डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ  -साहित्य निकुंज”के  माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी  का  समाज के एक विशिष्ट वर्ग के व्यक्तित्व का चरित्र चित्रण करता बेबाक व्यंग्य   “मोहिनी मंत्र ”। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 17  साहित्य निकुंज ☆

 

☆ व्यंग्य – मोहिनी मंत्र

 

जब भगवान् विष्णु ने मोहनी रूप धारण किया तो असुर और देव सब उसे पाने के लिए   दौड़ पड़े यहाँ तक की विरागी नारद का भी मन डोल गया।

मै अभी कथा के किसी भाग तक पहुंची ही थी कि मेरा ध्यान आधुनिक काल के असुरों  देवों और नारदों की और चला गया।  .

कहते है जो मन में हो उसे कह डालना चाहिए और खास तौर पर स्त्रियों के लिए कहा जाता है की ज्यादा समय तक अपने पेट में रखती है तो गड़बड़ झाला हो जाता है यानि पेचिश की सम्भावना बढ़ जाती है।  मै नही चाहती की मै किसी गड़बड़ झाले में फसूं इसलिए उन सुंदर चरित्रों का वर्णन करने विवश हो रही हूँ जो मोहनी मन्त्र के मारे है।

अब इनमे कुछ तो ऐसे मिलेंगे जो ‘आ बैल मुझे मार’ की कहावत को चरितार्थ करते है। तो अब मै आपके कथा रस को भंग नहीं करूंगी सुनिए ….एक दिन सुबह-सुबह मुआ मोबाईल बज उठा। जैसे ही फोन उठाया एक मरदाना स्वर उभरा नमस्कार मैडम नमस्कार तो इतने लच्छेदार था भाई जलेबी इमरती क्या होगी मानो सारा मेवा मलाई मिश्रित सुनकर मै चौंक गई नमस्ते कहकर सोच में पड़ गई इतने मधुर कंठ से कोई कुंवारा ही बोल रहा है जिसे चाशनी को जरुरत है। उन्होंने बड़े ही अदब से कहा आप डॉ. साहिबा ही बोल रही है।  मैंने कहा जी कहिये क्या इलाज करवाना है वहां से स्वर फूटा अजी आप करेंगी तो हम जरुर करवा लेंगे। आपकी बात करने की अदा लाजबाव है जी।  हमसे रहा नही गया हमने कहा ‘न जान न पहचान मै तेरा मेहमान’। अरे मैम बात हो गई समझो जान पहचान हो गई मै मिलकर पहचान बनाने में विश्वास नही रखता।  आपका मधुर स्वाभाव है मिर्ची जैसा तीखापन आपको शोभा नही देता। आपके लेख की तारीफ करने के लिए फोन किया है मै भी एक लेखक हूँ। ओह्ह्ह मुझे लगा आप किसी कॉलेज के छात्र है। उनका कहना था अरे डियर आप अपना शिष्य बना लीजिये गुरु दक्षिणा मिलती रहेगी इतना सुनते ही हमने छपाक से फोन रख दिया।

अगले दिन सुबह फोन का स्वर कर्कश-सा जान पड रहा था नम्बर  बदला हुआ था। फोन उठाते ही वही स्वर राधे–राधे उभरा हमने भी राधे-राधे कहा और चुप हो गए फोन रखने लगे तो आवाज़ आई प्लीज मैडम कल की गुस्ताखी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ, आपके शहर में आया हूँ, आपके दर्शन का अभिलाषी हूँ। हमारा दिमाग गरम हो रहा, पारा आसमान छू रहा है सुनिए दर्शन करना हो तो मंदिर जाइये।  भगवान के दर्शन करेंगे तो कुछ लाभ मिलेगा बुद्धि में सुधार होगा। अरे मैडम आपके दर्शन करके हम धन्य हो जायेंगे ज्ञान बुद्धि सबका विकास हो जायेगा। आप जनाब हद पार कर रहे है और अब आपसे यही कहना है कृपा करके रोज-रोज घंटी न घनघनाये जब मुझे आवश्यकता होगी तब आपको कॉल कर लेंगे राधे-राधे ……..

इन ज्ञानी ध्यानी लेखक के विषय में सारी पोल परत—दर-परत खुलती चली गई। वह चरित्र हीन नहीं है पर महिलाओं से फोन पर बाते करने का आशिक है उनका नम्बर  पत्र  पत्रिकाओं से पढ़कर उनकी रचनाओं की तारीफ करते है भले ही रचना पढ़ी न हो पर तारीफ इतनी की जैसे घोल कर पी लिया हो और बातों के मोहजाल में इस कदर फांस लेते है लगता है मोहनी मन्त्र जैसे यंत्र की कला में पारखी है।  जो इन जैसे लोगो को समझ नही पाती वे अपनी तारीफ सुनकर लट्टू हो जाती है और इन जैसे लोग अपना समय पास करने के लिए घंटों फोन पर बाते करते है और वह डियर, डार्लिंग, मोहना, मेरी राधा आदि शब्दों की वरमाला पहनाकर फोन से ही आश्वस्त हो जाते है।

इसी तरह एक और महाशय है जो तलाकशुदा शुदा है लेकिन अब दुबारा शादी नही कर रहे बस यहाँ वहां राधा को तलाश करते है वह भी नामी है पर फिर भी परवाह नही नाम की, एक दिन उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी गलती से ‘सांप के बिल में हाथ डाल’ दिया कहने लगे डियर तुम बहुत खूबसूरत हो, मिलती नहीं तो क्या कम से कम फोन पर ही जाम पिला दो। इतना कहना ही क्या था इन्हें बातों की इतनी पन्हैया लगाई की सारी आशिकी हवा हो गई।  अब लगता है कभी वो सामना करने की भी जुर्रत नही करेंगे लेकिन ऐसे लोगो को कोई फर्क नही पड़ता है।

एक और महाशय फेस बुक पर आये और चैट करने लगे वे कहते है आपकी फोटो इतनी सुंदर है तो आप कितनी सुंदर होगी। पता चला ये महाशय कवि है और कविता के माध्यम से इतनी तारीफ की वो तो फूली नही समाई और बोल पड़ी आपसे मिलने का मन है पहले तो ये महाशय खुश हुए फिर बोले नही मै किसी से मिलता नही यदि मै मिल लिया तो मेरा धर्म कर्म नष्ट हो जायेगा मै भ्रष्ट की श्रेणी में आ जाऊंगा।  तो सखी बोल पड़ी अच्छा बाते करने से धर्म कर्म नष्ट नही होता मोहनी मन्त्र के अदृश्य जाल में फांसते हो सबको जैसे कृष्ण भगवान ने तो अपने मोह पाश में सबको मोह कर वे भगवान् कहलाये आप अपने को कृष्ण न समझो युग बदल गया है।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056

मोब  9278720311

ईमेल : [email protected]

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Mukta Mukta

मानव मन की दमित भावनाओं को उकेरता सटीक व सार्थक व्यंग्य।

Dr Jyotsna Singh

भावना जी खरा ,करारा एवं बहुत सटीक व्यंग्य है सही शब्दावली के साथ शानदार प्रस्तुतीकरण….