श्री अ कीर्तिवर्धन

ई- अभिव्यक्ति का यह एक अभिनव प्रयास है।  इस श्रंखला के माध्यम से  हम हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकारों को सादर नमन करते हैं।

हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं और जिन्होंनेअपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया तथा हमें हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं, उनके हम सदैव ऋणी रहेंगे । यदि हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपनी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी के साथ  डिजिटल एवं सोशल मीडिया पर साझा कर सकें तो  निश्चित ही ई- अभिव्यक्ति के माध्यम से चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेने जैसा क्षण होगा। वे  हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत भी हैं। इस पीढ़ी के साहित्यकारों को डिजिटल माध्यम में ससम्मान आपसे साझा करने के लिए ई- अभिव्यक्ति कटिबद्ध है एवं यह हमारा कर्तव्य भी है। इस प्रयास में हमने कुछ समय पूर्व आचार्य भगवत दुबे जी, डॉ राजकुमार ‘सुमित्र’ जीप्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘ विदग्ध’ जी,  श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी डॉ. रामवल्लभ आचार्य जी, श्री दिलीप भाटिया जी एवं डॉ मुक्त जी  के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आलेख आपके लिए प्रस्तुत किया था जिसे आप निम्न  लिंक पर पढ़ सकते हैं : –

इस यज्ञ में आपका सहयोग अपेक्षित हैं। आपसे अनुरोध है कि कृपया आपके शहर के वरिष्ठतम साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारी एवं आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने में हमारी सहायता करें। हम यह स्तम्भ प्रत्येक रविवार को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा प्रयास रहेगा  कि – प्रत्येक रविवार को एक ऐसे ही ख्यातिलब्ध  वरिष्ठ साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित करा सकें।

आपसे अनुरोध है कि ऐसी वरिष्ठतम पीढ़ी के अग्रज एवं मातृ-पितृतुल्य पीढ़ी के व्यक्तित्व एवम कृतित्व को सबसे साझा करने में हमें सहायता प्रदान करें।

☆ हिन्दी साहित्य – श्री अ कीर्तिवर्धन ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆

(आज ससम्मान प्रस्तुत है वरिष्ठ  हिन्दी साहित्यकार  श्री अ कीर्तिवर्धन जी  के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विमर्श  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र ‘ जी  की कलम से। मैं  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र ‘ जी का हार्दिक आभारी हूँ ,जो उन्होंने मेरे इस आग्रह को स्वीकार किया। बैंकिंग पृष्ठभूमि के साथ अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री अ कीर्तिवर्धन जी  हम सबके आदर्श हैं। )

(संकलनकर्ता  –  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ )

आदरणीय श्री अ कीर्तिवर्धन जी का जन्म 9 अगस्त, 1956 को शामली (उ.प्र.) में हुआ था। आपके पिता श्री विद्या राम अग्रवाल, इंटर कॉलेज में प्राचार्य थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा शामली में ही पूर्ण हुई। आपकी माँ के प्रोत्साहन ने आपको सदैव पढ़ाई के लिए प्रेरित किया।

सत्तर के दशक में गांव में मेले लगा करते थे। इन मेलों में शाम को कवि सम्मेलन का आयोजन भी हुआ करते थे। आप उन कवि सम्मेलनों में सुनी हुई कविताओं को लिखने की कोशिश करते थे। उन कविताओं से प्रेरित होकर आपने छोटी छोटी कवितायें लिखना प्रारम्भ किया।

आपके पिताजी ने आपकी लेखन प्रतिभा से प्रभावित होकर रिश्तेदारों को चिट्ठियां लिखने का दायित्व आपको ही दे दिया था। आपकी काव्यात्मक चिट्ठियाँ अत्यंत रोचक होती थी जिससे  आपकी लेखन प्रतिभा समय के साथ साथ विकसित होती चली गई। आपकी काव्यात्मक प्रतिभा से जुड़े हुए कई संस्मरण हैं जिन्हें हम भविष्य में अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास करेंगे। अब तक आपकी रचनाएँ इधर उधर डायरी कापियों में लिखी हुई रखी थी किन्तु, संकलित नहीं थी।

सही मायनों में आपकी साहित्यिक यात्रा 1974 से प्रारम्भ हुई जब आप इंजीनियरिंग की परीक्षा देने आप आगरा गए थे।आपने हिन्दू कॉलेज मुरादाबाद से बी.एस.सी. व एम.एस.सी. (गणित), अपने चाचा जी के पास रहते हुए किया। कॉलेज में आप स्टूडेंट यूनियन से भी सक्रिय रूप से जुड़े रहे तथा लेखन भी चलता रहा। एम.एस.सी. करने के दौरान आपको नैनीताल बैंक में नौकरी मिल गई । आपकी प्रथम पोस्टिंग रामनगर में हुई। समय समय पर आपकी अनेकों रचनाएं बैंक की पत्रिका में प्रकाशित होती रहीं। वर्ष 1983 में आपका तबादला मुजफ्फरनगर हो गया। मुजफ्फरनगर से  आप की कविताएं व रचनाएं नियमित रूप से स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित होने लगीं। वर्ष 1985- 86 में आप बैंक की पत्रिका के संपादक भी रहे। इसी दौरान आपको बैंक में ट्रेड यूनियन से जुडने का अवसर प्राप्त हुआ और आप काफी लंबे समय तक यूनियन के राष्ट्रीय सचिव रहे।

