डॉ.  मुक्ता

( ई- अभिव्यक्ति का यह एक अभिनव प्रयास है।  इस श्रंखला के माध्यम से  हम हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकारों को सादर नमन करते हैं।

हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं और जिन्होंनेअपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया तथा हमें हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं, उनके हम सदैव ऋणी रहेंगे । यदि हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपनी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी के साथ  डिजिटल एवं सोशल मीडिया पर साझा कर सकें तो  निश्चित ही ई- अभिव्यक्ति के माध्यम से चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेने जैसा क्षण होगा। वे  हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत भी हैं। इस पीढ़ी के साहित्यकारों को डिजिटल माध्यम में ससम्मान आपसे साझा करने के लिए ई- अभिव्यक्ति कटिबद्ध है एवं यह हमारा कर्तव्य भी है। इस प्रयास में हमने कुछ समय पूर्व आचार्य भगवत दुबे जी, डॉ राजकुमार ‘सुमित्र’ जीप्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘ विदग्ध’ जी,  श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी,  डॉ. रामवल्लभ आचार्य जी एवं श्री दिलीप भाटिया जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आलेख आपके लिए प्रस्तुत किया था जिसे आप निम्न  लिंक पर पढ़ सकते हैं : –

इस यज्ञ में आपका सहयोग अपेक्षित हैं। आपसे अनुरोध है कि कृपया आपके शहर के वरिष्ठतम साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारी एवं आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने में हमारी सहायता करें। हम यह स्तम्भ प्रत्येक रविवार को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा प्रयास रहेगा  कि – प्रत्येक रविवार को एक ऐसे ही ख्यातिलब्ध  वरिष्ठ साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित करा सकें।

आपसे अनुरोध है कि ऐसी वरिष्ठतम पीढ़ी के अग्रज एवं मातृ-पितृतुल्य पीढ़ी के व्यक्तित्व एवम कृतित्व को सबसे साझा करने में हमें सहायता प्रदान करें।

(आज ससम्मान प्रस्तुत है वरिष्ठ  हिन्दी साहित्यकार  डॉ. मुक्ता जी  के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विमर्श  डॉ सविता उपाध्याय  जी  की कलम से।  हम डॉ सविता उपाध्याय जी के ह्रदय से आभारी हैं। आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर कई साहित्य मनीषियों ने अपनी लेखनी से सम्मान प्रदान किया है जिनमे डॉ मुक्ता का रचना संसार  – डॉ सुभाष रस्तोगी जी  तथा रानी झांसी जैसी नारीवाद की सर्जक डॉ मुक्ता – सुश्री सिमर सदोष जी की कृतियां प्रमुख है , जिन पर हम भविष्य में  चर्चा करने का प्रयास करेंगे।  बिना किसी अभिमान एवं सहज – सरल स्वभाव की  बहुमुखी प्रतिभा की  धनी डॉ मुक्ता जी को मैंने सदैव स्त्री शक्ति विमर्श की प्रणेता के रूप में पाया है। आपके  स्त्री पात्र हों या पुरुष पात्र दोनों वास्तविक जीवन से लिए हुए हैं। आपकी  लेखनी से  स्त्री विमर्श में स्त्री के सन्दर्भ में कुछ भी छूट पाना असंभव है। आप प्रत्येक पीढ़ी के लिए एक आदर्श हैं। )

सारस्वत परिचय

शिक्षा : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से1971मे हिंदी साहित्य में एम•ए• तथा1975 में पंजाब विश्व- विद्यालय चंडीगढ़ से पीएच•डी•की डिग्री प्राप्त की।

व्यवसाय :1971से 2003 तक उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा में प्रवक्ता तथा 2009 में प्राचार्य पद से सेवा-निवृत्त।

निदेशक,हरियाणा साहित्य अकादमी  (2009 से 2011)

निदेशक, हरियाणा ग्रंथ अकादमी पंचकूला (2011- नवम्बर 2014 )

