हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ ‘अनहद नाद’ – सुश्री भावना शर्मा ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है सुश्री भावना शर्मा जी  की पुस्तक  अनहद नाद” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘अनहद नाद’ – सुश्री भावना शर्मा ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

पुस्तक- अनहद नाद

कवियित्री- भावना शर्मा

प्रकाशक- साहित्यागार, धामणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर-302006 मोबाइल नंबर 94689 43311

पृष्ठ संख्या- 130 

मूल्य- ₹250

समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

☆ काव्य में गूंजता अनहद नाद – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

भावों का रेचन ही साहित्य की उत्पत्ति का मूल है। साहित्य अपने भावों को व्यक्त करने के लिए मनोगत प्रवाह को ढूंढ लेता है। यदि मनोगत भाव कथा, कहानी, व्यंग्य, हास्य, कविता, मुक्तक, दोहे, सोरठे के अनुरूप होता है उसी में साहित्य सर्जन की लालसा उत्पन्न हो जाती है। तदुनुरूप रचनाकार की लेखनी चल पड़ती है।

इस मायने में भाव का रेचन यदि काव्यानुरूप हो तो काव्य पंक्तियां रचती चली जाती है। इस रूप में भावना शर्मा की प्रस्तुत पुस्तक अनहद नाद की चर्चा अपेक्षित है। पेशे से शिक्षिका भावना शर्मा एक बेहतरीन शिक्षिका होने के साथ-साथ भाव की अभिव्यक्ति को सशक्त ढंग से व्यक्त करने वाली कवियित्री भी है।

कवि हृदय बहुत कोमल कांत और धीरगंभीर होता है। उन्हें भावना, संवेदनहीन शब्द और करारा व्यंग्य अंदर तक सालता रहता है। यही विद्रूपताएं, विसंगतिया और सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक, असंगति उन्हें अंदर तक प्रभावित करती है। तभी अनहद नाद जैसी काव्य पुस्तक सृजित हो पाती है।

प्रस्तुत पुस्तक में 105 कविताओं में कवियित्री ने अपनी पीड़ा को व्यक्त किया है। आपने प्रकृति, जीव-जंतु, मानव, गीत-संगीत, घर-परिवार, मित्र-साथी, दोस्त, लड़का-लड़की, सपने, धुन, भाव-विभाव, चाहत, आशा-निराशा, मौसम, सपने, पशु-पक्षी यानी हर पहलू पर अपनी कलम चलाई है।

ना भूल जाने की कैफियत हूं

ना याद आने का जलजला।

कभी बरसों से पड़ी धूल हूं 

कभी रोज का सिलसिला ।।

कवियित्री कहती है-

कभी बात को कभी सवालात को

कभी मुस्कुराहट में छुपे हालात को

समझ जाना मायने रखता है।

भावों की जितनी सरलता, सहजता इन की कविता में है उतनी ही सरलता और सहजता उनकी भाषा में भी है।

उन अधबूनी चाहतों को

मैं यूं आजमाना चाहती हूं।

तेरी अंगुलियों को सहेज कर हाथों में 

मैं मुस्कुराना चाहती हूं।।

जैसी सौंदर्य से परिपूर्ण और काव्य से भरपूर इस पुस्तक के काव्य सौंदर्य की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। 130 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य ₹200 वाजिब है । साफ-सफाई, साज-सज्जा व त्रुटि रहित मुद्रण ने पुस्तक की उपयोगिता में वृद्धि की है।

काव्य साहित्य में कवियित्री अपनी पहचान बनाने में सक्षम होगी। यही आशा है।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

30-03-2022

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ ‘रामकथा एवं तुलसी साहित्य’ – श्री देवदत्त शर्मा ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है श्री देवदत्त शर्मा जी  की पुस्तक  “रामकथा एवं तुलसी साहित्य” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘रामकथा एवं तुलसी साहित्य’ – श्री देवदत्त शर्मा ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

पुस्तक- रामकथा एवं तुलसी साहित्य

आलोचक- देवदत्त शर्मा

प्रकाशक- साहित्यागार, धामणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर-302006 मोबाइल नंबर 94689 43311

पृष्ठ संख्या- 176 

मूल्य- ₹300

समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

☆ तुलसी साहित्य की बेहतरीन समालोचना की पुस्तक – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

आलोचना के लिए खुलापन चाहिए। यदि आप पूर्वाग्रह से ग्रसित हो तो आलोचना महत्वहीन हो जाती है। यदि आप पक्षपाती हो तो वह स्तुतिगान से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रह जाती है। इसलिए आलोचक को पूर्वाग्रह रहित, निष्पक्ष और तटस्थ रहना जरूरी है।

इसी के साथ-साथ आलोचक को अध्ययन की दृष्टि से गंभीर व पठन की दृष्टि से धैर्यवान होना चाहिए। तभी वह गहन अध्ययन कर अपने निष्कर्ष के द्वारा बेहतरीन आलोचना प्रस्तुत कर सकता है।

इन दोनों ही दृष्टि से रामकथा एवं तुलसी साहित्य के रचनाकार यानी आलोचक की पृष्ठभूमि का अवलोकन करें तब हमें ज्ञात होता है कि आलोचक रचनाकार देवदत्त शर्मा के पिता श्री मिश्रीलाल शर्मा त्रिभंगी छंद के विशेषज्ञ रचनाकार थे। वे नित्य प्रति रामचरितमानस का पारायण करते थे। इस कारण उनके पुत्र को पौराणिक साहित्य और उसकी बारीकियों को जानने का, समझने का, परखने का, चिंतन-मनन करने का, लंबा व अनुभव सिद्धि कार्यानुभव रहा है। जिसकी छाप उनके अंतर्मन पर गहरी पड़ी है। वे स्वयं पौराणिक साहित्य के अध्ययेता, चिंतक व रचनाकार रहे हैं। इस कारण आप को इस साहित्य के चिंतन-मनन का लंबा अनुभव प्राप्त हुआ है।

देवदत्त शर्मा की लेखनी हमेशा इन्हीं विषयों पर अधिकार पूर्वक चलती रही है। आपने इस प्रसंग पर अनेकों आलेख, तार्किक रचनाएं एवं शोध आलेख लिखे हैं। इस अलौकिक अनुभव के कारण आप रामकथा एवं तुलसी साहित्य नामक आलोचक ग्रंथ का परिणयन कर पाए हैं।

प्रस्तुत आलोच्य ग्रंथ से तैतीस अध्यायों में विभक्त है। इसके अंतर्गत आलोचक ने रामकथा के प्रथम रचनाकार से लेकर रामराज्य की स्थापना से गोस्वामी तुलसीदास जी की विनोदप्रियता तक हर पहलू को छुआ है। रामकथा के हर पात्र, उसका स्वभाव, उसकी भावना, उसका त्याग, उसका बलिदान के साथ-साथ उसकी कर्तव्य परायणता का बारीकी से आलोचनात्मक मूल्यांकन किया है।

तुलसीदास जी की सबसे निंदक चौपाई- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी। की सबसे सुंदर व समकालीन परिस्थितियों में बहुत ही बेहतरीन समोलोचना प्रस्तुत की गई है। यदि आप रामचरितमानस, उसके समस्त पात्, उनकी स्थिति, भाव भंगिमा और मनोदशा को समझना चाहते हैं तो यह पुस्तक आपके बहुत काम की है।

आलोचक की श्रमसाध्य मेहनत, सूझबूझ, धैर्य और गंभीर अध्ययन को यह पुस्तक भारतीय ढंग से प्रस्तुत करती है। 176 पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य ₹300 वाजिब है। साजसज्जा व आवरण पृष्ठ आकर्षक व त्रुटिरहित है। आशा है इस पुस्तक का साहित्यजगत में खुले दिल से स्वागत किया जाएगा।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

30-03-2022

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 110 –“चटपटे शरारे” … संपादन… फारूक अफरीदी, कविता मुखर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है फारूक अफरीदी, कविता मुखर द्वारा पुस्तक “चटपटे शरारे” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 110 ☆

☆ “चटपटे शरारे” … संपादन… फारूक अफरीदी, कविता मुखर ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆  

