श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना  नयी सोच के साथ-साथ…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 97 ☆

☆ नयी सोच के साथ-साथ… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’  

बदलाव बहुत जरूरी होता है। मानव मन एक जैसी चीजों से बहुत जल्दी ऊबने लगता है। अब देखिए किस तरीके से कंप्यूटर, मोबाइल, आई फोन अपडेट हो रहे हैं। जिसका भी प्रयोग करो वही मैसेज देता हुआ मिल जाएगा स्वयं को बदलिए। सारे डिजिटल फॉर्म समय के साथ आगे बढ़ रहे हैं। बस सैटिंग करते बननी चाहिए। ये शब्द भी कितना उपयोगी है जन्म से लेकर मृत्यु तक सब कुछ सैटिंग्स के भरोसे ही चल रहा है। चलते रहो, रुको नहीं यही तो मूल मंत्र है तरक्की का। हम लोग चाँद से लेकर मंगल तक  की दूरी करते हुए निरंतर अपडेट हो रहे हैं। 

वक्त बहुत कीमती होता है, ये सभी जानते हैं। इसके बदलते ही न सिर्फ  लोगों के व्यवहार बदलते हैं, वरन स्वयं का भी व्यवहार बदल जाता है। जिसका समय अच्छा हुआ वहीं अहंकार  के चंगुल में फस कर दम तोड़ने लगता है और अपना रवैया दूसरों के प्रति सख्त कर देता है।

समय के साथ लोग अपनी पसंद बदलने लगते हैं, कारण साफ है; एक को ही महत्व देने से वो सिर पर चढ़ जाता है तथा इस बात का भी डर बना रहता है कि कहीं वही सब कुछ  लेकर चंपत न हो जाए सो अधिकारी वर्ग समय – समय पर अधीनस्थों को  उनकी सही जगह दिखाते रहते हैं।

खैर ये बात अलग है कि वक्त का तकाजा तो एक न एक  दिन सबका होगा तब  मूल्याँकन ईश्वर करेंगे। जिसकी सुनवाई कहीं नहीं होगी।

वस्तु वही रहती है केवल परिस्थिति हमारा नजरिया बदल देती है। जब आपको प्यास लगी हो तब कोई खाने को कितना भी अच्छा पदार्थ दे वो रुचिकर नहीं लगेगा। इसी तरह जब व्यक्ति भूखा हो तो उसे  कोई भी सत्संग नहीं भाता। कहने का अर्थ यह है कि आवश्यकता के अनुसार ही  वस्तु की उपयोगिता निर्धारित होती है।

हमारा दृष्टिकोण भी परिस्थिति जन्य  होता है। कई बार न चाहते हुए भी  समझौता आवश्यक होता है। अकर्मण्य लोगों के साथ रहने से कहीं बेहतर ऐसे लोगों का साथ होता है जो कुछ न कुछ करते हैं, भले ही जल्दबाजी और ज्यादा लाभ के चक्कर में कई ग़लतियाँ भी कर बैठते हों।

यदि कोई बार – बार प्रश्न पूछे तों उत्तर देते समय कभी विचलित न हों क्योंकि कठिन घड़ी में  ही  आपके सही उत्तरों  का मूल्याँकन होता है। अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक रखें। याद रखें प्रश्न व उत्तर का साथ चोली- दामन  के सरीखा होता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments