश्य पुनः सच न हों यह चेतना जन मानस में जगाने के लिये जलनाद के लेखक विवेक रंजन श्रीवास्तव को बहुत बधाई। किताब किंडल पर भी सुलभ है।  

चर्चाकार… श्री विभूति खरे

बानेर, पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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