चटपटे शरारे

राही रेंकिंग २०२० में चयनित व्यंग्यकारों का व्यंग्य संकलन

संपादन… फारूक अफरीदी, कविता मुखर

संयोजक… प्रभात कुमार गोविल, डॉ. संजीव कुमार  

प्रकाशक… इंडिया नेटबुक्स प्रा लिमि नोएडा

मूल्य ४००रु, पृष्ठ २०४

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव

शतक एक ऐसी संख्या है जो एक मान्य मुकाम की उद्घोषणा के रूप में स्थापित हो चुकी है. क्रिकेट में शतकीय पारी, उम्र में १०० बरस की जिंदगी, परीक्षाओ में १०० अंको के पूर्णांक वगैरह वगैरह… वर्ष २०१५ से राही सहयोग संस्थान नामक संस्था ने स्वैच्छिक रूप से  कुल पचपन सदस्यों का एक समूह बनाया. इन सदस्यों में कुछ शिक्षक, विद्यार्थी, शोधार्थी, संपादक, समीक्षक, सामान्य रूचि शील पाठकों के रूप में कुछ साहित्यानुरागी गृहणियाँ थी । पुस्तकालय कर्मी, प्रकाशक और प्रतिष्ठित पुस्तक विक्रेता तक शामिल थे  और शेष इंटरनेट सर्फर्स थे । प्रबुद्ध साहित्यिक प्रबोध कुमार गोविल जी की इस पहल का उद्देश्य था कि हिन्दी पाठकों को हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दी जगत के १०० सक्रिय श्रेष्ठ रचनाकारों से एक रेंकिंग के जरिये परिचित करवाना. २०१५ से प्रारंभ यह इरादा अब तक लगातार मूर्त रूप ले रहा है, और अब इसकी गूंज वैश्विक हो चली है.

वर्ष २०१७ की इस रैंकिंग के तीसरे वर्ष में लगातार चुने गए साहित्यकारों के विस्तृत साक्षात्कारों पर आधारित एक किताब “ हरे कक्ष में दिनभर ” प्रबोध कुमार गोविल के संपादन में प्रकाशित हुई.इंडिया नेटबुक्स प्रा लिमि नोएडा के संस्थापक श्री संजीव कुमार एक प्रयोगधर्मी साहित्यकार भी हैं, उनके सहयोग से  वर्ष २०२० की राही रैंकिंग सूची में चयनित व्यंग्यकारो, कवियों, लघुकथाकारो, कहानीकारो आदि के विधावार रचना संकलन प्रकाशित किये गये. वरिष्ठ व्यंग्यकार फारूक अफरीदी एवं सुश्री कविता मुखर के संपादन में चटपटे शरारे शीर्षक से राही रेंकिंग २०२० में चयनित व्यंग्यकारों का व्यंग्य संकलन प्रकाशित हुआ है.

यह संकलन अपने आप में इस दृष्टि से अनूठा है कि इसमें सर्वश्री अरविंद तिवारी, डा गिरिराजशरण अग्रवाल, गिरीश पंकज, गोपाल चतुर्वेदी, गोविंद शर्मा, डा ज्ञान चतुर्वेदी, हरीश नवल, डा हेतु भारद्वाज, ईश मधु तलवार, लालित्य ललित, प्रभात गोस्वामी , डा नरेंद्र कोहली, प्रेम जनमेजय, रामदेव धुरंधर, डा सूर्यबाला, तेजेन्द्र शर्मा तथा विभूति नारायन राय जैसे स्वनाम धन्य सुस्थापित व्यंग्यकारो के चुटीले व्यंग्य ही नही, उन व्यंग्य लेखों पर समकालीन व्यंग्यकारो की समीक्षात्मक विस्तृत टिप्पणियां भी पुस्तक में संग्रहित हैं. इस तरह शोधार्थियों हेतु एक प्रारंभिक कार्य पहले ही कर सुलभ कर दिया गया है. विभिन्न संकलित व्यंग्य रचनाओ पर की गई टिप्पणीयों में सर्वश्री पिलकेंद्र अरोड़ा, डा उषारानी राव, डा चित्तरंजन कर, सुरेश अवस्थी, भारती पाठक, डा मंगत बादल, बुलाकी शर्मा, अजय अनुरागी, रास बिहारी गौड़, राजेंद्र मोहन शर्मा, राजेश कुमार, सवाई सिंह शेखावत, अर्चना चतुर्वेदी, सुभाष चंदर, बसंती पंवार, अनूप घई, ब्रजेश कानूनगो, हेतु भारद्वाज, डा आभा सिंह, बी एल आच्छा, सुनीता शानू, और विजी श्रीवास्तव जैसे सक्रिय पाठक व लेखक महत्वपूर्ण हैं. एक नियत समय सीमा में चयनित व्यग्यकारों से रचनायें प्राप्त कर उन पर देश भर में फैले रचनाकारों से विशद टिप्पणियां बुलवाकर उन्हें संपादित कर किताब का स्वरूप देना श्रमसाध्य साहित्यिक कार्य है, जिसे संपादक द्वय ने पूरी जिम्मेदारी से कर दिखाया है. श्री फारूक अफरीदी जी का विस्तृत संपादकीय स्वयं में व्यंग्य की वर्तमान स्तिथियों का पूरा लेखा जोखा है. कविता जी ने अपने संपादकीय में संकलित रचनाओ पर गंभीर टिप्पणियां की हैं. कुल मिलाकर चटपटे शरारे वर्ष २०२० के व्यंग्य परिदृश्य का शोध दस्तावेज निरूपित किया जा सकता है.

यह जानकारी देना प्रासंगिक होगा कि वर्ष २०२१ के चयनित व्यंग्यकारों के व्यंग्य संकलन पर मेरे तथा श्री अरुण अर्नव खरे के संपादन में कार्य चल रहा है. जल्दी  ही यह संकलन भी प्रकाशित होगा, इससे पहले मैं  पाठकों को चटपटे शरारे खरीद कर पढ़ने की सलाह दूंगा.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ ‘गलती से मिस्टेक (हास्य-व्यंग्य कविताएं)’ – प्रदीप गुप्ता ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है प्रदीप गुप्ता जी  की पुस्तक  “गलती से मिस्टेक (हास्य-व्यंग्य कविताएं)” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘गलती से मिस्टेक (हास्य-व्यंग्य कविताएं)’ – प्रदीप गुप्ता ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

पुस्तक: गलती से मिस्टेक

रचनाकार: प्रदीप गुप्ता 

प्रकाशक: निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, 37 शिवराम कृपा, विष्णु कॉलोनी, शाहगंज आगरा-20 उत्तर प्रदेश  मो 94580 09531

समीक्षक : ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

किसी के पास हंसने-हंसाने व गुदगुदाने का समय नहीं है – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

आज के जमाने में जब जिंदगी रफ्तार से दौड़ रही है किसी के पास हंसने-हंसाने व गुदगुदाने का समय नहीं है। आज की व्यस्तम जिंदगी में हास्य व्यंग्य की रचनाएं भी कम लिखी जा रही है। ऐसे समय में ‘गलती से मिस्टेक’ हास्य व्यंग्य की कविताओं का संग्रह का प्रकाशित होना ठीक वैसा ही है जैसे तपती दोपहर में वर्षा की ठंडी फुहार या हवा का चलना। जिससे हमें बहुत ही राहत मिलती है।

गलती से मिस्टेक के रचनाकार प्रदीप गुप्ता की यह तीसरी पुस्तक है। जिसका विमोचन अंतरराष्ट्रीय पत्र लेखन मुहिम के सम्मान समारोह में पिछले दिनों सवाई माधोपुर में हुआ था। 

आकर्षित शीर्षक वाली इस पुस्तक- गलती से मिस्टेक, में रचनाकार ने समाज में व्याप्त अव्यवस्था, विसंगतियों, विडंबनाओं, पाखंड, राजनीति आदि पर अपनी कविता के माध्यम से तीखा प्रहार करने की कोशिश की है। रचनाओं में अतिरंजना, विविधता, बिम्ब, व्यंग्य, हास्य आदि के द्वारा कटाक्ष को उभारने की सफल कोशिश की है।

कभी-कभी हम जो बातें सीधे ढंग से व्यक्त नहीं कर पाते हैं उसे हास्य और व्यंग्य द्वारा मारक ढंग से व्यक्त कर देते हैं। इसी को मद्देनजर रखते हुए रचनाकार ने व्यक्ति, जीव, जानवर, भाव, विभाव, परिस्थिति,  स्थितियों, बंद, व्यवस्था, सामाजिक रीतिरिवाज, कार्य-व्यवहार, रीति’नीति आदि पर धारदार व्यंग्य व हास्य कविताएं प्रस्तुत की हैं।

