अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष 

योगाचार्य सुभाष कळम्बे 

 

(हम योगाचार्य सुभाष कळम्बे जी के हृदय से आभारी हैं जिन्होने हमें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर स्वास्थ्य से संबन्धित अत्यंत उपयोगी आलेख “स्वास्थ्य: मानव जाति के लिये परिसंपत्ति” प्रकाशनार्थ अनुमति प्रदान की।  आप “योग साधना एवं व्यायाम “पुस्तक के लेखक हैं तथा वर्तमान में ॐ साईबाग योग आश्रम, पुणे में योग प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।)

 

☆ स्वास्थ्य: मानव जाति के लिये परिसंपत्ति ☆

 

वर्तमानकालिक परिदृश्य में अगर कोई अपनी जिंदगी भर स्वस्थ और तंदुरुस्त रहता है, तो वह जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। उसे हासिल करने में किसी को प्राप्त यश एक प्रच्छन्न लाभ है। विलासप्रिय शैलीयुक्त जीवन व्यतीत करने की वर्तमान प्रवृत्ति एक तरह से एक के बाद एक अनेक तकलीफ़ों को निमंत्रण देती है।

इंटेर्णास्वास्थ्य किसे कहते हैं? मानवी व्यक्तित्व का मनो-दैहिक संतुलन ही स्वास्थ्य है। स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर पर नियंत्रण रख सकता है और स्वस्थ शरीर स्वस्थ मन के प्रति सकारात्मक अनुक्रिया दिखाता है। सरल शब्दों में, निर्दोष स्वास्थ्य यह सूचित करता है की आवश्यकता के अनुसार सभी शारीरिक प्रणालियों और अवयव उत्साह एवं उपयोगिता के साथ एक-दूसरे से समायोजन करें। तथापि अगर किसी वजह से मनो-दैहिक संतुलन अस्थिर हो जाता है, वह जीवन के लिए ऐसी खतरनाक व्याधियों को उत्पन्न करता है जो मानवी व्यक्तित्व को संकट-क्षेत्र के अंदर ले जा सकती है।

अस्थिर मनो-दैहिक संतुलन के परिणामस्वरूप शारीरिक एवं मानसिक बीमारियाँ/रोग, जैसे हृदय-विकार, दमा, मधुमेह, गुर्दात्रुटि, अपचन, कोश्ट्बद्धता, कैंसर, आर्थाराइट्स, (जोड़ों का दर्द), स्पोंडिलाइटिस, मोटापा, शारीरिक/मानसिक तनाव, उच्च/निम्न रक्तदाब, मानसिक अवसाद और निद्रानाश आदि। दूसरे शब्दों में ये व्याधियाँ/विकार आधुनिक विलासप्रिय जीवन शैली की देन है। मनो-दैहिक असंतुलन समूचे मानवी व्यक्तित्व को सीधे प्रभावित करता है, जिसका नतीजा अंततः मानसिक अवसाद की स्थिति को तुरंत निर्माण करता है। स्मरण रहे कि, मानसिक शांति बाज़ार से खरीदी नहीं जा सकती। उस की उपलब्धि केवल हमारी विलासप्रिय जीवन शैली में परिवर्तन ला कर और जीवन के प्रति सकारात्मक रुख अपनाने से ही संभव है। मानसिक शांति को बनाये रखने के लिए निराशावाद का विचारहीनता से अनुपालन करने की अपेक्षा सर्वशुभवाद सर्वोत्कृष्ट साधन है।  जब प्रकृति एक दरवाजे को बंद करती है, दूसरे दरवाजे को हमेशा खुला रखती है, बशर्ते कि आप उसे पहचानने के लिए पर्याप्त परिश्रमी हैं।

मनो-दैहिक संतुलन को अनुकूल स्थिति में कायम रखने के लिए सिर्फ स्वस्थ जीवन के निम्नलिखित सरल तथ्यों को याद रखिए :

