श्री सुरेश पटवा 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। 

ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए श्री सुरेश पटवा जी  जी ने अपनी शीघ्र प्रकाश्य कथा संग्रह  “प्रेमार्थ “ की कहानियां साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार किया है। इसके लिए श्री सुरेश पटवा जी  का हृदयतल से आभार। इस सन्दर्भ में आज प्रस्तुत है  सुप्रसिद्ध कहानीकार, नाटककार एवं समीक्षक श्री युगेश शर्मा जी की प्रेमार्थ पुस्तक की प्रस्तावना। अगले सप्ताह से प्रत्येक सप्ताह आप प्रेमार्थ  पुस्तक की एक कहानी पढ़ सकेंगे ।  )

☆ कथा संग्रह – प्रेमार्थ  –  श्री सुरेश पटवा ☆ प्रस्तावना   – श्री युगेश शर्मा

मैंने साहित्य की विभिन्न विधाओं की लगभग सवा सौ पुस्तकों की प्रस्तावना, टिप्पणी, समीक्षा लिखी है। इनमें बहुसंख्यक पुस्तकें वे हैं, जो कल्पना के धरातल पर साकार हुई हैं। साहित्यिक लेखन के क्षेत्र में सतत अध्ययन से अर्जित ज्ञान की बुनियाद पर अनुभवों का पुट देते हुए लिखने वाले लेखक कम ही हुए हैं, जिनके लेखन को कल्पना तो संपूरित मात्र करती है। इस श्रेणी के लेखकों का सृजन एकदम अल्हदा रंग और तेवर लिए हुए होता है। इन लेखकों की रचनाओं को पढ़ते समय पाठक रचना से सीधे जुड़कर लेखक के साथ-साथ चलता है और लेखक एवं पाठक के बीच कोई दूरी नहीं रह जाती। नर्मदा अंचल की ऐतिहासिक बस्ती शोणितपुर वर्तमान सोहागपुर में जन्मे श्री सुरेश पटवा की अब तक प्रकाशित छह: पुस्तकों के आधार पर नि:संकोच भाव से कहा जा सकता है कि वे साहित्य जगत में अपनी पृथक साहित्यिक पहचान रखने वाले साहित्यकार हैं। सुरेश पटवा लेखन ने ज़ाहिर कर दिया है कि उनका लेखन अल्हदा क़िस्म का है।

किसी भी विषय पर लेखक की पकड़ उसके स्पष्ट नज़रिए से अंजाम पाती  है। सुरेश पटवा की अब तक प्रकाशित पाँच किताबों 1757 से 1857 तक का रोचक सच “ग़ुलामी की कहानी”, जेम्स फ़ारसायथ का रोमांचक अभियान “पचमढ़ी की खोज”, रिश्तों के दैहिक भावनात्मक मनोवैज्ञानिक रहस्य “स्त्री-पुरुष”, सौंदर्य, समृद्धि, वैराग्य की नदी “नर्मदा” और सैद्धांतिक प्रबंधन की साहसिक दास्तान “तलवार की धार” से यह पता चलता है कि सम्बंधित विषय की गम्भीरता पूर्ण गहराई से जानकारी  के उपरांत ही उनकी कलम चलती है जो पाठक को बाँधने में सक्षम है। सुरेश पटवा भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत सहायक-महाप्रबंधक हैं। पर्यटन और कालजयी पुस्तकों का अध्ययन उनके रुचिकर विषय व शौक़ रहे हैं।

प्रेमार्थ” कहानी संग्रह उनकी सातवीं कृति है। इसमें आपकी पंद्रह कहानियाँ शामिल हैं। कुछेक रचनाएँ बुनावट, तथ्यों और शैली के आधार पर संस्मरण और रिपोर्टाज के निकट परिलक्षित होती हैं परंतु साथ ही यह बात भी स्वीकार करना होगी कि इसमें कहन का पर्याप्त पुट है जो पाठक को पूरी कहानी पढ़ने को प्रेरित करता है।