सदस्य,केन्द्रीय साहित्य अकादमी ,नई दिल्ली ( 2013 से 2017)

साहित्य साधना : बचपन से अध्ययन व लेखन में रुचि तथा 1971 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में कहानी व निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त।

उपलब्धियां : विशिष्ट हिंदी सेवाओं के निमित्त माननीय श्री प्रणव मुखर्जी,राष्ट्रपति भारत सरकार के कर-कमलों द्वारा सुब्रमण्यम भारती पुरस्कार से सम्मानित★ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जयंती समारोह तथा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उत्कृष्ट साहित्यिक व सामाजिक सेवाओं के निमित्त माननीय राज्यपाल श्री जगन्नाथ पहाड़िया,हरियाणा द्वारा सम्मानित★ हरि याणा साहित्य अकादमी के राज्यस्तरीय श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान से मुख्यमंत्री महोदय द्वाराअलंकृत ★ बेस्ट सिटीज़न ऑफ इंडिया अवॉर्ड★ साहित्य शिरोमणि की मानद उपाधि से अलंकृत★ इंटर- नेशनल विमेंस डे अवॉर्ड★ उदन्त मार्त्तण्ड सम्मान★ प्रज्ञा साहित्य सम्मान★ विश्ववारा सम्मान★ राज्य- स्तरीय और विश्व शिक्षक सम्मान★ राजीव गांधी एक्सीलेंस अवार्ड★ हिंदी भाषा भूषण सम्मान ★ राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान★ साहित्य कौस्तुभ सम्मान ★ शिक्षा रतन पुरस्कार★ उदयभानु हंस कविता पुरस्कार★ महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान ★ 2007,2008, 2009 में समाजसेवी महिला सम्मान ★ हेल्र्दी युनिवर्स फाउंडेशन द्वारा वीमेंस अचीवर्स अवार्ड★ मां दरशी शिखर सम्मान★महिला गौरव पुरस्कार★ रानी लक्ष्मीबाई जनसेवा सम्मान★ नारी गौरव सम्मान ★सावित्री बाई फुल्ले अवार्ड★ नारी शक्ति सम्मान★साहित्य कौस्तुभ, साहित्य वाचस्पति व अंतर्राष्ट्रीय साहित्य वाचस्पति की मानद उपाधि से विभूषित★ साहित्य गौरवश्री सम्मान★ मानव गौरव सम्मान★ लघुकथा रतन सम्मान★ हिंदी रतन सम्मान★ विश्वकवि संत कबीर दास रतन अवॉर्ड  ★ लघुकथा शिरोमणि सम्मान★ लघुकथा रतन सम्मान★ साहित्य गौरव सम्मान★ कलमवीर सम्मान★ सदाबहार वृक्षमित्र सम्मान★ नारी गौरव सम्मान★ लघुकथा सेवी सम्मान★ महिला गौरव सम्मान★ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान सम्मान★दैनिक जागरण, संस्कार शाला द्वारा सम्मान★ काव्यशाला सम्मान★इन्द्रप्रस्थ लिट्रेचर फेस्टिवल एवं विजयानी फाउंडेशन द्वारा विशेष सम्मान★ इन्डोगमा फिल्म फेस्टिवल पर आई• एफ• एफ• 2019 विशेष सम्मान।

हरियाणा ग्रंथ अकादमी की पत्रिका कथासमय (मासिक) तथा सप्तसिंधु त्रैमासिक) का तीन वर्ष तथा हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंधा (मासिक) का दो वर्ष तक कुशल संपादन 

★दस रचनाओं पर लघु शोध प्रबंध स्वीकृत★दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा चेन्नई द्वारा मुक्ता के साहित्य में स्त्री विमर्श शोध-प्रबंध स्वीकृत★ दो विद्यार्थियों द्वारा शोध-प्रबंध लेखनाधीन ★ राजा राममोहन राय फाउंडेशन तथा केन्द्रीय हिंदी संस्थान द्वारा दस  रचनाएं अनुमोदित ★ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी, दूरदर्शन, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों, काव्यगोष्ठियों व विचार-मंचों में सक्रिय प्रतिभागिता।

प्रकाशित रचनाएं…28 : ◆शब्द नहीं मिलते ◆अस्मिता ◆लफ़्ज़ों ने ज़ुबां खोली ◆अहसास चंद लम्हों का ◆एक आंसू ◆चक्रव्यूह में औरत  ◆एक नदी संवेदना की  ◆लम्हों की सौगा़त  ◆अंतर्मन का अहसास  ◆द्वीप अपने-अपने  ◆संवेदना के वातायन  ◆सुक़ून कहाँ  ◆सांसों की सरगम (काव्य-संग्रह)  ◆मुखरित संवेदनाएं  ◆आखिर कब तक  ◆कैसे टूटे मौन  ◆अंजुरी भर धूप ◆उजास की तलाश  ◆रेत होते रिश्ते  ◆बँटा हुआ आदमी◆ हाशिये के उस पार◆टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी (लघुकथा-संग्रह)  ◆खामोशियों का सफ़र ◆अब और नहीं  ◆सच अपना अपना  ◆इन गलियारों में (कहानी -संग्रह)  ◆चिन्ता नहीं चिन्तन ◆परिदृश्य चिन्तन के  ◆चिन्तन के आयाम ◆वाट्सएप तेरे नाम (निबन्ध-संग्रह)…. ◆क्षितिज चिन्तन के (प्रकाशनाधीन )◆आधुनिक कविता में प्रकृति (समालोचना)◆ अकादमी की कथायात्रा कृति का संपादन ●अस्मिता व ●चिन्ता नहीं चिन्तन का पंजाबी और अंग्रेजी में अनुवाद। ◆ डा•मुक्ता का रचना संसार…. डा•सुभाष रस्तोगी द्वारा संपादित।

संप्रति : पूर्व निदेशक हरियाणा साहित्य अकादमी, स्वतंत्र लेखन।

☆ हिन्दी साहित्य – डॉ मुक्ता ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆

(संकलनकर्ता  –  डॉ सविता उपाध्याय )

हिन्दी साहित्य जगत में डॉ मुक्ता एक बहुचर्चित विश्वविख्यात शक्ति संपन्न लेखिकाओं में से एक हैं। आपने हिन्दी साहित्य की लगभग सभी विधाओं कविता कहानी उपन्यास साक्षात्कार आदि में रचना की है।

इस संदर्भ में सुभाष रस्तोगी द्वारा संपादित ‘डॉ मुक्ता का रचना संसार’ कार्य अभिनंदनीय है वंदननीय है। आपने डॉ मुक्ता के साहित्यिक संसार को संपादित कर महती कार्य किया है। इस पुस्तक को पढ़कर लगा कि यह एक अथाह सागर है जिसमें इतने मोती हैं कि जिसकी गणना नहीं की जा सकती। रस्तोगी जी ने आपके रचना संसार को मोतियों की माला की तरह पिरोकर पाठकों को हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर सौंप दी है।