वर्ष 1987 में  आपका विवाह  रजनी अग्रवाल जी से हुआ। उन्होने आपको आपकी साहित्यिक यात्रा में सदैव सहयोग किया। वे ही आपकी प्रथम श्रोता होती हैं तथा सदैव आपका उत्साहवर्धन करती रहीं।  1999 में आपका दिल्ली ट्रांसफर हो गया। उन दिनों आप दीवाली व नववर्ष के शुभकामना संदेश एक सामाजिक विषय पर कविता लिखकर अपने मित्रों, संबंधियों तथा बैंक की करीबन 100 शाखाओं को भेजा करते थे। इसने भी आपकी लेखन प्रतिभा को एक नया आयाम दिया। इस कृत्य ने आपकी साहित्यिक यात्रा को भी नया आयाम दिया। सान 2000 में आपके नववर्ष संदेश के माध्यम से एक प्रसिद्ध साहित्यकार श्री रमेश नीलकमल जी से मुलाक़ात हुई। उन्होने आपको अपनी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित करने हेतु प्रोत्साहित किया। श्री नीलकमल जी न्यूमरोलॉजी अर्थात अंकशास्त्र के ज्ञाता थे। आप अब तक कीर्तिवर्धन आजाद के नाम से लिखा करते थे। श्री नीलकमल जी ने अंकशास्त्र  के आधार पर सुझाव दिया कि आप अपना नाम बदल कर अ कीर्तिवर्धन कर ले, तो यह नाम आपके लिए बहुत उपयुक्त होगा तथा इस नाम से आपको बहुत यशकीर्ति प्राप्त होगी।  यह अक्षरशः सत्य साबित हुआ। नाम बदलने के बाद आपके लेखन को एक नया आयाम मिला, और बहुत यश भी प्राप्त हुआ।

अब तक आपकी रचनाएं 1500 से अधिक  पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी साहित्यिक व्यस्तताएं बढ़ जाने के कारण वर्ष 2005 में अपने ट्रेड यूनियन से संयास ले लिया। वर्ष 2005 से अब तक आपकी 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, तथा अनेक पुस्तकों का अनुवाद नेपाली, कन्नड़, व मैथिली भाषा में हो चुका है। आप हिन्दी साहित्य कि लगभग सभी विधाओं में रचनाएँ लिखते हैं।

अक्सर आप अपनी छंदमुक्त कविताओं के बारे में एक रोचक घटना का ज़िक्र करते हैं। एक बार आपने अपनी एक कविता भोपाल की पत्रिका साहित्य परिक्रमा को भेजी। उत्तर आया कि पत्रिका में केवल छंदयुक्त कविताओं को ही प्रकाशित किया जाता है। इसी बात ने आपको एक निम्नलिखित कविता लिखने को प्रेरित किया –

नहीं जानता गीत किसे कहते हैं,

छंदों की वह रीत किसे कहते हैं,

क्या छंद बिना कोई भावों को नहीं कह पाएगा,

दृष्टिहीन, नागरिक का अधिकार नहीं पाएगा,

केवल मीठा खाने से क्या पता चलेगा,

कभी कसैला, कभी हो खट्टा, स्वाद बनेगा,

मीठे को महिमामंडित करने का, आधार बनेगा।

यह कविता आपने पत्रिका संपादक को भेज दी। इसके बाद उस पत्रिका में आप की अनेकानेक रचनाओं को स्थान दिया गया।

श्री नीलकमल जी से आपका संपर्क जीवन पर्यंत बना रहा। जिनके मार्गदर्शन से आपके लेखन में बहुत सुधार हुआ और वह आपके लिए वरदान साबित हुआ।

बिहार की एक साहित्यिक संस्था ने आपको विद्या वाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया।

सन 2012 में आपका ट्रान्सफर मुजफ्फरनगर हो गया, तथा वर्ष 2016 में आप सेवानिवृत्त हो गए। सेवानिवृत्त होने के पश्चात आप समाज सेवा में जुट गए, तथा मुजफ्फरनगर में ग्रामीण क्षेत्रों के करीब 20-25 विद्यालयों से जुड़ गए। इन विद्यालयों में आप प्रेरक वक्ता के रूप में नियमित रूप से जाते हैं और बच्चों को भाषण कला तथा अन्य विषयों पर मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन करते हैं।

आपको कई विश्वविद्यालयों/ संस्थानों में शोध पत्र पढ़ने तथा व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है, जिसमें सिक्किम विश्वविद्यालय, नेपाल प्रेस क्लब, राजस्थान के कई विश्वविद्यालय प्रमुख हैं।

आपकी बाल कविताओं की एक पुस्तक ‘सुबह सवेरे कर्नाटक व  उत्तराखंड के पाठ्यक्रम में भी शामिल है।

वोदित लेखकों को आपका संदेश है – “सतत लेखनरत रहें… समय के साथ लेखन में सुधार होता जाएग… और धीरे धीरे आपकी पहचान बनने लगेगी। कोशिश करें कि, लेखन सामाजिक विषयों पर हो, जिससे कि समाज जागृति व समाज का उत्थान हो सके।”

 

संकलन –  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

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कीर्ति वर्द्धन

हार्दिक धन्यवाद विवेक जी

Vijay Tiwari Kislay

महत्त्वपूर्ण विवरण
लेखक एवं
अग्रज अग्रवाल जी को
अंतस से बधाई।