डॉ कुंवर प्रेमिल
☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#6 – [1] सोने की मुर्गी [2] वैभव ☆
[1]
सोने की मुर्गी
‘अरे सुनिए जी, लड़की वालों का फोन है—बात करिए—लीजिए ।’
‘आता हूँ भाग्यवान, तब तक तमीज से बातें करती रहो। लड़के वालों वाला रोब मत दिखाना। नौकरी पेशा सोने की मुर्गी है लड़की। मुश्किल से ऐसी लड़की हाथ लगती है।’
‘समझ गयी बाबा, समझ गयी, तब से जी–जी —कहकर ही तो उलझाए हुए हूँ।अब आप आकर अपनी ड्यूटी संभालें तो मुझे फुरसत मिले, इतनी जी तो अपनी पूरी उम्र भर में नहीं लगाई हाँ नहीं तो।’
[2]
वैभव
‘हाथी, घोड़े, ऊँट, क्या कहने थे बारात के, शाही शादी थी यार। सपने में भी ऐसी शादी नहीं देखी होगी यार।’
‘अरे भाई लड़की वाले कहीं लक्ष्मीजी के रिश्तेदार तो नहीं, इतना दिया, इतना दिया कि लड़के की सात पीढ़ियों ने भी नहीं देखा होगा। सोने चाँदी रूपयों की बरसात हो रही थी’।
‘कहीं लड़की का कोई अफेयर तो नही है। बात दबाने के लिए इतना दिया जा रहा हो, चमक-दमक में उलझकर रह गयै लड़केवाले।’
‘अजी अफेयर सफेयर सब दब जाएंगे सोने चांदी के वजन से, फिर लग्ज़री कार भी तो है। बारातियों ने ऐसा वैभव आज तक नहीं देखा होगा।हम बारातियों से अच्छे तो उनके नौकर चाकर दिखाई दे रहे थे। हम लोग तो बैंड बाजा वालों से भी गए गुजरे दिखाई दे रहे थे।
© डॉ कुँवर प्रेमिल
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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत सुंदर लघु कथा