आपकी सृजन यात्रा 2007 में प्रकाशित ‘शब्द नहीं मिलते’ से  आज तक अनवरत चल रही है। हिंदी की सभी विधाओं पर अपना अधिकार रखने वाली डॉ मुक्ता को कौन नहीं जानता आपके पास कवि हृदय भी है जो हिंदी साहित्य में आपकी एक अलग ही पहचान बनाता है। आप चिंता नहीं चिंतन करती हैं और इसी के फलस्वरूप आपके आलेख चर्चा का विषय रहे हैं। आपने हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक के पद पर रहते हुए अकादमी की साहित्यिक पत्रिका ‘हरिगंधा’ के सम्पादन में अद्भुत योगदान देकर अपनी एक अलग पहचान बनायी है। आपने लीक से अलग हटकर ‘हरिगंधा’ में नवीन विषयों को समाहित कर विशेषांक सम्पादित किए हैं जो ऐतिहासिक धरोहर बन गए हैं  जिनमें महिला विशेषांक, लघु कथा विशेषांक, दोहा विशेषांक आदि उल्लेखनीय हैं। इसी के साथ, कहानी पत्रिका ‘कथा समय’ तथा शोध पत्रिका ‘सप्तसिंधु’ दोनों ही संग्रहणीय हैं। अब तक आपके 6 कविता संग्रह शब्द नहीं मिलते. अस्मिता, लफ्जों ने जुबां खोली. एहसास चन्द लम्हों का, एक आंसू आदि प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी कविताओं में स्त्री की यातना. उसके संघर्ष. उसकी चेतना को साहित्य का आधार बनाया गया है। आपकी कविताएं स्त्री मुक्ति के लिए ज़द्र्दोज़हद करती कविताएँ हैं जो पुरुष के अधिनायक वादी वर्चस्व को चुनौती देती हैं। डॉ मुक्ता का मानना है की स्त्री व् पुरुष दोनों समाज की धुरी हैं और स्त्री को उसके हिस्से की धुप और छांव, आधी ज़मीन व् आधा आसमां मिलना ही चाहिए।

स्त्री विमर्श के तहत नारी संघर्ष चेतना और समाज के पुरुष वर्ग को चुनौति देती स्त्री आपके रचना कर्म को अलग पहचान देती है। आपने अपने साहित्य में परिवार की संरचना में बदलाव संबंधों में बदलाव स्त्रियों की स्थिति में बदलाव स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार परिवार में शारीरिक लैंगिक व मनोवैज्ञानिक अत्याचार हिंसा दहेज से जुड़ी समस्याएँ स्त्रियों पर दोहरा अत्याचार कन्या भ्रूण हत्या परिवार में स्त्रियों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य की उपेक्षा विधवाओं का शोषण अल्पायु में विवाह पर्दा और घूँघट प्रथा आदि इन तमाम कठिनाइयों समस्याओं के बीच संघर्ष करती हुई स्त्री को आपने अपने साहित्य में चित्रित किया है।

शब्द नहीं मिलते  अस्मिता  लफ्जों ने जुबां खोली  अहसास चंद लम्हों का  एक आंसू  चक्रव्यूह में औरत कविता संग्रह बहुचर्चित रहे हैं। इतनी अधिक कविताओं की रचना करने के बावजूद सभी कविताओें की पृष्ठभूमि में भिन्नता अलग रोचकता अलग शैली का होना ही आपके लोकप्रिय होने का प्रमुख कारण रहा है। ‘शब्द नहीं मिलते’ काव्य संग्रह में 92 कविताएँ हैं जिनमें आस्था विश्वास, गुरु के प्रति समर्पण भाव. सच्चा गुरु ही ईश्वर अराधना के मार्ग में सहायक होता है. गुरु के शरण में जाने से ही मुक्ति का मन्त्र मिलता है. गुरु की कृपा से ही कवयित्री ने सत्य से साक्षात्कार किया है कि प्रभु का बसेरा कहीं बाहर नहीं वह हृदय के भीतर ही विराजमान है।

शब्द नहीं मिलते काव्य संग्रह की कविताएँ स्वयं से साक्षात्कार है और जिसका स्वयं से साक्षात्कार हो जाता है वह भौतिक सुख–सुविधाओं से परे एक अलग ही जहान का प्राणी बन जाता है।भक्ति रस में सराबोर मुक्ता जी की कविताएँ अन्तर्मन को छूकर गहरे अध्यात्म से परिचय करवाती हैं। अस्मिता काव्य संग्रह में चौहत्तर 74 कविताएं हैं जिनका केन्द्र बिन्दु नारी रही है। अहिल्या, गांधारी के उदाहरण देकर कुछ ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं जो नारी की अंतस्चेतना को झकझोर कर रख देता है। द्रोपदी मंथरा उर्मिला सीता सभी का उदाहरण देकर बताया गया है कि आदिकाल से ही स्त्री को त्यागने का काम पुरुषों द्वारा किया गया है