श्री पटवा के लेखन में यह अल्हदापन अनायास नहीं अपितु सायास आया है। उन्होंने पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ व्यापक स्तर पर साहित्य और वांग्यमय का अध्ययन भी किया है। नया से नया ज्ञान अर्जित करने के लिए वे सदैव तत्पर, लालायित और उत्साहित बने रहते हैं। आपके अध्ययन के विषय विविध आयामी और गम्भीर होते हैं। इतिहास से सम्बंधित पुस्तकों और दस्तावेज़ों के अध्ययन में आपकी विशेष दिलचस्पी है। आपकी दिलचस्पी देशी और विदेशी दोनों प्रकार की पुस्तकों को स्पर्श करती है। आपने “स्त्री-पुरुष” पुस्तक में देशी-विदेशी विद्वानों के काफ़ी उद्धरण दिए हैं जो उनके मंतव्यों एवं निष्कर्षों को सिद्दत के साथ प्रस्तुत करने में समर्थ हैं। श्री पटवा के साथ एक ख़ास बात यह भी जुड़ी हुई है कि वे अध्ययन के साथ पर्यटन के भी बहुत शौक़ीन हैं। उन्होंने बैंक से मिली पर्यटन सुविधा का उपयोग प्रमुख रूप से ज्ञानार्जन में किया। पर्यटन वृत्ति ने उनको ज्ञान सम्पदा के विभिन्न रूपों से परिचित कराने के साथ-साथ विस्तार से मानव प्रवृत्तियों को समझने का अवसर भी दिया है। ज्ञानार्जन की इस लम्बी प्रक्रिया ने उनके भीतर इतिहास दृष्टि पैदा की है। यह इतिहास दृष्टि उनके शोध परक लेखन को परिपुष्ट और सम्बंधित करने का साधन बनी है। इस कहानी संग्रह की कहानियों में पटवा जी के गहन गम्भीर इतिहास बोध के दर्शन होते हैं।

शोणितपूर, जो कि सौभाग्यपूर, सुहागपुर होता हुआ सोहागपुर  हो गया, के संदर्भ में आपने जो इतिहास सम्मत सटीक ब्योरे दिए हैं, वे प्रमाणित करते हैं कि इतिहास की दुनिया में श्री पटवा की गहरी पैठ है। सोहागपुर से जुड़ी कहानियों में आपने विभिन्न काल खंडों के ऐसे तथ्यों को शामिल किया है, जो आश्चर्यचकित करते हैं। मैं तो यह कह सकता हूँ कि शायद ही कोई दूसरा लेखक होगा जिसने अपनी जन्मभूमि के इतिहास और महात्म्य के बारे में इतनी व्यापक और सूक्ष्म खोज कर काफ़ी विश्वसनीय तथ्य जुटाए हों।

आजकल  कहानी जीवन की प्रतिच्छाया के रूप में लिखी जा रही है। यह सब कुछ होते हुए भी सामान्य पाठक कहानी में मनोरंजन के तत्त्वों को भी ढूँढता है। लेखक की सभी कहानियाँ भारतीय सामाजिक मूल्यों के आसपास मनोरंजक कौतूहल जागती प्रेरक संदेश देती हैं इसलिए यह पुस्तक एक उच्च कोटि का संग्रहणीय कहानी संग्रह है।

इस कहानी संग्रह की कहानियों से गुज़रते हुए कहानीकार श्री सुरेश पटवा के लेखन की दो और विशेषताओं से साक्षात्कार हुआ है। पहली, उनकी अनुभूतियों में गहराई है। उन्होंने अपनी अनुभूतियों को लेखन में उतारने में अच्छी महारत हासिल की है। “गेंदा-गुलाबो” कहानी को लें  अथवा “शब्बो-राजा” कहानी को या फिर “एक थी कमला” या “ग़ालिब का दोस्त” को लें, उनकी अनुभूतियों में गहराई के साथ प्रचुर संवेदनशीलता भी विद्यमान है। दूसरी विशेषता मुझे उनकी प्रखर स्मृति के रूप में दिखाई दी। सोहागपुर की पृष्ठभूमि पर लिखी गई कहानियों में उनके स्मृति सामर्थ्य का आल्हादकारी चमत्कार देखने को मिलता है। वे अपने बचपन के मित्रों, सोहागपुर के बुजुर्गों, ख़ास व्यक्तियों और स्थानों के नामों का यथार्थ उल्लेख करते हैं। अचरज तो यह पढ़कर होता है कि वे छोटी जातियों के संगी साथियों का संदर्भ एवं नामोल्लेख करने में भी उदारता का भरपूर परिचय देते हैं। इन्ही वास्तविक ब्योरों के कारण कहानियाँ अधिक पठनीय और रोचक बन पड़ी हैं। वे स्वयं के शुरुआती जीवन की सच्चाइयों को भी यथाप्रसंग प्रस्तुत करने में चूकते नहीं है।  वे इस सच को भी नहीं छुपाते कि बचपन में रेल्वे स्टेशन पर मेहनत मज़दूरी करते और चाय बेचा करते थे। उन्होंने अपने खून के रिश्तों के खुरदरेपन को भी प्रस्तुत करने में गुरेज़ नहीं किया है। “एक थी कमला” कहानी इसका प्रमाण है।

