श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है  समसामयिक विषय पर आधारित एक विचारणीयआलेख  विनाश और विकास के मध्य संतुलन !!। इस सामयिक एवं सार्थक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 89 ☆

 ? आलेख – विनाश और विकास के मध्य संतुलन !!  ?

आपने कभी सोचा कि हर प्रार्थना का उत्तर नहीं आता है और कई बार भगवान का भेजा हुआ संदेश इंसान समझ नहीं पाता है?? ऐसा क्यों होता है कि – अपनों का साथ बीच में ही छूट जाता है?

आज जो विषम परिस्थितियां बनी हैं। वे पहले भी बन चुकी हैं। एक सृष्टिकर्ता केवल सृष्टि करते जाए तो सोचिए क्या होगा ? वसुंधरा तो पूरी तरह नष्ट हो जाएगी न। इसीलिए विनाश या जिसे प्रलय या नष्ट होना कहा जाता है। इसका होना भी नितांत आवश्यक है।

विनाश और विकास के बीच संतुलन कैसे हो इस पर किसी कवि की सुंदर पंक्तियां हैं….

सब कुछ करता रहता फिर भी मौन है

सब को नचाने वाला आखिर कौन है

आज देखा जाए तो कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जिसने अपनों को नहीं खोया है। सारी सृष्टि हाहाकार कर उठी है। विनाश की ज्वाला ने धधक कर लाशों का ढेर बना दिया  और ऐसा विनाश रचा कि मानव मन भी आशंकित है।

किसी को किसी अपनों का कांधा नसीब नहीं हुआ तो किसी को अंतिम दर्शन भी नहीं मिले। यह विडंबना प्रकृति का एक ज्वलंत रूप ही है। आज का दृश्य सदियों बाद याद किया जायेगा। 

आज हम हैं कल हमारी यादें होंगी

जब हम ना होंगे हमारी बातें होंगी

कभी पलटोगे जिंदगी के पन्ने

तब शायद आपकी आंखों में भी बरसात होगी

यह विनाश की कहानी हमारी आने वाली कई पीढ़ियां याद करेगी। प्रकृति का नियम है और गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है…. मां के पेट से और पृथ्वी पर जन्म लेने वाला जो है उसका अंत उसी के चुने हुए कर्मों से होता है। पर विनाश सुनिश्चित है।

हम सब माया मोह के बंधन में भूल जाते हैं मेरा घर, मेरा बेटा, मेरा परिवार और मैं ही सर्वशक्तिमान, उस परम शक्ति को एक किनारे कर देते हैं। इस पर एक सुंदर सी घटना आपको याद दिलाती हूँ। एक राजा अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था। सारे जतन कर उसने वरदान प्राप्त किया कि…. जिसे भी वह छुए सब सोना हो जाए। विधाता ने तथास्तु कहकर सब नियंत्रित किया।

राजा की बेटी ने मांगा था कि उसकी मृत्यु अपने पिता के हाथों हो। राजा सब कुछ बड़े ध्यान से छूता। पर क्षण भर में ही वरदान उससे विनाश की ओर ले चला। राज्य का सारा राजपाट हर वस्तु सोने की हो निर्जीव हो गई।

बेटी खेलते खेलते आई राजा परेशान था। बेटी को गले लगाना चाहा पर।  यह क्या बात हुई वह छूते ही सोने की हो गई।

सृष्टि ने राजा को विकास और विनाश की घटना क्षणभर की ही लिखी थी।

ठीक वैसा ही मानव सब कुछ अपने हाथों लेकर आतताई बनने लगा था, परंतु सृष्टि की गतिविधि सभी को अलग-अलग कर नष्ट नहीं कर सकती थी। कहीं तूफान, कहीं जल का भयंकर प्रकोप, कहीं सूखा, तो कहीं कोरोना जैसी महामारी।

समूचा विश्व नष्ट होने की कगार पर था। उसने अपने शक्ति का आभास कराया और कुछ महात्मा जीव के कारण कहीं जीवन दायक हवा बनी, कहीं टीका बना और कहीं जीवन रक्षक दवाइयां, कहीं अच्छी चीजों का आविष्कार हुआ। शक्ति का संतुलन फिर से बनने लगा।

आत्मा कभी मर नहीं सकती, ना जल सकती है, न टूट सकती है, और ना खत्म हो सकती है, आत्मा अमर है।

नैन छिंदन्ती शस्त्राणि, नैन दहति पावकः

न चैनः क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः

बस एक नयी काया कवच से जीवन का फिर से आरंभ होता है। यही प्रकृति की विनाश और विकास की प्रक्रिया है। बिना दर्द के आंसू बहते नहीं है इसीलिए यह वक्त आया जो बहुत कुछ सिखा गया।

संपूर्ण जीवन की परिभाषा विकास विनाश से ही होकर गुजरती है। रेगिस्तान भी हरा हो जाता है।

जब अपने अपनों के साथ खड़े हो जाते हैं।  अब हमें हमारे जो अपने हैं उन्हें फिर से जीवन की आश नहीं छोड़नी चाहिए अपनों को समेट कर नई जिंदगी की शुरुआत करनी चाहिए।

चलिए जिंदगी का जश्न

कुछ इस तरह मनाते हैं

कुछ अच्छा याद रखते हैं

कुछ बुरा भूल जाते हैं

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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