डॉ. हंसा दीप
☆ लघुकथा – काश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ☆ डॉ. हंसा दीप ☆
गुजराती जैन दंपत्ति बस में सफर कर रहे थे। उनके समीप ही सिख दंपत्ति बैठे थे। बातों-बातों में सिख दंपत्ति ने अपने साथ का नाश्ता-मिठाई-नमकीन वगैरह गुजराती दंपत्ति से खाने का आग्रह किया। उन्होंने विनम्रता पूर्वक इनकार कर दिया और बताया कि जैन धर्म में सूर्यास्त के बाद खाना, नाश्ता आदि करने की मनाही होती है। सिख महिला ने अपने पति से पंजाबी में कहा – “ए लोग किन्ने पिछड़े हन, रात दी रोटी दा और धरम दा कि मेल?”
ठीक उसी समय गुजराती महिला अपने पति से कह रही थी – “आ लोकों केटला जूना जमाना ना छे, एटलो मोटो पागड़ो बांधे, ने लांबी डाढ़ी राखे छे।”
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© डॉ. हंसा दीप
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बढ़िया अभिव्यक्ति