डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा ‘क्लीअरेंस’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 99 ☆
☆ लघुकथा – क्लीअरेंस ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆
सर ! इस फॉर्म पर आपके साईन चाहिए क्लीअरेंस करवाना है – विभाग प्रमुख से एक छात्रा ने कहा।
ठीक है। आपने विभाग के ग्रंथालय की सब पुस्तकें वापस कर दीं ?
सर! मैंने पुस्तकें ली ही नहीं थी। जरूरत ही नहीं पड़ी।
अच्छा, पिछले वर्ष पुस्तकें ली थीं आपने ?
नहीं सर, कोविड था ना, ऑनलाईन परीक्षा हुई तो गूगल से ही काम चल गया। सर पाठ्यपुस्तकें भी नहीं खरीदनी पड़ी, बी.ए.के तीन साल ऐसे ही निकल गए – छात्रा बड़े उत्साह से बोल रही थी। सर, जल्दी साईन कर दीजिए प्लीज, ऑफिस बंद हो जाएगा।
सर मन में धीरे से बुदबुदाए – कैसा क्लीअरेंस है यह ? पुस्तकें पढ़नी चाहिए ना! और साईन कर दिया। पास बैठे एक शिक्षक बोले – सर! मैं तो कब से कह रहा हूँ किताबें कॉलेज के ग्रंथालय को वापस कर देते हैं, कोई पढ़ता तो है नहीं, झंझट ही खत्म। कुछ बोले बिना विभाग प्रमुख ने उनकी ओर गौर से देखा मानों पूछ रहे हों आप ?
शिक्षक महोदय भी नजरें चुरा रहे थे।
©डॉ. ऋचा शर्मा
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