जीने के लिए खा, कि खाने के लिए जिओ

स्वस्थ जिओ, स्वस्थ मरो।

संपत्ति का पीछा करने वाला व्यक्ति स्वस्थ जीवन के मूल तत्व को खो देता है। विलासमय जीवन शैली का आनंद लेने के लिए मनुष्य को ज्यादा से ज्यादा धन कमाने की अपूर्ण लालसा रहती है। इस प्रवृत्ति के कारण व्यक्ति अपना स्वास्थ्य और स्वस्थता की स्थिति, भोजन, सामाजिक, मानसिक शांति आदि की अपेक्षा करता है।  हर एक व्यक्ति के जीवन में मनो-दैहिक संतुलन प्रधान विषय रहना चाहिए। हमारे स्वास्थ्य के अनुरक्षण के लिए हमें किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। अगर प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ है, तो समाज और राष्ट्र भी स्वस्थ बनते हैं। एक स्वस्थ देश नैसर्गिक विपत्तियों में प्रबल इच्छाशक्ति के साथ टिका रह सकता है।  इसके अतिरिक्त, अपनी मानसिक शांति बनाए रखने के लिए हमें कुछ स्वर्णिम नियमों को ध्यान में रखना चाहिए।  दूसरों के प्रति प्रेमभाव रखना सीखना चाहिए, जो कि लाभदायक जीवन का सत्व है।  औरों पर ईर्ष्या न कीजिये। अपने दिमाग में शत्रुता और घृणा को थोड़ी भी जगह मत दीजिये।  दूसरों के सुख में सहभागी बन कर उसका आनंद उठाइये। संभव हो तो  मदद के लिए हाथ आगे कीजिये, अगर किसी को जरूरत है।  इससे आप को अतिरिक्त मानसिक संतोष की प्राप्ति होगी। अगर हम किसी का भला नहीं कर सकते, तो बुरा करने से तो अपने आप को रोक सकते हैं।  सहायता नहीं दे सकते, तो बाधाओं का निर्माण मत करो। अपने दैनिक जीवन में सकारात्मक रुख अपनाओ।

इसके अलावा, अपनी आवश्यकताओं से ज्यादा चल और अचल संपत्ति का संचय शांति के बजाए दुश्चिंता और तनाव को पैदा करता है।  आपके नित्य जीवन में सहनशील रहिए। भूत या भविष्य की चिंता मत कीजिये; वर्तमान में रहिए। मानसिक सांत्वना एवं मन-शुद्धिकरण की खोज में लोग आध्यात्मिकता, धर्म, पुराणशास्त्र, सत्संग, आदि मार्गों का अनुगमन कराते हैं। ये सभी गतिविधियां जीवन में वस्तुतः आश्चर्यजनक भूमिका निभाते हैं, बशर्ते कि, हर हालत में मानवी अहं का समर्पण किया गया हो। पुराण-शास्त्र अभिगम के बिना विचार एवं जीवन के तथ्यों को बिना जाने, स्वीकारे व्यक्ति को लाभ के बजाय नुकसान पहुंचाएगा। अपने जीवन में उच्चतम लक्ष्यों की उपलब्धि एक अद्भुत पहलू हैं, अगर व्यक्तिगत योग्यता और अभिवृत्ति अनुकूल हो तो। जहां तक जीवन के लक्ष्य एवं उद्देश्य का सवाल है, कई विकल्प अवश्य रखिए, क्योंकि मानवी इच्छाओं का अंत नहीं है।  बिना विकल्प के इच्छाओं, लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति में विफलता मनः शारीरिक विकार उत्पन्न करके स्वस्थ्य पर सीधा बुरा प्रभाव डालेगी। कुल मिलाकर, बचपन से ही हमारे विचारों में सांस्कृतिक विरासत की साथ स्वास्थ्यकर जीवन शैली का पोषण किया जाना चाहिए।  आपके शरीर एवं मन को कुछ न कुछ सकारात्मक, रचनात्मक एवं उपयोगी बातें करने में व्यस्त रखिए।  साथ ही साथ, स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन (और प्रतिक्रम से) की सुरक्षा के लिए आपके दैनिक नित्यक्रम में कुछ ऐरोबिक व्यायाम, योग, ध्यान और कैलोरीज़ की व्यक्तिगत आवश्यकतानुसार पौष्टिक भोजन के आहार-विधान को समाविष्ट कीजिये। अधिकांश स्वास्थ्य समस्याओं को निपटाने या रोकने के लिए कार्यकाल में समुचित विश्राम कीजिये। अधिकांश स्वास्थ्य समस्याओं को निपटाने या रोकने के लिए कार्यकाल में समुचित विश्राम कीजिये और रात को कम से कम 7-8 घंटे की गहरी नींद लीजिये। सप्ताह में 5 बार 30 मिनटों के लिए निर्धारित हृदयस्पन्दन अनुपात को बनाए रखकर द्रुत-भ्रमण (तेज चलना), जॉगिंग, साइक्लिंग, तैरना, आदि आपके स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाएँगे। इसलिए उपर्युक्त बातें ध्यान में रखकर किसी दुर्घटना को टालने के लिए आपके दिन की योजना बनाइये। यहाँ यह उक्ति स्मरणीय है :

