श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं एवं 6 उपन्यास, 6 लघुकथा संग्रह 14 कथा संग्रह एवं 6 तत्वज्ञान पर प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘राजवर्खी पाखरा।आप प्रत्येक मंगलवार को श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।)

साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 5 ☆ 

☆ राजवर्खी पाखरा 

झाडाझाडांचा झडला

सारा पानोरा पानोरा

फांदी फांदी प्रतिक्षेत

कधी फुलेला फुलोरा

 

पाने परदेशी झाली

झाड भकास उदास

कसे सांतवावे त्याला

धुके निराश निराश

 

पाने परदेशी झाली

परी पाखरू उडेना

निळ्या नभी निरखते

निळ्या स्वप्नांचा खजिना

 

पाखराच्या डोळाभर

स्वप्नं निळे साकारले

दूर कुणा पारध्याचे

डोळे कसे लकाकले.

 

राजवर्खी पाखरा तू

जाई जाई बा उडून

तुझे तूच जप आता

लाख मोलाचे रे प्राण

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

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