श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।” )

 ☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #50 – माँस का मूल्य ☆ श्री आशीष कुमार☆

मगध सम्राट् बिंन्दुसार ने एक बार अपनी राज्य-सभा में पूछा – “देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है…?” मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोचमें पड़ गये। चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आद तो बहुत श्रम बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो। ऐसी हालत में अन्न तो सस्ता हो नहीं सकता.. शिकार का शौक पालने वाले एक अधिकारी ने सोचा कि माँस ही ऐसी चीज है, जिसे बिना कुछ खर्च किये प्राप्त किया जा सकता है…..उसने मुस्कुराते हुऐ कहा – “राजन्… सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ माँस है। इसे पाने में पैसा नहीं लगता और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है।”

सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन मगध के प्रधान मंत्री आचार्य चाणक्य चुप रहे। सम्राट ने उनसे पूछा – “आप चुप क्यों  हैं ? आपका इस बारे में क्या मत है?” चाणक्य ने कहा – “यह कथन कि माँस सबसे सस्ता है…., एकदम गलत है, मैं अपने विचार आपके समक्ष कल रखूँगा…. ।” रात होने पर प्रधानमंत्री सीधे उस सामन्त के महल पर पहुंचे, जिसने सबसे पहले अपना प्रस्ताव रखा था।

चाणक्य ने द्वार खटखटाया….सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर वह घबरा गया। उनका स्वागत करते हुए उसने आने का कारण पूछा? प्रधानमंत्री ने कहा – “संध्या को महाराज एकाएक बीमार हो गए हैं उनकी हालत नाजुक है। राजवैद्य ने उपाय बताया है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला माँस मिल जाय तो राजा के प्राण बच सकते है….आप महाराज के विश्वास पात्र सामन्त है। इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का दो तोला माँस लेने आया हूँ। इसके लिए आप जो भी मूल्य लेना चाहे, ले सकते है। कहें तो लाख स्वर्ण मुद्राऐं दे सकता हूँ…..।” यह सुनते ही सामान्त के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। वह सोचने लगा कि जब जीवन ही नहीं रहेगा, तब लाख स्वर्ण मुद्राऐं किस काम की?

उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी चाही और अपनी तिजोरी से एक लाख स्वर्ण मुद्राऐं देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें।

मुद्राऐं लेकर प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामन्तों, सेनाधिकारियों के द्वार पर पहुँचे और सभी से राजा के लिऐ हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ….सभी ने अपने बचाव के लिऐ प्रधानमंत्री को दस हजार, एक लाख, दो लाख और किसी ने पांच लाख तक स्वर्ण मुद्राऐं दे दी। इस प्रकार दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले अपने महल पहुँच गऐ और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्राऐं रख दी….!

सम्राट ने पूछा – “यह सब क्या है….? यह मुद्राऐं किस लिऐ है?” प्रधानमंत्री चाणक्य ने सारा हाल सुनाया और बोले – “दो तोला माँस खरीदने के लिए इतनी धनराशि इक्कट्ठी हो गई फिर भी दो तोला माँस नही मिला। अपनी जान बचाने के लिऐ सामन्तों ने ये मुद्राऐं दी है। राजन अब आप स्वयं सोच सकते हैं कि मांस कितना सस्ता है….??

जीवन अमूल्य है।

हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी होती है, उसी तरह सभी जीवों को प्यारी होती है..! इस धरती पर हर किसी को स्वेछा से जीने का अधिकार है…

 

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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