शरीरमाद्यम खलुधर्मसाधनम

धर्म के मार्ग पर प्रामाणिकता से अनुगमन करने के लिए आपके शरीर और मन का स्वस्थ होना जरूरी है।  मन जो भी सोचता है, शरीर उसको प्रतिबिम्बित करता है।  इसलिए मानवी जीवन में मानसिक सुस्थिति को बनाए रखने में ध्यान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सरल शब्दों में ध्यान का अर्थ “किसी बात पर मन में निरंतर सोचना” है।  आपकी दिनचर्या में आगे के कार्य में मन और आत्मा डालकर, उत्कृष्ट रूप में करने के लिए अपने शरीर और मन को प्रेरित कीजिये, जिससे अतिरिक्त शारीरिक एवं मानसिक तनाव में कमी आएगी। एक समय एक ही काम साधिए। स्थानबद्ध जीवनशैली जैसे दूरदर्शन देखते रहना, गप्प, इंटरनेट पर ब्राऊसिंग, अति-निद्रा, धूम्रपान, तंबाकू चबाते रहना, अति भोजन आदि का अतिरेक जीवनरेखा को घटाता है। इसलिए दोषरहित स्वास्थ्य की उपलब्धि के उद्देश्य से मनो-दैहिक संतुलन के अनुरक्षण के लिए किस प्रकार जवान एवं स्वस्थ रहें इस बारे में कुछ संकेत संक्षेप में देए गए हैं।

  1. हँसिये और विनोदप्रिय रहिए। खिन्न न रहें।
  2. विगत को विगत ही रहने दें। भूतकाल के बारे में सोचते रहने से अनावश्यक तनाव पैदा होता है।
  3. जल्दी सोएँ और जल्दी उठें; यह स्वास्थ्यकर और अच्छा है।
  4. दुबले रहिए; केवल 30% अति भार भी हानिकारक है।
  5. अध्ययन, पठन, सामाजिक कार्य चालू रखें। सतर्कता और सक्रियता मन-मस्तिष्क की कोशिकाओं को स्वस्थ रखती है।
  6. मनोनुकूल काम करना जारी रखें। निवृत्त न हों, उससे आपका शरीर मंद बनेगा।
  7. अपने जीवन के स्वामी स्वयं बनिए। आप औरों द्वारा धकेले गए तो उससे तनाव पैदा होगा।
  8. दवा की अत्यधिक गोलियों से शरीर का विनाश होता है। उतनी ही लें; जितनी अनिवार्य हो।
  9. भारवृद्धि और कमी के बीच झूलते रहना गलत है। 1.
  10. 10. व्यायाम कीजिये; धूम्रपान करना छोड़ दीजिये और चर्बीवाले अन्न कम खाइये।
  11. स्वास्थ्य और मृत्यु की चिंता मत कीजिये; सिर्फ जीवन के साथ आगे बढ़िए और उसका आनंद उठाइये।

 

अंतिम परंतु कम मत्वपूर्ण नहीं –

हमेशा याद रखिए

स्वास्थ्य परिसंपत्ति है, उसे संभाल कर रखिए।

©  Yogacharya Subhash Kalambe

Yoga Therapist, Health & Fitness Consultant
BPE, MPE, NIS (Athletics), Dip. Yoga (Kaivalyadham), Dip. SportsMedicine & SportsManagement, Black Belt (Marshal Art)

7, Parishram Housing Society, Near Baker Factory, Viman Nagar PUNE – 411 014.Maharashtra (India)
Phone: 020-26630475Mobile: 9822094849, Email: [email protected]

 

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