एक स्थान पर सीता कहती हैं–

हे राम तुम कहीं भी जा सकते हो

तुम्हें अग्नि परीक्षा नहीं देनी होगी

न ही मैं

तुम्हारा त्याग करुंगी

वह अधिकार तो

मिला है पुरुष को

नारी तो बंदिनी है

चाहे वह राम के राजमहल में

चाहे रावण की

अशोकवाटिका में

वह तो है चिरबंदिनी।

 

कितनी मार्मिक पंक्तियां हैं। आपने न केवल पद्य में वरन गद्य में भी अपना अधिकार सिद्ध किया है। विविध विषयों को लेकर आपने जहां काव्य संसार रचा है वहीं कथा के क्षेत्र में भी आपने विभिन्न पृष्ठभूमि को लेकर कथा साहित्य की रचना की है।

एक कथाकार के तौर यदि हम डॉ मुक्ता के लेखन की बात करें तो आपका हिन्दी साहित्य को महत्त्वपूर्ण व सराहनीय योगदान रहा है। आपने नारी मन में गहरे उतरकर उसकी संवेदना, यातना, संघर्ष, स्त्री की समस्याओं और सवालों से जुड़े अनेक प्रश्नों व अधिकारों को अपने साहित्य में उठाया है। आपके  स्त्री पात्र हों या पुरुष पात्र दोनों वास्तविक जीवन से लिए हुए हैं। आपने  उन्हें कल्पना के माध्यम से मनोबल प्रदानकर संघर्ष करते हुए दिखलाया है। आपने उनका कथाक्रम के अनुसार पुनर्सृजन भी किया है।

आपके अब तक चार कहानी संग्रह खामोशियों का सफर, अब और नहीं, सच अपना अपना, इन गलियारों में प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी कहानियाँ गहरे प्रतिकार्थ की व्यंजना करती हैं। डॉ मुक्ता  ने स्त्री जीवन के सभी मर्मांतक पीड़ाओं को अन्तर्मन तक महसूस किया है और कहानी का कथ्य बनाया है।

स्त्री जीवन तो सदियों से दुखों और पीड़ाओं से भरा हुआ है। उसकी यह पीड़ा आज की नहीं बल्कि सदियों पुरानी है। लगातार स्त्री दुखों आपदाओं और मुसीबतों का सामना करती रही है। प्रत्येक काल में स्त्री को ही अग्नि परीक्षा देनी पड़े अब यह स्त्री बर्दाश्त नहीं करेगी। वह सीता मैय्या ही थीं जो परीक्षा पर परीक्षा देती चली गईं वह भी एक धोबी के कहने पर। आज की सीता जहाँ परीक्षा देने को तैयार है वहीं उससे पहले परीक्षा लेना भी जानती है। केवल स्त्री ही परीक्षा क्यों दे? कितने अपमान इस नारी जाति को सहने होंगे? कितना लांक्षित होना होगा?  स्त्री को पाप की खान नरक का द्वार माया और ठगनी के रूप में चिह्नित कर पुरुष समाज ने बहुत मजाक उड़ाया है।

डॉ मुक्ता ने अपनी कहानियों काश इंसान समझ पाता, अपना घर, अग्निपरीक्षा, अधूरा इंसान, रिश्तों का अहसास,  करवट तथा अपना आशियाँ में स्त्री यातना के विभिन्न पक्षों को उठाया है। लेकिन खास बात यह है कि इसके माध्यम से आपने नारियों के स्वतंत्र व्यक्तित्व और आत्मनिर्भरता को प्रमाणित करने का भी प्रयास किया है। आपके नारी पात्र पुरुष समाज के सारे अत्याचार सहने के बावजूद टूटते नहीं हार नहीं मानते। आपकी कहानियों के नारी पात्र अपने बलबूते पर जीवनभर संघर्ष करते नज़र आते हैं जीवन की कठिनाइयाँ भी उन्हें हरा नहीं पातीं। आपकी आक्रोश कहानी नारी सशक्तिकरण की अद्भुत कहानी है।

