कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है उनकी भावप्रवण कविता “व्यथा साहित्यिकांच्या…”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 2 ☆ 

☆ व्यथा साहित्यिकांच्या…… ☆

व्यथा साहित्यिकांच्या

सांगाव्या तरी कशा

त्या व्यथा कथा बनल्या.. ०१

 

नेहमीच आशावादी असता

निराशा येई पदराला

त्या व्यथा कथा बनल्या..०२

 

शब्द-कल्पना घेऊन ओझे

सुरुवात होई लेखनाला

त्या व्यथा कथा बनल्या..०३

 

शब्द सुमनांजली केली

परी ती पुस्तकात लोपली

त्या व्यथा कथा बनल्या..०४

 

थोर साहित्यिकांचे साहित्य

अभ्यासात फक्त उरले

त्या व्यथा कथा बनल्या.. ०५

 

असे कसे हो हे घडले

उत्तर कुणाला न सापडले

त्या व्यथा कथा बनल्या..०६

 

काव्यपुष्प चोरल्या जाते

पाकळ्या तव चुरगाळल्या

त्या व्यथा कथा बनल्या..०७

 

संमेलन होतात भव्य कुठे

साहित्यिकांची कुबडी घेऊन

त्या व्यथा कथा बनल्या

 

शेवटी एक व्यथा उरली

कवी शापित गंधर्व ठरला

त्या व्यथा कथा बनल्या..०८

सांगणे इतुकेच माझे आता गडे

अंध ह्या चालीरीतीला पाडा तडे

राज कवीचे शब्द आता तोकडे.. ४

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

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