मुझको लगता है कि अब तो बेचारी 

पढ़ाई भी खुद ही शरमा जाएगी।

क्योंकि नेतागिरी भी अब

कॉलेज में पढ़ाई जाएगी।।

गुंडागर्दी, झूठ, बेईमानी और 

गिरगिट की तरह रंग बदलने की कला 

भी वही सिखाई जाएगी ।।

जैसे व्यंग्य व हास्य कविताएं इस संकलन में आकर्षक साज-सज्जा से युक्त सफेद कागज पर त्रुटिरहित मुद्रण के साथ प्रकाशित की गई हैं। कवि की अपनी कविताओं पर अच्छी पकड़ है। वे हास्य-व्यंग्य की रचनाओं को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं।एक सौ पांच पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य ₹150 वाजिब है। इस पुस्तक का हास्य-व्यंग्य की दुनिया में भरपूर स्वागत किया जाएगा। ऐसा विश्वास है।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

31-03-2022

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ कथा संग्रह – ‘शॉप-वरदान’ – प्रभा पारीक ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है प्रभा पारीक जी के कथा संग्रह  “शॉप-वरदान” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ कथा संग्रह – ‘शॉप-वरदान’ – प्रभा पारीक ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

पुस्तक:  शॉप-वरदान

लेखिका:  प्रभा पारीक

प्रकाशक: साहित्यागार,धामणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर- 302013

मोबाइल नंबर : 94689 43311

पृष्ठ : 346

मूल्य : ₹550

समीक्षक : ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

☆ शॉप-वरदान की अनूठी कहानियाँ – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

किसी साहित्य संस्कृति की समृद्धि उसके रचे हुए साहित्य के समानुपाती होती है। जिस रूप में उसका साहित्य और संस्कृति समृद्ध होती है उसी रूप में उसका लोक साहित्य और समाज सुसंस्कृत और समृद्ध होता है। लौकिक साहित्य में लोक की समृद्धि संस्कार, रीतिरिवाज और समाज के दर्शन होते हैं।

इस मायने में भारतीय संस्कृति में पुराण, संस्कृति, लोक साहित्य, अलौकिक साहित्य आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। समृद्ध काव्य परंपरा, महाकाल, ग्रंथकाव्य, पुराण,  वेद, वेदांग उपाँग और अलौकिक-लौकिक महाकाव्य में हमारी समृद्ध परंपरा को सहेज कर रखा है। इसी के द्वारा हम गुण-अवगुण, मूल्य-अमूल्य, आचरण-व्यवहार, देव-दानव आदि को समझकर तदनुसार कार्य-व्यवहार, भेद-अभेद, शॉपवरदान आदि का निर्धारण कर पाते हैं।

अमृत परंपरा का अध्ययन, चिंतन-मनन व श्रम साध्य कार्य करके उसमें से शॉप और वरदान की कथाओं का परिशीलन करना बहुत बड़ी बात है। यह एक श्रमसाध्य कार्य है। जिसके लिए गहन चिंतन-मनन, विचार-मंथन, तर्क-वितर्क और आलोचना-समालोचना की बहुत ज्यादा जरूरत होती है।

तर्क, विचार और सुसंगतता की कसौटी पर खरे उतरने के बाद उसका लेखन करना बहुत बड़ी चुनौती होता है। इसके लिए गहन अध्ययन व चिंतन की आवश्यकता होती है। इस कसौटी पर प्रभा पारीक का दीर्धकालीन अध्ययन, शोध, चिंतन एवं मनन उनके लेखन में बहुत ही सार्थक रूप से परिणित हुआ है।

वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, रामायण, भगवत आदि में वर्णित अधिकांश शॉप उनके वरदान के परिणीति का ही प्रतिफल है। हर शॉप उनके वरदान को पुष्ट करता है। इसी द्विकार्य पद्धति को प्रदर्शित करती पुस्तक में शॉप और वरदान की अनेकों कहानियां हैं जो हमारी भारतीय संस्कृति के अनेक पुष्ट परंपराओं और रीति-रिवाजों को हमारे समुख लाती है। इसी पुस्तक के द्वारा इन्हीं कथाओं के रूप में हमारे सम्मुख सहज, सरल, प्रवहमय भाषा में हमारे सम्मुख रखने का कार्य लेखिका ने किया है।

वेद, पुराण, श्रीमद् भागवत आदि का ऐसा कोई प्रसंग, कथा, कहानी, शॉप, वरदान नहीं जिसका अनुशीलन लेखिका ने न किया हो। प्रस्तुत पुस्तक इसी दृष्टि से बहुत उपयोगी है। साजसज्जा उत्तम हैं। त्रुटिरहित छपाई, आकर्षक कवर ने पुस्तक की उपयोगिता में चार चांद लगा दिए हैं। 346 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य ₹550 वर्तमान युग के हिसाब से वाजिब है।

पुस्तक की उपयोगिता सर्वविदित हैं। साहित्य के क्षेत्र में इसका सदैव स्वागत किया जाएगा।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

30-03-2022

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 113 – “महानायक मोदी” … श्री कृष्ण मोहन झा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है  श्री कृष्ण मोहन झा जी  की पुस्तक “महानायक मोदी” की समीक्षा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 113 ☆

☆ “महानायक मोदी” … श्री कृष्ण मोहन झा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆ 

किताब… महानायक मोदी

लेखक… कृष्ण मोहन झा

प्रकाशक… सरोजनी पब्लिकेशन, नई दिल्ली ११००८४

मूल्य… ५०० रु,

पृष्ठ… १६० सजिल्द

युवा पत्रकार श्री कृष्ण मोहन झा इलेक्ट्रानिक व वैचारिक पत्रकारिता का जाना पहचाना नाम है. देश के अनेक बड़े राजनेताओ से उनके व्यक्तिगत संबंध हैं. उन्होने भारतीय राजनीति में पार्टियों, राज्य व केंद्र के सत्ता परिवर्तन बहुत निकट से देखे और समझे हैं. उनकी लेखनी की लोकप्रियता बताती है कि वे आम जनता की आकांक्षा और उनके मनोभाव पढ़ना वे खूब जानते हैं. श्री झा को उनकी सकारात्मक पत्रकारिता के प्रारम्भ से ही मैं जानता हूं. विगत दिनों मुझे उनकी पुस्तक महानायक मोदी के अध्ययन का सुअवसर मिला. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जन प्रतिनिधि के नेतृत्व में असाधारण शक्ति संचित होती है. अतः राजनीति में नेतृत्व का महत्व निर्विवाद है. जननायको के किचित भी गलत फैसले समूचे राष्ट्र को गलत राह पर ढ़केल सकते हैं. विगत दशको में भारतीय राजनीति का पराभव देखने मिला. चुने गये नेता व्यक्तिगत स्वार्थों में इस स्तर तक लिप्त हो गये कि आये दिन घपलों घोटालों की खबरें आने लगीं. नेतृत्व के आचरण में इस अधोपतन के चलते सक्षम बुद्धिजीवी युवा पीढ़ी विदेशों की ओर रुख करने लगी, अधिकांश आम नागरिक देश से पहले खुद का भला तलाशने लगे. इस दुष्कर समय में गुजरात की राजनीति से श्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण किया. उन्होने स्व से पहले समाज का मार्ग ही नही दिखलाया बल्कि हर पीढ़ी से सीधा संवाद स्थापित करने का प्रयास करते हुये राष्ट्र प्रथम की विस्मृत भावना को नागरिकों में पुर्जीवित किया. स्वयं अपने आचरण से उन्होने  एक अनुकरणीय नेतृत्व  की छवि स्थापित करने में सफलता पाई. वो महात्मा गांधी थे जिनके एक आव्हान पर लोग आंदोलन में कूद पड़ते थे, लाल बहादुर शास्त्री थे जिनके आव्हान पर लोगों ने एक वक्त का खाना छोड़ दिया था.

दशकों के बाद देश को एक अनुकरणीय नेता मोदी जी के रूप में मिला है. वे विश्व पटल पर भारत की सशक्त उज्जवल छवि निर्माण में जुटे हुये हैं, उन्होने भगवत गीता, योग, दर्शन को भारत के वैश्विक गुरू के रूप में स्थापित करने हेतु सही तरीके से दुनिया के सम्मुख रखने में सफलता अर्जित की है. जन संवाद के लिये नवीनतम टेक्नालाजी संसाधनो का उपयोग कर उन्होने युवाओ में अपनी गहरी पैठ बनाने में सफलता अर्जित की है.  देश और दुनिया में वैश्विक महानायक के रूप में उनका व्यक्तित्व स्थापित हो चला है. ऐसे महानायक की सफलताओ की जितनी विवेचना की जावे कम है, क्योंकि उनके प्रत्येक कदम के पारिस्थितिक विवेचन से पीढ़ीयों का मार्गदर्शन होना तय है. मोदी जी को  कोरोना, अफगानिस्तान समस्या,  यूक्रेन रूस युद्ध, भारत की गुटनिरपेक्ष नीती के प्रति प्रतिबद्धता बनाये रखने वैश्विक चुनौतियों से जूझने में सफलता मिली है. तो दूसरी ओर उन्होंने पाकिस्तान पोषित आतंक, काश्मीर समस्या, राममंदिर निर्माण जैसी समस्यायें अपने राजनैतिक चातुर्य व सहजता से निपटाई हैं.