ढलती सांझ का दुख धरोहर मसान की डगर पर समझोता शायद वह कभी लौट आए आदि कहानियों में स्त्री यातना के भले ही विभिन्न संदर्भ हों लेकिन यह कहानियाँ यह सवाल उठाती हैं कि स्त्री को ससुराल के नाम पर जो घर मिलता है वह एक छलावा है।

यहाँ यदि हम स्त्री–पुरुष संबंधों की बात करें तो दोनों के बिना ही सृष्टि की कल्पना असंभव है। फिर न जाने क्यों किस बात की लड़ाई बरसों से चली आ रही है। स्त्री–पुरुष संबंध में स्त्री ग्रहण करने वाली प्राप्त करने वाली आत्मसात करने वाली और आत्मसात एवं ग्रहण के परिणामस्वरूप वृद्धि और रचना करने वाली है। वस्तुत स्त्रियों की गुलामी का सबसे बड़ा कारण धार्मिक सामाजिक मान्यताएँ और प्रथाएँ ही रहा है। इनके खिलाफ अभियान छेड़े बिना स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन लाना असंभव था। इसके लिए ही “वीमेन राइट्स” की बात कही गई। स्त्री पहले से ज्यादा सजग व चेतन हो गई है। पूर्वकाल में वह पुरुष के पद्चिह्नों पर चलने वाली थी किन्तु अब वह कदम से कदम मिलाकर एक साथ चलना चाहती है।

इस समाज में यह भ्रम फैला हुआ है। स्त्री विमर्श होना पुरुष विरोधी होना है किन्तु स्त्री तो बस अपने अधिकारों की माँग करती है पुरुष के समान प्रत्येक क्षेत्र में अपना समान अधिकार माँगती है। नियति के अनुसार अपने अधिकारों के लिए लड़ना गुनाह नहीं है क्योंकि अत्याचार करने से अत्याचार सहने वाला ज़्यादा गुनेहगार होता है।

मुक्ता जी की कथाओं में स्त्री पात्र संघर्षशील हैं आपकी नायिकाएं पुरुष वर्चस्व के कारण स्वयं को इस्तेमाल होने देने से इन्कार करती है और संस्कारों का मान करते हुए भी रूढ़ नैतिकता का विरोध करती है। उसका विश्वास है कि हमारे संस्कार हमारी मान्यताएँ जीवन को सही शक्ल देने के लिए हैं। जीवन को जीने की आकांक्षा जिस प्रकार पुरुष में है उस प्रकार स्त्री में भी है। दाम्पत्य संबंधों का सम्मान करते हुए वह अपने दायित्वों का निर्वाह करती है और अपनी अस्मिता का हनन नहीं होने देती। लेखिका की कहानियों में लिव इन रिलेशनशिप का कोई स्थान नहीं है। सकारात्मकता व मानवीय मूल्यों के प्रति अटूट निष्ठा आपके लेखन को शीर्ष तक पहुँचाती है।

आपने तथाकथित संस्कारशील घरों में घुटते दांपत्य और अस्तित्वहीनता की यंत्रणा सहती स्त्री के अंतद्र्वन्द्व को ही नहीं दर्शाया है बल्कि रूढ़ नैतिकता और पुरुष अहं का परीक्षण करती स्त्री की सहज जीवन जीने की आकांक्षा को नए अर्थों में दिखाने का भी प्रयास किया है।

