श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है  कुबेर नाथ राय जी  की पुस्तक “मन पवन की नौका” की समीक्षा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 112 ☆

“मन पवन की नौका” … कुबेर नाथ राय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆ 

पुस्तक – मन पवन की नौका

लेखक   – कुबेर नाथ राय

प्रकाशक – प्रतिश्रुति प्रकाशन कोलकाता

मूल्य – ₹३५०

 पृष्ठ  – १४४

ललित निबंध साहित्य की वह शैली है जिसमें कविता सा लालित्य, निबंध का ज्ञान, उपन्यास सा प्रवाह, कहानी सा आनन्द सम्मलित होता है. यदि निबंधकार कुबेर नाथ जी जैसा महान साहित्य मर्मज्ञ हो जिसके पास अद्भुत अभिव्यक्ति का कौशल हो, अथाह शब्द भंडार हो, इतिहास, संस्कृति, समकालीन अध्ययन हो तो सचमुच निबंध ललित ही होता है. हजारी प्रसाद द्विवेदी से ललित निबंध की परम्परा हिनदी में देखने को मिलती है, कुबेरनाथ जी के निबंध उत्कर्ष कहे जा सकते हैं. प्रतिश्रुति का आभार कि इस महान लेखक के निधन के बीस से ज्यादा वर्षो के बाद उनकी १९८३ में प्रकाशित कृति मन पवन की नौका को आज के पाठको के लिये सुंदर कलेवर में प्रस्तुत किया गया है. ये निबंध आज भि वैसे ही प्रासंगिक हैं, जैसे तब थे जब वे लिखे गये. क्योकि विभिन्न निबंधो में उन भारतीय समुद्रगामी अभीप्साओ का वर्णन मिलता है जिसकी बैजन्ती  अफगानिस्तान से जावा सुमात्रा तक ख्याति सिद्ध है. जिसके स्मारक शिव, बुद्ध, राम कथाओ, इनकी मूर्तियो लोक संस्कृति में अब भी रची बसी है. मन पवन की नौका पहला ही निबंध है, सिन्धु पार के मलय मारुत, अगस्त्य तारा, एक नदी इरावदी, जल माता मेनाम, मीकांग्ड गाथा, जावा के देशी पुराणो से, बाली द्वीप का एक ब्राह्मण, क्षीर सागर में रतन डोंगियां, यायावर कौण्डिन्य निबंधो में ज्ञान प्रवाह, सांस्कृतिक विवेचना पढ़ने मिलती है. किताब पढ़ना बहुत उपलब्धि पूर्ण है.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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