देश की आजादी के अमृत काल का सकारात्मक सदुपयोग लोगों में राष्ट्रीयता जगाने के अनेकानेक आयोजनो से वे कर रहे हैं. समय समय पर लिखे गये अपने ३४ विवेचनात्मक लेखों के माध्यम से श्री झा ने मोदी जी के महानायक बनने के सफर की विशद, पठनीय, तथा तार्किक रूप से आम पाठक के समझ में आने वाली व्याख्या इस किताब में की है. निश्चित ही यह पुस्तक संदर्भ ग्रंथ के रूप में शोधार्थियों द्वारा बारम्बार पढ़ी जावेगी. मैं श्री कृष्नमोहन झा को उनकी पैनी दृष्टि, सूक्ष्म विवेचनात्मक शैली, और महानायक मोदी पर सामयिक कलम चलाने के लिये बधाई देता हूं व आपसे इस किताब को खरीदकर पढ़ने की अनुशंसा करता हूं.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ कथा संग्रह – प्रेमार्थ – श्री सुरेश पटवा ☆ डॉ.वन्दना मिश्रा ☆

☆ पुस्तक चर्चा ☆ कथा संग्रह – प्रेमार्थ – श्री सुरेश पटवा ☆ डॉ.वन्दना मिश्रा 

डॉ.वन्दना मिश्रा

(शिक्षाविद, कवि, लेखक, समीक्षक)

(ई- अभिव्यक्ति ने अपने प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री सुरेश पटवा जी के कथा संग्रह  “प्रेमार्थ “ की कुछ कहानिया साझा की थीं। इस सन्दर्भ में आज प्रस्तुत है  सुप्रसिद्ध कहानीकार, नाटककार एवं समीक्षक श्री युगेश शर्मा जी द्वारा प्रेमार्थ की प्रस्तावना 13 फ़रवरी 2021 को प्रकाशित की थी जिसे आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं  👉  ☆ कथा संग्रह – प्रेमार्थ  –  श्री सुरेश पटवा ☆ प्रस्तावना – श्री युगेश शर्मा ☆)

 

(गम्भीर संयत साहित्यकार डॉक्टर वंदना मिश्रा जी ने मेरे कहानी संग्रह की समीक्षा लिखी है। उनको साधुवाद सहित आज आपके समक्ष प्रस्तुत है। – श्री सुरेश पटवा)

☆ खोजी यात्रा और सम्यक समृति से रची अद्भुत कहानियाँ : प्रेमार्थ – डॉ.वन्दना मिश्रा ☆

कहानी संग्रह -प्रेमार्थ

लेखक-सुरेश पटवा

समीक्षक-डॉ.वन्दना मिश्रा

प्रकाशन- वंश पब्लिकेशन भोपाल

मूल्य-250/

प्रेमार्थ कहानी संग्रह कहन की धारा में लिखा गया संस्मरण, यात्रा वृतांत रिपोर्ताज, रेखाचित्र,  आत्मकथ्यात्मक  कहानी संग्रह है। संवाद और वृत्तांत इसे सायास कहानी  बनाते हैं। कहानीकार पौराणिक कथाओं, प्रसंगों, ऐतिहासिक तथ्यों दार्शनिक शास्त्रों का अध्ययन करता हुआ विविध यात्राओं से साक्ष्य बटोरता पुष्ट करता सृजनरत है। अध्ययन शील होने से लेखक अपनी सूक्ष्म दृष्टि से यहाँ के इतिहास, नदी पहाड़, ताल, जंगल, जानवर, आगम-निर्गम, सबकी टोह लेता व्यापक फलक तैयार करता है।

‘प्रेमार्थ’ की कहानियाँ शीर्षक को पुष्ट करते हुए भारतीय सामाजिक जीवन मूल्यों को संजोती हैं। लेखक यात्रा करते हुए स्थान विशेष की ऐतिहासिकता, पौराणिक संदर्भो की पड़ताल करते हुए अनुभूत लौकिक तथ्यों तथा स्थानीयता से जुड़ी पौराणिक प्रेम कथाओं को लेखन में स्थान देता है। संग्रह की अधिकांश कहानियों में एक बैंक कर्मी खोजी यात्रा पर निकलता हुआ अनुसंधान कर संवादों के माध्यम से यथार्थ की भावभूमि पर पहुँचता है। कहानियों के पात्र संगी- साथी, पड़ोसी, कलाकार, समाजसेवी व जीवन से जुड़े हुए पहलू हैं। कुछेक कहानियों में कहानी की प्राणवायु लौ तनिक मद्धिम है पर खोजी यात्रा वृतांत बन कहन से बनता कहानी का आकार गढ़ता है…आरंभ से  अंत तक बाँधे रहने का यह शिल्प अनूठा कहानीकार बनाता है। परिचित शब्दों में जिसे हम नवाचार कहते हैं।

हर कहानी ज्ञान की धार छोड़ती है और आप क्रमशः पढ़ते हुए उस क्षेत्र विशेष की खूबियों जानकारियों से लबरेज होते जाते हैं। लगता है आप उस स्थान के बारे में सब जान गये। सोहागपुर से जबलपुर पिपरिया मढ़ई से बैतूल के बीच आए छोटे छोटे गाँव कस्बे, क्षेत्र उनकी बानगी कला सबका बाग-सा सजा लगता है। लेखन की यह कला रेखाचित्र से भी जोड़ती पर तुरंत ही कहानी की नब्ज पकड़ जाती है।

इन कहानियों में प्रेम केन्द्रीय भाव है जैसा शीर्षक ही ‘प्रेमार्थ’ इंगित कर आकर्षित करता है। प्रेम के प्रेमार्थ भौगोलिक प्रेम है तो पर्यावरण प्रेम, अलौकिक के साथ लौकिक प्रेम कहानियों में भी रस सिक्त हैं। आम आदमी के सुख-दुःख सबकी नैसर्गिक यात्रा इन कहानियों में देखी जा सकती है।

लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि बैंक कर्मी को  बैंक से दो/ चार वर्षों के अन्तराल से पर्यटन के लिए तय दूरी रेल किराया /यात्रा अवकाश मिलता है। इस पर्यटन वृत्ति का सार्थक उपयोग कर श्री पटवा  ने ज्ञानार्जन कर सृजन किया है। इससे उनकी खोजी दृष्टि ने मानव से जुड़ी विविध रूपों प्रवृत्तियों को समझने और उसे प्रमाणिक करने का कार्य किया है। यही कारण है कि उनकी हर एक कहानी में अनुभूति की गहराई से गंभीर यथार्थ  बोध मिलता है।

तिहास वेत्ता कहानीकार श्री सुरेश पटवा के संग्रह ‘प्रेमार्थ’ की पहली कहानी ‘अहंकार’ में बैंक से मिलने वाली यात्रा सुविधा अवकाश का उपयोग लेखक ने वर्तमान सिद्ध संस्थाओं, भक्ति, ज्ञान, योग ध्यान की व्यवहारिक जानकारी प्राप्त करने में लगाया है। इस दौरान पांडुचेरी स्थित अरविंद आश्रम में श्री आर के तलवार से परिचय हुआ। इस कहानी में श्री तलवार की महानता और विलक्षणता से परिचय कराते हुए एक कर्मयोगी की सच्चाई और ईमानदारी को जीवन मूल्यों में संजोए हुए उनके गांधीवादी व्यक्तित्व और कृतित्व को उभारा है। श्री तलवार की दिव्यता से प्रेरित अहंकार को परिभाषित करती कहानी ‘अहंकार’ में उन्हें प्रेमरस में पगे कर्त्तव्य पथी बताया है। लेखक कहता है कि अहंकार जहाँ “दूसरों से श्रेष्ठ होने का भाव है “.. (पृष्ठ15). यह भी कि “अहंकार व्यक्ति के निर्माण के लिए आवश्यक होता है।” (पृष्ठ15) अहंकार आभूषण भी है के राम के विवेक सम्मत परिमित अहंकार को दिखाया है….विनय न मानत “जलधि जड़, गये तीन दिन बीत” (पृष्ठ15)

