डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  आज के सामाजिक परिवेश में जीवन के कटु सत्य को उजागर करती एक लघुकथा  “व्यवहार। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 45 – साहित्य निकुंज ☆

☆ व्यवहार ☆

मंजू कॉलेज और घर का सब काम करते हुए साथ में सास की सेवा भी तल्लीनता से कर रही थी पतिदेव भी प्रोफेसर है। पता नहीं क्यों वह मंजू में इंटरेस्ट नहीं लेते हैं।

 मंजू ने एक दिन पूछ लिया..” क्या बात है आखिर हमारे दो-दो बच्चे हो गए हैं सब की शादी हो गई है। अब बुढ़ापा हम दोनों का ही साथ में कटेगा आपको क्या हो गया है। आप हमसे बात क्यों नहीं करते।”

पतिदेव ने कहा..” देखो हमें पता है तुम्हारा मन मुझमें नहीं लगता तुम्हारा मन बाहर लगता है। इसलिए अब हमें  तुमसे कोई संबंध नहीं रखना।”

मंजू ने कहा ..”यह आपसे किसने कहा।”

“माताजी बता रही थी कि उन्होंने तुमको बात करते सुना है…।”

मंजू ने कहा.. “कॉलेज के लोगों से तो 10 तरह की बातें होती हैं अब उन्होंने क्या समझ लिया यह तो वही जाने।”

मंजू की आंखों में आंसू छलक पड़े कि जिस सास  के दुर्व्यवहार के बावजूद भी इतने बरसों से उसकी सेवा कर रही है।आज वही अंतिम समय में अपनी बहू को घर से निकालने पर तुली हुई है याने उसके व्यवहार में आज भी कोई परिवर्तन नहीं आया।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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