श्री विजय कुमार

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी  की एक विचारणीय लघुकथा  “मजबूरी का फायदा)

☆ लघुकथा – मजबूरी का फायदा ☆

“क्या हुआ रज्जो मुंह क्यों लटका हुआ है तेरा?” रेशमा ने पूछा।

“वह जो 56 नंबर कोठी वाली बीबी है ना, उसने मुझे काम पर से निकाल दिया।” रज्जो ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।

“क्यों क्या कहती है?” रेशमा ने फिर पूछा।

“कुछ नहीं, बस कहा कि हमने नई बाई का इंतजाम कर लिया है, तेरी अब जरूरत नहीं, तेरी छुट्टी। ऐसे कैसे?” रज्जो गुस्से से बोली।

“मुझे पहले से ही अंदेशा था”, रेशमा ने कहा, “और मैंने तुझे पहले कहा भी था शायद?”

“क्या कहा था?” रज्जो उसकी तरफ ताकते हुए बोली।

“याद है, जब उन बीवी जी के पहला बच्चा हुआ था, उनकी पहली संतान, तो उन्हें तेरी बड़ी सख्त जरूरत थी। वह नौकरीपेशा थी और अपने पति के साथ अकेली रह रही थी”, रेशमा ने कहा. “और तूने उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर उनसे अपनी पगार दोगुनी करवा ली थी, जबकि बच्चे का कोई भी काम नहीं करना था तुझे। ठीक भी था। उस वक्त वह बच्चा संभालती या नई बाई ढूंढती। बस अब उसको कोई और अच्छी कामवाली मिल गई, तो उसने तेरी छुट्टी कर दी। अगर तू ऐसा ना करती, जैसा तूने किया था, तो शायद…।”

रज्जो चुप थी…।

***  

©  श्री विजय कुमार

सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)

संपर्क – # 103-सी, अशोक नगर, नज़दीक शिव मंदिर, अम्बाला छावनी- 133001 (हरियाणा)
ई मेल- [email protected] मोबाइल : 9813130512

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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