श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  नानी / दादी की स्मृतियों में खो जाने लायक संयुक्त  परिवार एवं ग्राम्य परिवेश में व्यतीत पुराने दिनों को याद दिलाती एक अतिसुन्दर मौलिक कविता   “ गाठोडे”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 41 ☆ 

 ☆  गाठोडे 

 

कुठे गेले आजीबाई

तुझे गाठोडे ग सांग।

खाऊ, खेळणी, औषध

यांची देत आसे बांग।

 

गाठोड्यात पोटलीची

असे जादू  लई भारी।

क्षणार्धात दिसेनासी

होई समूळ बिमारी।

 

काच कांगऱ्या कवड्या

खेळ पुन्हा रोज रंगे।

सारीपाट  सोंगट्यांची

हवी मला जोडी संगे।

 

मऊशार उबदार

तुझी गोधडी जोडाची।

जादू तिची वाढविते

कशी रंगत स्वप्नाची।

 

गाठोड्याची कळ तुझ्या

कुणी दाबली ग बाई।

सर त्याची कपाटाला

कशी येईल ग बाई।

 

श्रीमतीचे आईचे हे

भूत जाईल का देवा

गाठोड्याच्या मायेचा तो

पुन्हा देशील का ठेवा।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments