श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “जो जस करहिं तो तस फल चाखा…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 83 ☆ जो जस करहिं तो तस फल चाखा… 

फल का क्या? कर्म करने पर मिलता है। अब समस्या ये है कि जो देंगे वही मिलेगा, ये लेन- देन किसी को भी चैन से बैठने ही नहीं देता। कोई भी एप  से जुड़ो नहीं कि तुरंत मैसेज आना शुरू हो जाते हैं अब समस्या ये है कि सारा दिन नोटिफिकेशन ही देखते रहें या कोई जरूरी कार्य भी करें। खैर तकनीकी को समझना और जानना है तो कदम बढ़ाना ही होगा। हर वर्ष एक ही राह पर चलते रहने से कभी तरक्की मिली है। इस बार कुछ नया हो ऐसी सोच के साथ पूर्वाग्रहों से मुक्त होने का मंत्र मेरे मोटिवेशनल कोच द्वारा दिया गया।

सकारात्मक सोच के साथ जो भी चलेगा वो विजेता के रूप में उभरेगा ही। संघ की परिकल्पना को अमलीजामा पहनाते हुए सबके साथ सामंजस्य बैठाने में मशक्कत तो करनी पड़ती है किंतु जान- पहचान बढ़ने से कई समस्याओं का हल चुटकी बजाते ही मिल जाता है। व्हाट्सएप पर सार्थक चैटिंग हो तो बहुत से नए रास्ते खुलते हैं जहाँ न केवल कल्पनाओं की उड़ान को पंख मिलते हैं वरन अपनी सशक्त पहचान भी बन जाती है। जो लोग दूरगामी दृष्टि के मालिक होते हैं वही लीडर के रूप में प्रतिष्ठित होकर अपना परचम फैलाते हैं।

डर- डर कर कदम बढ़ाने से भला कभी किसी को मंजिल मिली है। सार्थक करते हुए लोगों को जोड़ते जाना कोई आसान कार्य नहीं होता। मन अगर सच्चा हो और केवल सबकी भलाई का लक्ष्य हो तो आगे  बढ़कर पूरे दमखम के साथ कार्य को पूरा करने हेतु जुट जाना चाहिए। पूर्णता तक पहुँचने वाले ही शिखर पर प्रतिस्थापित होते हैं। खाली दिमाग शैतान का घर न बनने पाए इसलिए सही नेतृत्व के साथ चलते रहने में ही भलाई है। जैसा करेंगे वही मिलेगा तो क्यों न सबका हित साधें और बढ़ें।

नया वर्ष ऐसे चिंतन हेतु एक नयी ऊर्जा लेकर आता है सो हम सब चिंतन- मनन करते हुए अपने लिए भी एक मुकाम तय करें और उसे पूरा करने के लिए जुट जाएँ।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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