डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा  “स्वतंत्र।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 35 – साहित्य निकुंज ☆

☆ लघुकथा – स्वतंत्र

“सोमा आज मकान मालिक का फोन आया 15 दिन के अंदर मकान खाली करना है।अब इतनी जल्दी कैसे कहां मकान मिलेगा?”

सोमा ने कहा…”कल चलते है सासू मां के पास उन्हें बताते हैं हो सकता है समस्या का हल निकल आये और उन्हें दया आ जाए  कह दें , तुम लोग आ जाओ अब अकेले रहा नहीं जाता”।

माँ  से मिले।  माँ को सब कुछ बताया ।उन्होंने कहा – “कोई बात नहीं, दो बिल्डिंग आगे एक मकान खाली है जाकर बात कर आओ।”

सोमा उनका मुंह देखती रही । हम सभी किराये के मकान में रह रहे हैं ।

कैसी माँ  है तीन बेटे है फिर भी अकेली  स्वतंत्र अपने घर में रहना चाहती है ।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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