श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है ।

प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ  के अंतर्गत आमने -सामने शीर्षक से आप सवाल सुप्रसिद्ध व्यंग्यकारों के और जवाब श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी के  पढ़ सकेंगे।  आज अंतिम में प्रस्तुत है  सुप्रसिद्ध  साहित्यकार श्री रमेश सैनी जी  (जबलपुर), श्री राजशेखर चौबे जी (रायपुर) एवं  श्री आत्माराम भाटी जी के प्रश्नों के उत्तर । ) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 70

☆ आमने-सामने  – 6 ☆

श्री रमेश सैनी (जबलपुर)

वर्तमान समय में सभी तरफ व्यंग्य पर बहुत गंभीरता से विमर्श हो रहा है, विशेषकर परसाई जी और आज लिखे जा रहे व्यंग्य के संदर्भ में। क्योंकि आज के पाठक और आलोचक इससे संतुष्ट नज़र नहीं हो रहे। एक व्यंग्य विमर्श गोष्ठी में आपके सवाल के उत्तर में यह बात उभर कर आई थी कि व्यंग्य में खतपरवार ऊग आई है, जो फसल को नष्ट कर रही है।

उक्त टिप्पणी को केंद्र में रखकर व्यंग्य में खतपरवार और अराजक परिदृश्य पर आप क्या सोचते हैं ?

इसकी सफाई कैसे संभव हैं?

जय प्रकाश पाण्डेय –

आदरणीय सैनी जी  व्यंग्य विधा के उन्नयन और संवर्धन के यज्ञ में आपका योगदान महत्वपूर्ण है, अब व्यंग्य विमर्श के आयोजन के बिना आपका खाना नहीं पचता, हम सब आप से और सबसे ही बहुत कुछ सीख रहे हैं। खरपतवार हमारे अपने ही कुछ लोग पैदा कर रहे हैं इसलिए व्यंग्य की लान में ऊग आयी जंगली घास को आप जैसे पुराने व्यंग्यकारों को निंदाई का कार्य करना पड़ेगा और जो लोग खरपतवार में खाद पानी दे रहे हैं उन्हें चौगड्डे में लाकर खड़ा करना पड़ेगा।

श्री राजशेखर चौबे (रायपुर) 

आज बहुत सारे व्यंग्यकार सत्ता के साथ खड़े होकर विपक्ष को टारगेट  करते नजर आते हैं ऐसा क्यों है ?

आप इसका क्या कारण मानते हैं?

जय प्रकाश पाण्डेय –

आदरणीय भाई, शेरदिल धाकड़ व्यंग्यकार यह तो भली-भांति जानता है कि उसका धर्म और दायित्व सत्ता पर अंकुश रखते हुए विपक्ष की भूमिका निभाना है। मीडिया जब कमजोर बना दिया जाता है, या बिक जाता है, विपक्ष भी जब तोड़फोड़ के चक्कर में विपक्ष की भूमिका ठीक से नहीं निभा पाता है तब व्यंंग्यकार ही वह महान हस्ती के रूप में विपक्ष की दमदार भूमिका निभाने में सक्षम माना जाता है। तब व्यंंग्यकार ही घोड़े की लगाम खींच खींच कर घोड़े को नियंत्रण में रख पाता है, तो आज के विकट समय में व्यंंग्यकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। जो नकली व्यंग्यकार लोभ लालच और पूंछ हिलाने के चक्कर में विपक्ष पर व्यंग्य लिखकर सत्ता पक्ष के सामने इम्प्रैशन जमाकर पुरस्कार लूटना चाहते हैं, वे व्यंंग्यकार नहीं जोकर होते हैं और सियार की खाल पहनकर कूद फांद करने में विश्वास करते हैं।

श्री आत्माराम भाटी

जयप्रकाश जी ! बतौर साहित्यकार स्वयं लिखी रचना को सम्पादित करना आसान है या किसी दूसरे की रचना को सम्पादक की नजर से देखना ?

जय प्रकाश पाण्डेय –

आदरणीय जी,स्वयं लिखी रचना को सबसे पहले सम्पादित करने और कांट-छांट करने का अधिकार, कायदे से घर की होम मिनिस्ट्री के पास होना चाहिए, फिर उसके बाद आवश्यक सुधार, संशोधन आदि स्वयं लेखक को करना चाहिए।  दूसरे की रचना को सम्पादक की नजर से नहीं बल्कि सुझाव की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। पहले किसी लेखक की रचना जब संपादक के पास प्रकाशनार्थ जाती थी तो संपादक लेखक की अनुमति लेकर छुट-पुट सुधार कर लेता था।  आजकल तो कुछ संपादक ऐसे हैं जो विचारधारा के गुलाम हैं,सत्ता के दलाल बनकर बैठे हैं, रचना मिलते ही सबसे पहले कांट-छांट कर रचना की हत्या करते हैं बिना लेखक की अनुमति लिए। फिर छापकर अच्छी रचना बनाने का श्रेय भी खुद ले लेते हैं।

समाप्त

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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