मुझे यह कहने में क़तई संकोच नहीं है कि संग्रह की दो-तीन कहानियाँ कथाशिल्प की कसौटी पर चाहे शत-प्रतिशत खरी न उतर रही हों, लेकिन उनमें रोचकता और कहन की कोई कमी नहीं प्रतीत होती। इन कहानियों की कथावस्तु की नव्यता और नैसर्गिकता निस्संदेह आकर्षित करती है। इन कहानियों के पठनोपरांत पाठक निश्चित ही अनुभव करेंगे कि उन्होंने ऐसा कुछ पढ़ा है, जो उनको कुछ ख़ास दे रहा है। एक बड़ी बात तो यह है कि संग्रह की कोई भी कहानी पाठक को शिल्पगत चमत्कार पैदा करने के लिए न तो यहाँ-वहाँ भटकाती है और न ही किसी प्रकार की उपदेशबाज़ी के फेर में पड़ती है। यह बात उल्लेखनीय है कि प्रत्येक कहानी में ऐसा कुछ ख़ास अवश्य है, जो पढ़ते-पढ़ते नए ज्ञान के साथ-साथ जीवनोपयोगी मंत्र भी सौंप जाती है। इन कहानियों को पढ़ते-पढ़ते पाठक के मन में यह अहसास अवश्य जागेगा कि उसने जीवन के एक यथार्थ से साक्षात्कार किया है।

संग्रह की कहानियों की मौलिकता और जीवंतता भी बरबस आकर्षित करती है। कुछ कहानियों में आंचलिकता उनकी प्रमुख विशेषता के रूप में उभर कर आई है। विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व के धनी श्री आर. के. तलवार की महानता को संग्रह की प्रथम कहानी “अहंकार” में रेखांकित किया गया है। लेखक सुरेश  पटवा अस्सी वर्षीय यशस्वी जीवन यात्रा पूर्ण करने वाले श्री तलवार की दिव्य चेतना से अभिभूत है। पुदुच्चेरी में श्री अरविंद आश्रम में लेखक की उस महामानव से भेंट हुई थी। कहानी में अहंकार को बहुत ही अच्छी तरह समझाया गया है। “ग़ालिब का दोस्त” कहानी में महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब और धनपति बंशीधर की आदर्श दोस्ती को बड़ी कुशलता के साथ कहानी में ढाला गया है। सच्ची मित्रता न तो जाँत-पाँत देखती है और न अमीर गरीब। दिनों मित्रों का वार्तालाप मन में आत्मीयता का रस घोल देता है। “अनिरुद्ध ऊषा” कहानी में भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और शोणितपुर की राजकुमारी ऊषा की प्रेम कहानी को ऐतिहासिकता के पुट के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह कहानी इतनी विकट है कि श्रीकृष्ण और शिवजी को युद्ध में आमने सामने खड़ा कर दिया है। “कच-देवयानी” भी शोणितपुर की ही प्रेम कहानी है। कहानी में बहुत अंतर्द्वंद है। यह कहानी महाभारत में भी वर्णित है। कच बृहस्पति के पुत्र थे और देवयानी शुक्राचार्य की पुत्री। जब कच ने देवयानी का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया तो उसने कच को श्राप दे दिया था। कच भी शांत नहीं रहा उसने भी देवयानी को श्राप दिया कि कोई भी ऋषि पुत्र उससे विवाह नहीं करेगा और वह पति प्रेम को तरसेगी। “गेंदा और गुलाबो” कहानी भी कम रसभरी नहीं है। इस कहानी के साथ प्रख्यात सोहागपुरी सुराही की अंतर्कथा भी चलती है। सतपुड़ा अंचल में परवान चढ़ी एक और प्रेम कहानी “शब्बो-राजा” शीर्षक से संग्रह में शामिल है। कहानी में प्रेम, षड्यंत्र और हत्या का त्रिकोण है। उसमें प्रतिशोध की आग भी है। “सोहिनी और मोहिनी” कहानी में राजाओं की रंगीन ज़िंदगी का चित्रण है। कहानी के केंद्र में सोहिनी और मोहिनी नाम की दो युवा नर्तकियाँ हैं। हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि रीवा के राजा मोहिनी से और शोभापुर के राजा सोहिनी से विवाह रचाते हैं।

