श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना भाषा का विज्ञान। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 132 ☆

☆ भाषा का विज्ञान 

मन की बात को समझने हेतु नयनों को पढ़ना जरूरी होता है। दिमाग में क्या चल रहा है, इसे माइंडरीडर आसानी से बता देते हैं। मौन जब मुखरित होता है तो अनकहा भी सुनाई देने लगता है। जरा सोचिए सुनने- सुनाने से क्या होगा? आपको समाधान की ओर जाना चाहिए। हम आसानी से दूसरों के मन को समझ लेते हैं, किंतु कहीं वो कुछ माँगने न लगे इसलिए जान बूझ कर अनजान बनने का नाटक करते हैं।

अब सोचिए कि क्या जरूरत है सब के विचारों को पढ़ने की? हम स्वयं को समझे बिना सब को ज्ञान बाँटने चल देते हैं। देखा- अनदेखा सब कुछ नजर अंदाज करते हुए व्यर्थ का गाल बजाने लगते हैं। हर तर्क विज्ञान की कसौटी पर कसा जा सकता है बस प्रयोगशाला कैसी होगी इसका ध्यान जरूर रखना चाहिए।

मन के भावों को शब्दों से व्यक्त करना उतना आसान नहीं होता जितना हाव- भाव को देखकर समझना सरल होता है। हर चेहरा मुस्कराए इसके लिए एक ही उपाय लागू नहीं किया जा सकता है। जैसे हर मर्ज की दवा  अलग- अलग होती है, वैसे ही मनोभाव आवश्यकता अनुसार बदलते रहते हैं। जिसको जिस तरीके से समझ में आए वैसा समझाने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।

धर्म की कसौटी पर खुद को परखना बहुत सरल होता है, क्योंकि जब से समझ शुरू होती है, हम कोई न कोई विचारधारा के साथ जुड़ते चले जाते हैं। श्रद्धा और विश्वास के सहारे अपने सभी कार्यों को प्रार्थना द्वारा आसानी से पूर्ण करते जाते हैं। बस यहीं से हमारी आस्था धार्मिक विचारों के प्रति सुदृढ़ होती जाती है। क्या फर्क पड़ता है कि हम किस तरह से स्वयं को विकसित कर पाते हैं? जो भी हमें मानसिक सुकून दे उस भाषा को पढ़ना, समझना आना ये भी तो एक कला है। सच्चाई के साथ जुड़कर सर्वमंगल का भाव रखते हुए कार्यों को करते कराते रहें एक न एक दिन सत्य सब को समझ में आएगा।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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