श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़  सकते हैं ।

आज प्रस्तुत है  श्री संतोष तिवारी जी की पुस्तक “रिश्तें मन से मन के” – की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 91 – रिश्तें मन से मन के – श्री संतोष तिवारी  ☆ 
 पुस्तक चर्चा

 

रिश्तों को,

गलतियाँ उतना कमजोर नहीं करती….

जितना कि,

ग़लतफ़हमियाँ कमजोर कर देती है !

रिश्ते ऐसा विषय है जिस पर अलग अलग दृष्टिकोण से हर बार एक अलग ही चित्र बनता है, जैसे केलिडोस्कोप में टूटी चूडियां मनोहारी चित्र बनाती हैं, पर कभी भी चाह कर भी पुनः पिछले चित्र नही बनाये जा सकते।

अतः हर रिश्ते में प्रत्येक पल को पूरी जीवंतता से जीना ही जीवन है।

पति पत्नी का रिश्ता ही लीजिए प्रत्येक दम्पति जहां कभी  प्रेम की पराकाष्ठा पार करते दिखते है, तो कभी न कभी एक दूसरे से क्रोध में दो ध्रुव लगते हैं।

इस पुस्तक से गुजरते हुए मानसिक प्रसन्नता हुई। सन्तोष जी का अनुभव कोष बहुत व्यापक है। उन्होंने स्वयं के या परिचितों के अनुभवों को बहुत संजीदा तरीके से, संयत भाषा मे अत्यंत रोचक तरीके से संस्मरण के रूप में लोकवाणी बनाकर लिखा है। उनकी लेखकीय क्षमताओं को देख कलम कागज से उनके रिश्ते बड़े परिपक्व लगते हैं। मुझ जैसे पाठकों से उन्होने पक्के रिश्ते बनाने में सफलता अर्जित की है। मैं पुस्तक को स्टार लगा कर सन्दर्भ हेतु  सेव कर रहा हूँ।

पढ़ने व स्वयं को इन रिश्तो की कसौटियों पर मथने की अनुशंसा करता हूँ। पुनः बधाई।

इसकी हार्ड कॉपी अपनी लाइब्रेरी में रखना चाहूंगा।

 

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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