डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी स्त्री  विमर्श  पर आधारित लघुकथा मैडम ! कुछ करो ना।  भ्रूण /कन्या हत्या और  स्त्री जीवन के  कटु सत्य को बेहद भावुकता से डॉ ऋचा जी ने शब्दों में उतार दिया है। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी  को जीवन के कटु सत्य को दर्शाती  लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 44 ☆

☆  लघुकथा – मैडम ! कुछ करो ना  

अस्पताल में विक्षिप्त अवस्था में पड़ी वह बार-बार चिल्ला उठती थी- मत फेंकों, मत फेंकों मेरी बच्चियों को नदी में। मैं….. मैं पाल लूँगी किसी तरह उन्हें। मजूरी करुँगी, भीख माँगूगी पर तुमसे पैसे नहीं माँगूगी। कहीं चली जाउँगी इन्हें लेकर, तुन्हें अपनी शक्ल भी नहीं दिखाउँगी| छोड़ दो इन्हें, तुम्हारे पैर पड़ती हूँ। इन बेचारी बच्चियों का क्या दोष? ………. और फिर मानों उसकी आवाज दूर होती चली गयी।

बेहोशी की हालत में वह बीच-बीच में कभी चिल्लाती, कभी गिड़गिड़ाती और कभी फूट-फूटकर रोने लगती। नर्स ने आकर नींद का इंजेक्शन दिया और वह औरत निढ़ाल होकर बिस्तर पर गिर गयी। दर्द उसके चेहरे पर अब भी पसरा था।

नर्स ने पास खड़ी समाज सेविका को बताया कि पिछले एक महीने से इस औरत का यही हाल है। नदी के पुल पर बेहोश पड़ी मिली थी| कोई अनजान आदमी अस्पताल में भर्ती करा गया था। पता चला है कि इसके पति ने इसकी पाँच, तीन और एक वर्ष की तीनों बच्चियों को इसके सामने पुल से नदी में फेंक दिया। जब इसने देखा कि पति ने दो बेटियों को नदी में फेंक दिया तो एक वर्ष की बच्ची जो इसकी गोद में थी उसे लेकर यह भागने लगी। उस हैवान ने उसे भी इसके हाथों से छीनकर नदी में फेंक दिया। तब से ही इसका यह हाल है। बहुत गहरा सदमा लगा है इसे।

मैडम ! क्यों करते हैं लोग ऐसा? फूल-सी बच्चियों को मौत की नींद सुलाते इनका दिल नहीं काँपता? नर्स गिड़गिड़ाती हुई बोली- मैडम ! कुछ करिए ना। आप तो समाज सेविका हैं, बहुत कुछ कर सकती हैं। समाज सेविका पथरायी आँखों से बिस्तर पर बेसुध पड़ी औरत को एकटक देख रही थी। पत्थर दिल समाज से टकरा-टकराकर उसके आँसू भी सूख गए थे।

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments