सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  

(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)

☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग – 12 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆ 

(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)

(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका  हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )  

मेरी एम.ए. की पढ़ाई ज़ोरों से चल रही थी। लेकिन मुझे प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण हुए बिना एम.ए. में प्रवेश नहीं मिलने वाला था। दीदी ने मुझसे पूरी तैयारी करवा ली और मैं प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण हो गई। मेरे मन में मिश्रित भावनाएं थी। एक तरफ जिज्ञासा और खुशी, तो दूसरी तरफ पढ़ाई की जिम्मेदारी। एक तरफ मम्मी पापा के सेहत की बहुत चिंता थी। वैसे देखा जाए तो मुझे और दीदी को यह जिम्मेदारी उठानी थी और हमने वह सफलता से उठाई भी।

नृत्य के पहले दिन की और अभी की पढ़ाई, रियाज में जमीन-आसमान का अंतर था। अब शारीरिक और मानसिक गतिविधि के माध्यम से दर्शकों तक भावनाएं पहुंचानी थी। शारीरिक हलचल मतलब अंग, प्रत्यंग और उपंग। मतलब हाथ, पैर, सिर यह शरीर के अंग; हाथों की उंगलियां, कोहनी, कंधा यह प्रत्यंग और आंख, आंख की पलक, होंठ, नाक, ठोड़ी यह उपांगे। इनके गतिविधि से और मन के भावों से अभिनय को आसान माध्यम से मुझे दर्शकों तक पहुंचाना था। निश्चित रूप से यह मेरे लिए बहुत कठीन था और इसमें बहुत एकाग्रता की जरूरत थी।

नृत्य की शुरूआत के पल में दीदी मुझे स्पर्श से मुद्रा सिखाती थी। उसकी एक संकेतिक भाषा भी निश्चित थी। स्पर्श से मुद्रा जान लेना यह मैंने बहुत आसानी से सीख लिया था और इसकी मैं अभ्यस्त हो गई थी। लेकिन अब मुझे नृत्य का अभिनय कौशल्य, उसकी उत्कृष्टता दर्शकों के मन में अलंकृत होगी ऐसे प्रस्तुत करनी थी और वह भी संगीत के सहयोग से। क्योंकि नृत्य के शुरुआत के पल में बाजू में खड़े हुए व्यक्ति को भी मैं दोनों हाथों की बगल से, सिर्फ उंगली दिखा कर भी पहचान सकती थी। लेकिन अब इन दोनों के साथ मुद्राएं गर्दन, नजर, और  चेहरे के हाव-भाव के साथ, दर्शकों को दिखानी थी। मेरे मामले में नजर का मुद्दा था ही नहीं। मुझे परीक्षक और दर्शक इनको यह चीज बिल्कुल समझ में नहीं आनी चाहिए, ऐसे मेरा अभिनय, नृत्य पेश करना था।

मुझे इस अभ्यास में सबसे ज्यादा पसंद आयी हुई रचना मतलब अभिनय के आधार पर बनी, ‘कृष्णा नी बेगनी बारू’ (कन्नड़-मतलब-कृष्णा तुम मेरे पास आओ) इस पंक्तियों में मुझे यशोदा मां के मन के भाव, मातृभाव, बाल कृष्ण की लीलाएं अभिनय से पेश करना था। इसमें बाल कृष्ण रूठा हुआ है और उसके मनाने के लिए यशोदा मां कभी मक्खन दिखाती है, तो कभी गेंद खेलने बुलाती है। और बाल कृष्ण उसे अपनी लीलाओं से परेशान करता है। आखिर में उसी के मुंह में अपनी माता को ब्रम्हांड का दर्शन करवाता है। यह दोनों भाव अलग अलग तरीके से पेश करना यह मेरे लिए बहुत मुश्किल था। मैंने वह नृत्य में मग्न होकर, पूरे मन के साथ पेश की और उस अभिनय के लिए सिर्फ परीक्षकों ने हीं नहीं अपितु दर्शकोंने की भी बहुत सराहना मिली।

प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे 

मो ७०२८०२००३१

संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी,  दूरभाष ०२३३ २२२५२७५

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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