श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – बुढ़ापा।)

☆ लघुकथा # 42 – बुढ़ापा  श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

अम्मा क्या हो गया? आज सुबह जल्दी उठकर तुम खाना बना रही हो। अम्मा से पूछा अमित ने।

बेटा आज तुम्हारे दादा-दादी का श्राद्ध है।

तभी बहू अवंतिका भी आ गई उसने कहा क्या हो गया मां बेटे हल्ला मचा रहे हो ये श्राद्ध क्या होता है ?

बेटे जो हमारे पूर्वज भगवान के पास चले गये, या जिंदा नहीं है। पितृ पक्ष  मे धरती पर आते हैं उनके पसंद के  पकवान बनाकर ब्राह्मण को भोजन कराते और रुपया वस्त्र देकर विदा करते हैं। इसी को श्राद्ध कहते हैं।

बहू ने कहा – क्या माँ यह सब  दिखावा करके उनकी आत्मा को शांति मिलती है? पता नहीं बहू लेकिन मैंने सोचा तुम्हारे टिफिन के लिए भी कुछ अच्छा बना देती हूं और इसी बहाने ऐसा सोचो कि हम लोग अच्छे पकवान बनाकर खा लेते हैं।

नवमी और अमावस्या के दिन मेरी मां और सास भी बनाती थी।

सुन बेटा अमित मुझे कुछ पैसे दे देना तुम लोग तैयार हो जाओ नाश्ता कर लो तुम्हारे लिए टिफिन पैक कर दिया है।

तभी बहू ने कहा – माँ मैं खीर तो ले जाऊंगी पर पूरी की जगह मुझे रोटी दे दो और थोड़ा ही रखना मुझे ज्यादा तेल का खाना पसंद नहीं है।

इतना सब जब आपने बनाया है तो पैसे लेकर क्या करेंगे।

बेटा बाजार से जलेबी रसगुल्ला और समोसे भी लाऊंगी।

तो ऐसा क्यों नहीं कहती मां कि आपका खाने का मन है और दादा दादी सास का बहाना कर रही हैं।

तभी पिताजी को जोर से गुस्सा आ गया उन्होंने कहा बहू और अमित तुम लोगों के पैसों की  कोई जरूरत नहीं है। देखो कमला जितना हो सके तुम उतना ही ढंग से श्राद्ध करो और पूजा भी अब हमें कमी कर देनी चाहिए क्योंकि अब यह हमारे ऊपर एहसान कर रहे हैं। हमारे मरने  के बाद श्राद्ध का  नाटक मत करना।  

अमित ने कहा मां आपको क्या चाहिए? आप बताओ मैं बाजार से लाता  हूँ। थोड़ी देर बाद ऑफिस चला जाऊंगा।

नहीं बेटा रहने दो? अवंतिका बहू  सच बोल रही है। फालतू फिजूल खर्ची करने की कोई जरूरत नहीं है।

तू मेरा भी श्राद्ध,  कर्मकांड और ब्राह्मण को बुलाकर भी कुछ मत देना, ज्यादा खर्च मत करना क्योंकि श्राद्ध तो श्रद्धा से होती है…।

उनकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं।

अच्छा है बेटा जो हमारे जमाने में हमारे माँ-बाप हमें ज्यादा नहीं पढ़ा पाये, नहीं तो मुझे लगता है कि यह संस्कार जिंदा नहीं रहते।

हे प्रभु किसी को बुढ़ापा न देना ये बहुत लाचारी से भरा होता है।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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