आपकी टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी शत शत नमन किसके लिए पटरियों पर दौड़ती जिंदगी तथा शशांक जैसी कहानियों में जहाँ स्त्री के आँसू स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं वहीं ओजस्विता से भरी हुई प्रत्येक स्थिति में पहाड़ की अचलता दिखाई पड़ती है। भले ही सूरज छिपकर थोड़ी देर अंधेरा फैला दे किन्तु अंधेरे के बाद प्रकाश की उम्मीद ही स्त्री को जीवंत बनाती है।

आपके स्त्री पात्र पुरुष को कहीं भी अस्वीकार नहीं करते बस बराबर में एक सम्मानपूर्ण जगह चाहते हैं। वस्तुत यही तो है स्त्री विमर्श। पुरुष विरोधी होना स्त्री विमर्श नहीं बल्कि समान अधिकारों समान दायित्वों का निर्वाह ही स्त्री विमर्श है जोकि मुक्ताजी के साहित्य में स्पष्ट दिखाई पड़ता है।

आपकी  स्त्रियाँ दुख व यंत्रणा सहती अपनी अस्मिता को बचाए हुए सदैव संघर्षशील हैं। आपने स्त्रियों के दुख को एक बड़े फलक पर उतारकर दुख निवारण हेतु नई दिशा प्रदान की है।

निष्कर्षत कहा जा सकता है कि मुक्ता जी गंभीर कलात्मक साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत उत्कृष्ट साहित्य की रचना करने वाली लेखिका हैं। आपकी कहानियों में यथार्थता सादगी विचारमयी मर्मबेधी वेदनाएँ हैं। आपके कथानकों के पात्र यथार्थ की भूमि से लिए हुए इतने सहज निश्छल पारदर्शी हैं कि पाठक की अंतरात्मा को झकझोर देने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। पाठक का उनके साथ स्वत ही तारतम्य स्थापित होता चला जाता है।

आपके कथानकों की भाषा वातावरण के अनुरूप अत्यंत हृदयस्पर्शी, सरल, सहज, आंचलिकता को लिए हुए कथा व स्थिति के अनुरूप गढ़ी गई है। आपने स्त्री विमर्श का ढिंढोरा न पीटकर अपनी कथानकों में स्त्री विमर्श के मूल तत्वों को मार्मिकता के साथ रेखांकित किया है। स्त्री स्वातंत्र्य की बातें आपने बहुत स्पष्ट व दृढ़ता के साथ कही हैं। आपके स्त्री पात्र सामाजिकÊ राजनीतिक विसंगतियों की कसौटी पर खरे उतरते हैं। आपके पात्र स्त्री के मानसिक पटल को प्रस्तुत करने का अद्भुत सामथ्र्य तो रखते ही हैं साथ ही परंपरागत रूढ़ियों–बंधनों से मुक्त होकर स्वनियंत्रण में रहने की सीख देते हुए भी नज़र आते हैं।

मुक्ता जी एक प्रतिबद्ध लेखिका हैं। शोषण, अत्याचार व अनाचार सहती स्त्रियों की पीड़ा को मरहम देना व समाज की प्रगति ही आपके लेखन का लक्ष्य रहा है। आपने विभिन्न कहानियों के माध्यम से स्त्री मुक्ति के प्रश्नों को उठाया है। आपके स्त्री पात्र समाज के लिए नई दिशा व नया मार्ग प्रशस्त करने वाले हैं।

आपके स्त्री पात्र अपने स्त्रीत्व पर गर्व करने वाले, स्वाभिमानी, संघर्षशील व ऐसी अपराजिताऐं हैं जो अंत तक संघर्ष करती रहती हैं। आपने अपनी भावनाओं विचारों व संवेदनाओं में बेहद ईमानदारी व पारदर्शिता का परिचय दिया है। इस प्रकार मुक्ताजी अपने जीवन के अनुभवों व साहित्य के द्वारा स्त्री मुक्ति का आख्यान रचती हैं।

डॉ सविता उपाध्याय 

साहित्यकार व समीक्षक, बी 1146 ग्राउंड फ्लोर इफको कॉलोनी गुरुग्राम, 9871899939

 

डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

 

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