‘गालिब का दोस्त’ दोस्ती की मिसाल कायम करती कहानी में मशहूर शायर गुलजार ने मिर्जा गालिब की वीरान हवेली को स्मारक बनाया और गालिब और उनके दोस्त बंशीधर की दोस्ती की प्रगाढ़ता का परिचय देती है। उनके शायराना अंदाज  को लेखन ने कहानी में ढाला है।

‘अनिरुद्ध ऊषा’ कहानी पौराणिक पात्र श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और राजा वाणासुर की पुत्री शोणितपुर की राजकुमारी ऊषा की प्रेमकथा है।

‘कच देवयानी’ शीर्षक कहानी भी पौराणिक पात्रों को लेकर रची गयी कहानी है। बृहस्पति के पुत्र कच एवं शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी की प्रेमकथा महाभारत में वर्णित प्रसंग पर आधारित है।

‘गेंदा और गुलाबो’ सुहागपुर के माटी कलाकारों की आजीविका की व्यथा को समेटे अन्तर प्रेमकथा को भी बिलोया है। ‘शब्बो राजा’ एक रसभरी प्रेम कहानी है जिस प्रेम का दुखद अंत होता है यहाँ मजहब से ज्यादा प्रेम की ईर्ष्या है। षडयंत्र पूर्वक लौकिक प्रेम का अमानवीय अंत है। सुहागपुर की सुराही दूर-दूर तक प्रसिद्धि पा चुकी है ।उन कलाकारों के त्रासद पक्ष को भी श्री पटवा के कहानीकार ने सहानुभूति पूर्वक उकेरा है।

श्री सुरेश पटवा सुहागपुर की  माटी की सुगंध वहाँ का इतिहास और पौराणिक मान्यता में स्थान भी सप्रमाण प्रस्तुत करना भी नहीं भूलते। ‘सोहनी और मोहनी’ राजतंत्र में राजाओं की प्रेमाशक्ति नर्तकियों से भी हो जाती है। ‘एक थी कमला’ कमला जैसी स्त्रियों के त्रासद प्रसंगों का बयान करती कथा है।

‘अंग्रेज बाबा देशी बाबा’ प्रसिद्ध समाजसेवी बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों की सेवा को जीवन अर्पित किया। यह समाज सेवा को प्रेरित करती कथा है। उन्होंने अपना सब कुछ छोड़कर कुष्ठ रोगियों की सेवा में लगा दिया.अब उनका पूरा परिवार भी इसी कार्य को समर्पित हैं। इस तथ्य को उकेरते हुए  वे कहानी को प्रेरक बनाते हैं। ‘गढ़ चिरौली की रुपा’ ‘बीमार ए दिल’ एक तरह से आत्मकथ्य है। ‘सभ्य जंगल की सैर ‘भोपाल से पचमढ़ी  के रास्ते में देनवा नदी का नजारा ‘मढ़ई’ के अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन रिपोर्ताज़ शैली में किया गया है। यहाँ के नदी, पहाड़, पशु -पक्षी,कीट पंतगों, जीव जन्तुओं, पेड़ पौधों, फलों और साग सब्जियों तक  का वर्णन कर एक कुशल गाइड का परिचय दिया है।

प्रेमार्थ…..

‘भर्तृहरि वैराग्य’ कुल मिलाकर काफी श्रम और शोध सृजन की अद्भुत परिणति यह किताब ‘प्रेमार्थ’ है।संग्रह की प्रत्येक कहानी ऐतिहासिक प्रसंगों, स्थलों नदियों पहाड़ों जानवरों विशिष्ट प्रसंगों कला रूपों का परिचय कराया है। इन कहानियों में श्री पटवा के सखा साथी सहकर्मी प्रेरक पुरुष, नैसर्गिक सौन्दर्य स्थान पाता है। मध्यप्रदेश के विशिष्ट स्थल होशंगाबाद, सोहागपुर, पचमढ़ी की इतिहास और पौराणिक मान्यताओं को आज तक सहेजा है।

कहानी कला का यह बाजीगर एक साथ संस्मरणात्मक गतिविधियों को समाहित कर रिपोर्ताज (साहित्यिकता, पत्रकारिता) सा प्रतीत होता कहन में बाँध लेता है। यहाँ कहानी अपनी सीमाएँ लाँघती आत्मकथ्य, संस्मरण तक जा पहुँचती है। हम कह सकते है खोजी यात्रा और सम्यक स्मृति से रची अद्भुत कहानियाँ हैं, ‘प्रेमार्थ’ की कहानियाँ। कहानियों की भाषा शिष्ट है जो अपनी बात प्रेषण में सहायक है। संवाद और कथन गति देते हैं इस तरह भाषा भावों का अनुगमन करती है। पात्रों ने अनुसार वाक्य विन्यास आकार लेता है। कुल मिलाकर एक बहुत अच्छे संग्रह के लिए बधाई। एक सलाह आप यात्रा संस्मरण जरुर लिखिए। श्री पटवा की लेखनी इसी तरह चलती रहे।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-

डॉ. वन्दना मिश्रा

शिक्षाविद, कवि, लेखक, समीक्षक

भोपाल,  मध्यप्रदेश।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 112 – “मन पवन की नौका” … कुबेर नाथ राय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है  कुबेर नाथ राय जी  की पुस्तक “मन पवन की नौका” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 112 ☆

“मन पवन की नौका” … कुबेर नाथ राय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆ 

पुस्तक – मन पवन की नौका

लेखक   – कुबेर नाथ राय

प्रकाशक – प्रतिश्रुति प्रकाशन कोलकाता

मूल्य – ₹३५०

 पृष्ठ  – १४४

ललित निबंध साहित्य की वह शैली है जिसमें कविता सा लालित्य, निबंध का ज्ञान, उपन्यास सा प्रवाह, कहानी सा आनन्द सम्मलित होता है. यदि निबंधकार कुबेर नाथ जी जैसा महान साहित्य मर्मज्ञ हो जिसके पास अद्भुत अभिव्यक्ति का कौशल हो, अथाह शब्द भंडार हो, इतिहास, संस्कृति, समकालीन अध्ययन हो तो सचमुच निबंध ललित ही होता है. हजारी प्रसाद द्विवेदी से ललित निबंध की परम्परा हिनदी में देखने को मिलती है, कुबेरनाथ जी के निबंध उत्कर्ष कहे जा सकते हैं. प्रतिश्रुति का आभार कि इस महान लेखक के निधन के बीस से ज्यादा वर्षो के बाद उनकी १९८३ में प्रकाशित कृति मन पवन की नौका को आज के पाठको के लिये सुंदर कलेवर में प्रस्तुत किया गया है. ये निबंध आज भि वैसे ही प्रासंगिक हैं, जैसे तब थे जब वे लिखे गये. क्योकि विभिन्न निबंधो में उन भारतीय समुद्रगामी अभीप्साओ का वर्णन मिलता है जिसकी बैजन्ती  अफगानिस्तान से जावा सुमात्रा तक ख्याति सिद्ध है. जिसके स्मारक शिव, बुद्ध, राम कथाओ, इनकी मूर्तियो लोक संस्कृति में अब भी रची बसी है. मन पवन की नौका पहला ही निबंध है, सिन्धु पार के मलय मारुत, अगस्त्य तारा, एक नदी इरावदी, जल माता मेनाम, मीकांग्ड गाथा, जावा के देशी पुराणो से, बाली द्वीप का एक ब्राह्मण, क्षीर सागर में रतन डोंगियां, यायावर कौण्डिन्य निबंधो में ज्ञान प्रवाह, सांस्कृतिक विवेचना पढ़ने मिलती है. किताब पढ़ना बहुत उपलब्धि पूर्ण है.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 111 –“रुपये का भ्रमण पैकेज” … सुश्री सुधा कुमारी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है सुश्री सुधा कुमारी जी  की पुस्तक “रुपये का भ्रमण पैकेज” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 111 ☆

☆ “रुपये का भ्रमण पैकेज” … सुश्री सुधा कुमारी जी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆ 

