डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक बेहद मज़ेदार व्यंग्य  ‘एक अभिनव पुरस्कार-योजना’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 175 ☆

☆ व्यंग्य ☆ एक अभिनव पुरस्कार-योजना

नगर की नामी साहित्यिक संस्था ‘साहित्य संहार’ ने एक सनसनीखेज़ विज्ञप्ति ज़ारी की है जिससे नगर ही नहीं, पूरे देश के साहित्यकारों के बीच हड़कंप मचा है। संस्था एक अभिनव पुरस्कार योजना लेकर आयी है, जिसमें सबसे बड़ा सम्मान ‘साहित्य सूरमा’ का होगा।

संस्था ने अपनी विज्ञप्ति में लिखा कि हिन्दी साहित्य में अब तक पुरस्कारों और सम्मानों  के मामले में नासमझी और नाइंसाफी होती रही है। इसमें लेखक के वाक्चातुर्य को तवज्जो दी गयी और उसकी मेहनत को नकारा गया। ऐसा हुआ कि एक दो रचना लिखने वाला मशहूर हो गया और सौ दो-सौ लिखने वाले का कोई नामलेवा नहीं हुआ। कोई गुलेरी जी हुए जो एक कहानी के बल पर अर्श पर चढ़ गये और मोटे पोथे लिखने वाले टापते रह गये। ऐसे ही एक श्रीलाल शुक्ल हुए जो एक उपन्यास के बूते बहुत से सम्मान पा गये। हम चाहते हैं कि साहित्य में श्रम की प्रतिष्ठा हो और लेखन में पसीना बहाने वालों को महत्व मिले।

संस्था ने आगे लिखा कि इसी असमानता और नाइंसाफी को दूर करने के उद्देश्य से उसके द्वारा स्थापित होने वाला ‘साहित्य सूरमा’ सम्मान लेखक के चातुर्य पर नहीं, उसके कुल लेखन के वज़न पर आधारित होगा। इस पुरस्कार के लिए संस्था के कार्यालय के दरवाज़े पर वज़न तौलने वाली मशीनें लगायी जाएँगीं जहाँ लेखक अपना कुल उत्पाद प्रस्तुत करेंगे। सामग्री जिन थैलों या बोरों में लायी जाएगी उनकी बारीकी से जाँच होगी कि ऊपर पाँच दस किताबें या रजिस्टर डालकर नीचे वज़न बढ़ाने के लिए लोहा-लंगड़ न डाल दिया गया हो। दोषी पाये जाने वाले लेखकों को ब्लैक-लिस्ट किया जाएगा और भविष्य में भागीदारी से वंचित किया जाएगा। सामग्री पाँच अक्टूबर को संध्या पाँच बजे तक स्वीकार की जाएगी।

विज्ञप्ति ज़ारी होते ही साहित्यकारों के बीच भगदड़ मच गयी। सड़कें साहित्यकारों से सूनी हो गयीं। कॉफी-हाउसों में लेखकों की बैठकें  ग़ायब हो गयीं। सब लेखक अपने-अपने कमरों में बन्द होकर लेखन में पिल पड़े। मित्रों-संबंधियों के आने की मुमानियत हो गयी। अभी पाँच अक्टूबर को डेढ़ महीना बाकी है। इतने समय में दिन-रात मेहनत करके तीन चार किताबें लिखी जा सकती हैं।

नगर के जाने-माने कवि अच्छेलाल ‘वीरान’ इस समय अठारह घंटे कविता रच रहे हैं। उन्हें भोजन भी परिवार के लोग अपने हाथ से कराते हैं ताकि लिखने में खलल न पड़े। एक दिन बाथरूम से लौटते में चक्कर खाकर गिर गये। तब दो-तीन दिन तक बायें हाथ में ड्रिप लगी रही और दाहिने हाथ से लिखते रहे।

रोज़ सवेरे लेखकों के दरवाज़े पर प्रकाशकों की गाड़ियाँ आती हैं जो चौबीस घंटे के उत्पादन को समेट कर ले जाती हैं। समेटने वाले लेखक को आगाह करते जाते हैं कि प्रूफ्र-रीडिंग की उम्मीद न की जाए क्योंकि काम युद्ध-स्तर पर चल रहा है। छपने का काम लोकल ही हो रहा है क्योंकि बाहर भेजने का टाइम नहीं है।

जब लिखित सामग्री जमा करने की तारीख नज़दीक आने लगी तब नगर के नये लेखकों की ओर से संस्था के सम्मुख एक आवेदन प्रस्तुत किया गया जिसमें लिखा था कि समय कम होने के कारण हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी वे पुराने लिक्खाड़ों के बराबर नहीं आ सकेंगे। यह भी लिखा गया कि कई लेखक लिखते लिखते बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हो गये हैं और वे  अपनी बेड पर ही लिख रहे हैं। अतः लेखकों की प्राणरक्षा की दृष्टि से लिखित सामग्री जमा करने की तारीख कम से कम छः माह बढ़ा दी जाए। तभी पुराने लिक्खाड़ों को टक्कर दी जा सकेगी और नाइंसाफी दूर हो सकेगी।

इस पर पुराने लेखकों की ओर से आपत्ति दर्ज करायी गयी कि जो लेखक कम लिख पाये वह उनके आलस्य और लापरवाही के कारण है। अतः सामग्री जमा करने की तिथि आगे बढ़ा कर आलस्य को पुरस्कृत न किया जाए।

संस्था ने नये लेखकों के आवेदन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए सामग्री जमा करने का काम फिलहाल स्थगित कर दिया है। अगली तिथि छः माह बाद घोषित की जाएगी। तब तक लेखक अपने लेखन-कोष को समृद्ध करने का काम ज़ारी रख सकते हैं।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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