श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “नजरअंदाज”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 66 – नजरअंदाज

अंदाज अपने- अपने हो सकते हैं। पर नज़र आने के बाद भी जिसे अनदेखा किया जाए उसे क्या कहेंगे ? खैर ये तो आम बात है, जब भी किसी को अपने से दूर करना हो तो सबसे पहले उसे उपेक्षित किया जाता है उसके बाद धीरे- धीरे इसकी मात्रा बढ़ने लगती है। अगला चरण गुटबाजी का होता है, फिर बिना बताए कहीं भी चल देना। हमेशा ये अहसास दिलाना कि तुम अनुपयोगी हो। शब्दों के तीर तो आखिरी अस्त्र होते हैं जो व्यक्ति अंतिम चरण में ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग करता है। इसका असर दूरगामी होता है। शायद इसे ही जवान फिसलना कहते हैं।

किसी भी रिश्तों से चाहें वो कार्यालयीन हो, व्यक्तिगत हो, या कोई अन्य हो। हर से व्यक्ति बहुत जल्द ऊब जाता है। नवीनता न होना, निरंतर स्वयं को इम्प्रूव न करना, ठहरे हुए जल की भाँति होना या केवल नीरसता का जामा ओढ़े, नदी की तरह लगातार चलते हुए सागर में समाहित होकर अपना अस्तित्व खो देना। 

ऐसा हमेशा से होता चला आ रहा है। कोई किसी को उपेक्षित क्यों करता है, इसके क्या कारण हो सकते हैं। ऐसे में दोनों पक्षों को क्या करना चाहिए। कैसे स्वयं को फिट रखकर श्रेष्ठ व उत्तम बनें इस ओर चिंतन बहुत जरूरी होता है। क्या कारण है कि सब कुछ जानते समझते हुए भी कोई प्रतिरोध नहीं करता। एक लगातार मनमानी करता हो दूसरा अच्छाई की राह पर चलते हुए हमेशा सत्य व सहजता से जी रहा हो ये भी एक बिंदु है कि सत्य ही जीतेगा। जिसे नजरअंदाज किया जाता है,वो आत्मनिर्भर बनने लगता है। वो अपनी छुपी प्रतिभा को निखारता है। स्वयं के ऊपर कार्य करता है। यदि व्यक्ति लगनशील हुआ तो सफल होकर दिखाता है।

वहीं कमजोर विचार वाले लोग हताश होकर दूसरों पर दोषारोपण करते हैं। या तो अपनी राह बदल लेते हैं या अवसाद के शिकार होते हैं।

नजरअंदाज करने की शुरुआत से ही हटाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। ऐसी चीजें जो किसी के  सम्मान को ठेस पहुँचाती हो वो करना शुरू कर दें, अपने आप दूरी बनने लगेगी। इसी बात से एक किस्सा याद आता है कि एक महिला हमेशा तीन राखी भेजती एक उसकी दो उसकी लड़कियों की, भाई और भतीजे के लिए। भाभी उसे पसंद नहीं थी सो नजरअंदाज करने के लिए उसने यही तरीका ज्यादा उचित समझा। तीन तिकड़ा अपशकुन होता है या नहीं ये तो पता नहीं किन्तु उसकी भाभी के मन को आहत जरूर करता जाता रहा है।

ऐसे ही बहुत से दृष्टांत हमारे आसपास रोज घटित होते हैं जिन्हें नजरअंदाज करना ही पड़ता है। जब तक बात खुलकर सामने नहीं आती तब तक लोग अपना कार्य इसी तरह चलाते रहते हैं।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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