Rupaye Ka Bhraman Package

रुपये का भ्रमण पैकेज

लेखिका.. सुधा कुमारी

पृष्ठ १७२,सजिल्द  मूल्य ३५० रु

प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली

बीरबल या तेनालीराम जैसे ज्ञानी सत्ता में राजा के सर्वाधिक निकट रहते हुये भी राजा की गलतियों को अपनी बुद्धिमानी से इंगित करने के दुस्साहसी प्रयास करते रहे हैं. इस प्रयोजन के लिये उन्होने जिस विधा को अपना अस्त्र बनाया वह व्यंग्य संमिश्रित हास्य ही था. दरअसल अमिधा की सीधी मार की अपेक्षा हास्य व्यंग्य में कही गई लाक्षणिक बात को इशारों में समझकर सुधार का पर्याप्त अवसर होता है, और यदि सच को देखकर भी तमाम बेशर्मी से अनदेखा ही करना हो तो भी राजा को बच निकलने के लिये बीरबलों या तेनालीरामों की विदूषक छबि के चलते उनकी कही बात को इग्नोर करने का रास्ता रहता ही है. लोकतंत्र ने राजनेताओ को असाधारण अधिकार प्रदान किये हैं, किन्तु अधिकांश  राजनेता उन्हें पाकर निरंकुश स्वार्थी व्यवहार करते दिख रहे हैं. यही कारण है कि हास्य व्यंग्य आज अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है. सुधाकुमारी जी जैसे जो बीरबल या तेनालीराम अपने परिवेश में देखते हैं कि राज अन्याय हो रहा है, वे चुपचाप व्यंग्य लेख के जरिये आईना दिखाने का अपना काम करते दिखते हैं. ये और बात है कि अधिकांशतः उनकी ये चिंता अखबारों के संपादकीय पन्नो पर किसी कालम में कैद  या किसी पुस्तक के पन्नो में फड़फड़ाती रह जाती है. बेशर्म राजा और समाज उसे हंसकर टालने में निपुण होता जा रहा है. किन्तु इससे आज के इन कबीरों के हौसले कम नहीं होते वे परसाई,शरद, त्यागी और श्रीलाल शुक्ल के मार्ग पर बढ़े जा रहे हैं, सुधा कुमारी जी भी उसी बढ़ते कारवां में रुपये का भ्रमण पैकेज लेकर आज चर्चा में हैं.

“स्थानांतरण का ईश्वरीय आदेश” में वे सरकारी कर्मचारियों की ट्रांसफर नीतीयो पर पठनीय कटाक्ष करती हैं, उन्होने स्वयं भी खूब पढ़ा गुना है तभी तो व्यंग्य में यथा स्थान काव्य पंक्तियो का प्रयोग कर रोचक प्रवाही शैली में लिख सकी हैं. इसी शैली का एक और सार्थक व्यंग्य ” बेचारा” भी किताब में है.  “ओम पत्रकाराय नमः” में वे लिखती हैं ” आप ही देश चलाते हो, प्रशासन की खिंचाईकरते हो, कानून भी आपके न्यूजरूम में बन सकते हैं और न्याय भी आप खुद करते हो, खुद ही अभियोजन करते हो खुद ही फैसला सुनाते हो “… हममें से जिनने भी शाम की टी वी बहस सुनी हैं, वे सब इस व्यंग्य के मजे ले सकते हैं. ” अथ ड्युटी पार्लर कथा, बासमैनेजमेंट इंस्टीट्यूत, असेसमेंट आर्डर की आत्मकथा, सूचना अधिकार…अलादीन का चिराग, मखान सर शिक्षण संस्थान इत्यादि उनके कार्यालाय के इर्द गिर्द से उनके वैचारिक अंतर्द्वंद जनित रचनायें हैं, जिन्हें लिखकर उन्होने आत्म संतोष अनुभव किया होगा. कुछ रचनायें कोरोना की वैश्विक त्रासदी की विसंगतियों से उपजी हैं. और प्रजातंत्र की उलटबासियां, चुनावी दंगल, प्रजातांत्रिक पंचतंत्र,, नेताजी पर लेख जैसी रचनायें अखबार या टीवी पढ़ते देखते हुये उपजी हैं. चुंकि सुढ़ाकुमारी जी का संस्कृत तथा अंग्रेजी साहित्य का गहन अध्ययन है अतः उनके बिम्ब और रूपक मेघदूत, यक्षिणी, पीटर पैन, सोलोमन का न्याय के गिर्द भी बनते हैं. “चिंतन के लिये चारा” पुस्तक का सबसे छोटा व्यंग्य लेख है, पर मारक है…एक मरियल देसी गाय और एक बिहार की जर्सी गाय का परस्पर संवाद पढ़िये, इशारे सहज समझ जायेंगे… ” उन्हें विशेष प्रकार का चारा खिलाया गया , जो सामान्य आंखों से नही दिखता था, वह सिर्फ बिल और व्हाउचर में दिखाई देता था….

किताब के शीर्षक व्यंग्य रुपये का भ्रमण पैकेज से उधृत करता हूं… कुछ लोगों को रुपया हाथ का मैल लगता है पर अधिकतर को पिता और भाई से भी बड़ा रुपैया लगता है….. एडवांस्ड्ड मिड कैरियर ट्रैवल प्रोग्राम, प्रायः सरकारी अफसरो की तफरी के प्रयोजन बनते हैं उस पर तीक्ष्ण प्रहार किया है सुधा जी ने. “रिची रिच टू मैंगो रिपब्लिक” रुपये के देशी भ्रमण पैकेज के जरिये वे सरकारी अनुदान योजनाओ पर प्रहार करती हैं., उन्होंने  तीसरा पैकेज ठग्स एंड क्रुक्स कम्पनी डाट काम के नाम पर परिकल्पित किया है.

कुल मिलाकर सुधा जी की लेखनी से निसृत व्यंग्य लेख उनकी परिपक्व वैचारिक अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं. व्यंग्य जगत को उनसे निरंतरता की उम्मीद है. मेरी कामना है कि उनका अनुभव केनवास और भी व्यापक हो तथा वे कुछ शाश्वत लिखें. यह किताब बढ़िया है, खरीदकर पढ़ना और पढ़ने में समय लगाना घाटे का सौदा नही लगेगा, इसकी गारंटी दे सकता हूं.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक समीक्षा ☆ सिलसिला चलता रहेगा – डॉ मुक्ता ☆ समीक्षा – सुश्री सुरेखा शर्मा

☆ पुस्तक समीक्षा ☆ सिलसिला चलता रहेगा – डॉ मुक्ता ☆ समीक्षा – सुश्री सुरेखा शर्मा ☆

पुस्तक – सिलसिला चलता रहेगा (काव्य-संग्रह )

लेखिका -डाॅ• मुक्ता

प्रकाशक – समदर्शी प्रकाशन, मेरठ (उ•प्र•)

संस्करण – प्रथम जुलाई 2021

पृष्ठ संख्या – 120

मूल्य – 160₹

निर्मम सच्चाईयों से परिचय करवाती कविताएँ – सुश्री सुरेखा शर्मा

सुश्री सुरेखा शर्मा

 ‘ऐ मनवा !

 चल इस जहान को तज

 कहीं और चलें

 जहाँ न हो कोई भी तेरा-मेरा

 और न हो ग़मों का बसेरा

 वहीं अपना आशियाना बसाते हैं।’

उपर्युक्त काव्य-पंक्तियाँ हैं वरिष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद्, पूर्व निदेशक हरियाणा साहित्य अकादमी, माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत डाॅ मुक्ता जी के नवीनतम काव्य-संग्रह ‘सिलसिला  चलता रहेगा ‘ की कविता ‘मेरी तन्हाई ‘ से। कोरोना काल में जहाँ हमें स्वयं के बारे में ही सोचने का समय नहीं मिल रहा था, वहीं विदुषी डाक्टर मुक्ता जी ने अपने अनुभवों, अपनी संवेदनाओं एवं गंभीर चिंतन को शब्दों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति कविताओं के रूप में दी है। ‘सिलसिला चलता रहेगा ‘काव्य-संग्रह  छोटी-बड़ी 82 कविताओं को समेटे हुए है। पहली कविता ‘संस्कृति और संस्कार’ से लेकर अंतिम कविता ‘संस्कार व अहंकार’ कविताएं अपने भीतर संकेतों और बिम्बों के साथ दर्द, आकुलता और बेचैनी की छटपटाहट लिए हुए हैं। तनाव-ग्रस्त जीवन में यथार्थ का बोध व्याप्त है । शीर्षक कविता ‘सिलसिला चलता रहेगा ‘ की कुछ पंक्तियाँ बानगी के रूप में देखिए —– हैरान हूँ यह सोचकर/ कैसे जिन्दगी गुज़र गई/ होंठ सिए/ ज़िल्लत सहते-सहते/ पर उसे कोई रहनुमा न मिला/ वह दरिंदा सितम ढाता रहा / और वह मासूम ज़ुल्म सहती रही’