एक थी कमला” एक दर्द भरी कहानी है। कमला के जीवन की त्रासदी उद्वेलित करती है। वह जी जान से सबकी सेवा करती है, किंतु उसको जीवन में वांछित सुख नहीं मिलता। “अंग्रेज़ी बाबा से देसी बाबा” कहानी अन्य कहानियों से भिन्न पृष्ठभूमि की कहानी है। यह कहानी प्रख्यात समाज सेवी मुरली धर आमटे द्वारा की गई अद्वितीय कुष्ठ सेवा का इतिहास बयान करती है। उन्होंने सम्पन्न परिवार एवं अंग्रेज सरकार के महत्वपूर्ण सुख सुविधाओं की छोड़कर खुद को कुष्ठ मुक्ति आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया था। बड़ी प्रेरक कहानी है यह। “गढ़चिरोली की रूपा” एक ऐसी हथिनी की कहानी है, जिसको अनेकों कोशिशों के बाद भी मातृत्व सुख नहीं मिला। वह बसंती नामक दूसरी हथिनी की सौतिया डाह की शिकार बनी। कहानी बताती है कि सौतिया डाह मनुष्यों की तरह जानवरों में भी व्याप्त है। “बीमार-ए-दिल” एक रोचक कहानी बन पड़ी है। कहानीकार सुरेश पटवा को दिल के आपरेशन से गुजरना पड़ा। जिसकी अनुभूति तटस्थ मौज मस्ती में लिखी है। आपरेशन के भय का चित्रण तो पढ़ते ही बनता है। “साहब का भेड़ाघाट दौरा” शरद ऋतु की चाँदनी रात में अतीव सौंदर्य प्रकटन के वर्णन समेटे है। “सभ्य जंगल की सैर” वनीय सौंदर्य को समेटे उत्कृष्ट व्यंगात्मक कहानी है। “भर्तृहरि वैराग्य” कहानी में उज्जैन के राजा भर्तृहरि के वैराग्य-पथ पर अग्रसर होने का चित्रण है। राजा की पत्नी की बेवफ़ाई उसका कारण बनी। यह कहानी मित्रों की उज्जैन से भोपाल की यात्रा के दौरान संवाद शैली में आकार लेती है। चार दोस्तों में एक स्वयं लेखक भी है। “ठगों का काल कैप्टन स्लीमैन” बहुत रोचक अन्दाज़ में लिखी गई एतिहासिक कहानी है।

इन कहानियों की रचना में श्री सुरेश पटवा का श्रम प्रणम्य और कहानियों के लिए शोध कार्य अभिनंदनीय है। संग्रह की कहानियाँ पठन आनंद और प्रेरणा दोनों से पाठकों को आनंदित करेंगी, ऐसा विश्वास है।

© श्री युगेश शर्मा

कहानीकार, नाटककार एवं समीक्षक

‘व्यंकटेश कीर्ति’, 11 सौम्या एनक्लेव एक्सटेंशन, चूना भट्टी, भोपाल-462016 मो 9407278965

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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