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित)

कवयित्री के स्वर में आक्रोश है; जीवन के यथार्थ को पकड़ने की आकुलता है, जो संवेदनहीनता और समय की विसंगतियों को प्रस्तुत करती व मनोमस्तिष्क को झकझोरती हैं। बहुत कुछ अनकहा हृदय में गूँजता रहता है; कल्पना का आदर्श और यथार्थ का भयावह रूप पाठक को झिंझोड़ता है। ‘देश जल रहा है’, ‘शर्म आती है’, ‘ज़मीर’ व ‘वजूद’ कविताएं मानो कवयित्री के रक्त में प्रवाहित होती रहती हैं और वे उसी प्रकार पाठक की भावनाओं को भी कुरेदती हैं।

एक बानगी देखिए – ‘शर्म आती है यह सोच कर/हम उस देश के वासी हैं/ जहाँ एक मिनट में होता है/ चार महिलाओं की/ अस्मत से खिलवाड़  / सामूहिक बलात्कार ही नहीं होता/ उन्हें जिंदा जलाया जाता है।’

एक और उदाहरण —‘मेरा देश जल रहा /धर्म, जाति, मज़हब के /असंख्य शोलों से दहक रहा/ धू-धू कर जल रहे लोगों के घर /उन्माद में अग्नि की भेंट ।’ 

कविता का एक-एक शब्द चोट करता हुआ प्रतीत होता है। आज जब कदम-कदम पर आतंकी प्रलय की सिहरन हमें बेचैन करती है और इंसानियत स्वार्थ के पापकुण्ड में डूब चुकी है। कविता “लग गया ग्रहण” को पढ़कर पाठक इसी मनःस्थिति से स्वयं को गुज़रता हुआ पाता है। किसी भी रिश्ते पर विश्वास नही रहा–ये पंक्तियाँ देखिए– ‘हैरत होती है यह देखकर/ रिश्तों को लग गया ग्रहण/ नहीं रहा कोई भी रिश्ता पावन/ पंद्रह वर्षीय किशोरी के साथ/ भाई करता रहा दुष्कर्म।’

‘सिलसिला चलता रहेगा’ मनुष्य के हृदय पर दस्तक देता, कचोटता व झिंझोड़ता ऐसा काव्य-संग्रह है, जो एक ऐसे चिन्तन का आग्रह करता है; जहाँ मानवीयता को बचाए रखना ज़रूरी है। इस संग्रह की कविताओं में पीड़िता व उपेक्षिता की वेदना को सूक्ष्मता से चित्रित किया गया है। कवयित्री  ने समय और परिस्थितियों को अपनी लेखनी से कागज़ पर बखूबी उकेरा है। कवयित्री ने नितांत निजी भावों में कविताएँ रची हैं तथा वे अपने परिवेश के घटनाक्रम के साथ विभिन्न प्रकार की विषम व असामान्य परिस्थितियों में घर-परिवार, समाज और देश की चिंता ही नहीं करतीं, बल्कि वे भारतीय संस्कृति की पक्षधर हैं। सो! उन्होंने नयी-पुरानी पीढ़ी की विचारधारा से संबंधित सभी पहलुओं को उजागर किया है। ‘सवाल उठने लगे’,’मर्मांतक व्यथा’, ‘दहलीज़ ‘, ‘अंतर्मन की चीत्कार’, ‘पहचाना मैम’ जीवन-संघर्ष से सरोकार रखती ऐसी संवेदनशील कविताएँ हैं, जिन में गहन मर्म छिपा है। समाज में घट रही घटनाओं को जीवन का कटु सत्य मानकर कवयित्री का संवेदनशील मन चीत्कार कर उठता है। ‘अन्तर्मन की चीत्कार’ कविता की बानगी द्रष्टव्य है —

‘चार दिसंबर प्रातः/अखबार हाथ में लेते ही/  हृदय आहत हुआ/ अंतर्मन चीत्कार कर उठा/ नौ साल की बच्ची से पिता द्वारा दुष्कर्म /आठ साल की बच्ची का बलात्कार/ दस वर्ष की मासूम  बच्ची ••••हवस का शिकार हुई /ये घटनाएँ अंतर्मन को झिंझोड़ती हैं/ आखिर क्यों•••कब तक चलेगा यह सिलसिला••••?/ यह प्रश्न हृदय को कचोटता /हर पल उद्वेलित करता।’ संग्रह की कविताओं में दम तोड़ते मूल्य, समाजिक विघटन एवं तार-तार होते पारिवारिक रिश्तों पर आक्रोश  प्रकट किया गया है।

आत्मा की अभिव्यक्ति के साथ कविता का संवेदन तत्व संपूर्ण जगत् से जुड़ता है। इन तमाम जटिलताओं के होते हुए भी कविता हमारी संवेदना के क़रीब प्रतीत होती है। इस  काव्य-संग्रह में उन सभी अवांछित विद्रूपताओं व विसंगतियों का उल्लेख हुआ है, जो आज समाज में घटित हो रही हैं। भारतीय संस्कारों के स्खलन व सामाजिक-मूल्यों के विघटन के कारण जीवन-शैली में अनुभूत बदलावों का भी कवयित्री ने अपनी कविताओं में बेबाक वर्णन किया है। ‘सिलसिला चलता रहेगा’ काव्य-संग्रह की प्रथम कविता ‘संस्कृति और संस्कार’ की बानगी देखते हैं, जो उपर्युक्त कथन की पुष्टि करती है– ‘संबंध-सरोकार मुँह छिपा रहे/ और अजनबीपन एहसास/ सुरसा के मुख की भाँति पाँव पसार रहा/ नहीं रहा किसी को किसी से सरोकार/ विश्वास हर किसी को छल रहा।’ इसी प्रकार —-‘धन, पैसा, रुतबा/ हरदम साथ निभाते नहीं/ संसार मृगतृष्णा/ इनसान व्यर्थ ही इसके पीछे/ बेतहाशा दौड़ा चला जाता/ अंतिम  समय में/ कुछ भी उसके साथ जाता नहीं।’

‘सिलसिला चलता रहेगा’ की कविताओं को वाह-वाह की नहीं, अपितु आह व दर्द की अनुभूति की आवश्यकता है। करुणा कविता की जननी है। इसलिए बिना आह के कविता अधूरी है। किसी की पीड़ा को महसूस करना संवेदनशील व्यक्ति की पहचान होती है और उस पीड़ा को शब्दों में पिरो डालना कवयित्री की विशेषता है। एक बानगी देखिए – ‘बलात्कार पीड़ित लड़की/ जो पहले आज़ादी से घूमती थी/वही आज डरी-सहमी सी रहती है,’ उस मासूम की अंतहीन पीड़ा को अभिव्यक्ति प्रदान करती है।

इसी श्रृंखला में ‘किसान और सैनिक’ कविता की कुछ पंक्तियाँ देखिए, जो हृदय में टीस पैदा करती हैं— ‘किसान का आत्मज/ जब सीमा पार शहीद होता/ हृदय क्रन्दन कर उठता/ और दसों दिशाएँ कर उठती चीत्कार/ हवाएँ सांय-सांय कर/ धरा को कंपायमान करती/ और जीवन में सुनामी आ जाता।’

इस संग्रह में समाहित कविताओं के विषय बहुआयामी हैं। कवयित्री ने मानव जीवन के प्रत्येक पहलू का बहुत ही सूक्ष्मता से अध्ययन किया है, जीवन के कटु यथार्थ को उसकी पूर्णता में देखा है। बूढ़े माँ-बाप के प्रति बच्चों के असंवेदनशील व्यवहार को कवयित्री ने ‘मर्मांतक पीड़ा’  कविता में व्यक्त किया है। बच्चों की अपने माँ-बाप के प्रति असंवेदनशीलता को जिस ढंग से व्यक्त किया है, वह समाज के कटु यथार्थ  से परिचय कराता है– ‘बेटे ने विवाहोपरांत/ उसे घर से बाहर का रास्ता दिखाया/ और वह वर्षों से झेल रही है/ मर्मांतक पीड़ा/ नहीं समझ पाता मन/ जिसने अपने मुँह का निवाला/ अपनी संतान को खिलाया/ वही पड़ी है आज बेहाल/

शायद ! प्रतीक्षारत।’ कविता सिर्फ़ किसी दर्द का इतिहास ही नहीं, बल्कि खुशी का गीत भी होती है। कविता को जहां आत्मा की अभिव्यक्ति कहा गया है, वहीं कविता कर्म भी है। अनेक मनोभावों को व्यक्त करती ‘सिलसिला चलता रहेगा’ की कविताएँ स्वयं इसके शीर्षक को सार्थक करती हैं। कविताओं का जीवन के साथ जुड़ाव है और वे पाठक के साथ सीधा संवाद करती प्रतीत होती हैं। नि:संदेह आज के सामाजिक परिवेश में कदम-कदम पर स्वार्थी व मुखौटाधारी लोगों से अक्सर सामना होता रहता है। ‘ये कैसे रिश्ते’ कविता के माध्यम से कवयित्री ने ऐसे लोगों के चेहरे से मुखौटा उतारने का बखूबी प्रयास किया है; जिनका व्यवहार अंधेरे में अशोभनीय व निंदनीय होता है और दिन के उजाले में उससे सर्वथा विपरीत भासता है। इसका सशक्त उदाहरण द्रष्टव्य है—‘पिता के दोस्त की छात्रा को/ काॅलेज छोड़ने और लेने जाना/ रास्ते में ज़ोर-ज़बरदस्ती करना/ खेतों में ले जाकर दुष्कर्म का प्रयास/ भाई की उपस्थिति में अश्लील हरकतें/ यह कैसे रिश्ते/ यह कैसा जग-व्यवहार/  जहाँ अपने, अपने बनकर/ कर रहे मासूमों का शील-हरण।’    

डाॅ मुक्ता संवेदनशील कवयित्री हैं। उनके मन की छटपटाहट समाज के उपेक्षित वर्ग तक पहुंचती हैं और उनका हृदय करुणा, प्रेम और दर्द से आप्लावित है, मानो दर्द का समन्दर ठाठें मार रहा है। कवयित्री ने अपने दिल के दर्द व आक्रोश को अपनी रचनाओं का आधार बनाया है। शब्द-चित्र खींचती-सी सभी कविताएँ अपने मन में गहन अर्थबोध सेमेटे हुए हैं और तप्त हृदय को शांत करती हैं। कविताओं में बिंबों के साथ-साथ प्रतीक, लक्षणा एवं व्यंजना का सौंदर्य झलकता है। यह संग्रह कवयित्री के अनुभवों, संवेदनाओं और अनुभूतियों का दस्तावेज़ है। ‘यक्ष प्रश्न’, ‘गांधारी’, ‘शबरी’, ‘धरती पुत्री’ आदि कविताएं कवयित्री की मानसिक प्रौढ़ता को प्रकट करती हुई विकास और विस्तार को आयाम देती हैं। ये कविताएं समकालीन कविताओं में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाएंगी।

उपरोक्त कृति में लंबी कविताएँ भी हैं, जिनमें जीवन के विविध नाद हैं  – ‘गांधारी नहीं निर्भया’ कविता देखिए -‘नारी! तुम्हें गांधारी नहीं/ निर्भया बनना है/ आँखों पर पट्टी बाँध /पति के आदेशों की पालना नहीं/ दुर्गा व काली सम/ शत्रुओं  का मर्दन करना है।’

कवयित्री ने अपनी लेखनी से शब्दों को नये तेवर के साथ कवितओं में ढाला है। कवयित्री के अंतर्मन में एक सागर अहर्निश उथल-पुथल करता रहता है, जिसमें भावों का मन्थन चलता है। आजकल रिश्ते टूटते जा रहे है और उनकी अहमियत रही नहीं;  हम एक-दूसरे से दूर अपने-अपने द्वीप में कैद होते जा रहे हैं। आजकल अक्सर घरों में संवादहीनता के कारण सन्नाटा पसरा रहता है; मतभेद के साथ-साथ मनभेद होते हैं। इन असामान्य परिस्थितियों में कवि मन का उद्वेलन कागज़ पर उतरकर कविता का रूप धारण कर लेता है। ‘आलीशान इमारतें’ कविता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, तनिक बानगी देखिए— ‘आलीशान घरों की/ इमारतों के अहाते में/ पारस्परिक वैमनस्य फलता-फूलता / ईर्ष्या- द्वेष का एकछत्र साम्राज्य होता/ अजनबीपन का एहसास होता/ जहां मतभेद नहीं/ मनभेद सदैव हावी रहता/ क्योंकि संवादहीनता /संवेदनहीनता की जनक होती।’

‘सिलसिला चलता रहेगा’ संग्रह की कविताएँ पठनीय ही नहीं, चिंतनीय व मननीय हैं। ‘संस्कृति और संस्कार’ से शुरू होकर ‘अंतिम कविता  ‘संस्कार व अहंकार’ शीर्षक से है। इन सभी कविताओं में आज के समय की विद्रूपता, विडम्बना, शोषण, बलात्कार का चेहरा बार-बार दिखायी देता है। इन कविताओं में अकुलाहट है,  छटपटाहट है, बेबसी है।  ‘उन्नाव की पीड़िता’ ऐसी ही एक लंबी कविता है, जिसमें कवयित्री के मन की वेदना-पीड़ा अत्यंत मार्मिक शब्दों में अभिव्यक्त हुई है। कुछ पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं — ‘उन्नाव की पीड़िता/ एक वर्ष नौ दिन/ ज़ुल्मों के प्रहार सहन करती रही/ तिल-तिल कर जीती- मरती रही/ चार दरिंदों द्वारा बलात्कार/ पीड़िता असहाय दशा में/ हर दिन नये ज़ुल्म का शिकार होती रही।

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 हम उनकी बेहाली पर/ मन मसोसकर रहे जाएंगे/ और आँसू बहाने के सिवाय/ कुछ कर नहीं पाएंगे ।’

‘सिलसिला चलता रहेगा’ संग्रह की कविताओं में समसामयिक चिंताओं से लेकर वैश्विक चिंतन तथा देश-विदेश की घटनाओं तक को अभिव्यक्ति प्राप्त है। आज के युग में सुरसा के मुख की भांति बढ़ती संवेदनहीनता प्रमुख चिंता का विषय है। कविताओं के विषय रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव हैं, जो कभी खुशी दे जाते हैं, तो कभी नितांत उदासी। इसलिए ही  कवयित्री कहती हैं—-‘लम्हों की किताब है ज़िन्दगी/ जिसमें अंकित रहता/ जीवन-भर का लेखा-जोखा/ सुख-दु:ख, खुशी-ग़म, हानि लाभ/

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जो मिला है/ उसमें संतोष पाएँगे/ जो नहीं मिला/ उसे पाने का सार्थक प्रयास/ ताकि चलता रहेगा खुशी से/ ज़िन्दगी का यह सिलसिला ।’ ये कविताएँ सरल भाषा में पाठकों से दैनिक संवाद करती भासती हैं। कविताओं में जीवन के अनेक रंग हैं, आत्मचिंतन है, स्मृतियाँ हैं, समकालीन विचारधारा की सोच है। भाषा सरल, सहज व सुगम्य है । कहीं-कहीं गद्यात्मकता का अनुभव भी होता है। काव्य-संग्रह पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है। कवयित्री ने जीवन के कटु यथार्थ व मार्मिक अनुभूतियों को सत्यता से स्वीकार कर बखूबी उकेरा है, जो श्लाघनीय है। ये कविताएं मानो कवयित्री की आत्मा की पुकार हैं, जो सामान्य-जन के लिए न्याय की मांग करती हैं। ‘सिलसिला चलता रहेगा ‘काव्य-संग्रह का हिन्दी जगत् में हृदय से स्वागत किया जाएगा। डाक्टर मुक्ता जी को इस कृति के लिए हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ। वे स्वस्थ रहें एवं दीर्घायु हों और अपनी लेखनी से साहित्य मोती लुटाती रहें।

शुभकामनाओं के साथ  —-

सुरेखा शर्मा लेखिका /समीक्षक

पूर्व हिन्दी सलाहकार सदस्या नीति आयोग दिल्ली।

हिन्दी सलाहकार सदस्या हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली।

संयुक्त मंत्री प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन( प्रयाग) गुरुग्राम।

498/9-ए सेक्टर द्वितीय तल, नज़दीक  ई•एस•आई• अस्पताल, गुरुग्राम – पिन कोड -122001.

मो•नं• 9810715876

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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