सुश्री स्वप्ना अमृतकर
(सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं। आप कविता की विभिन्न विधाओं में दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपने कविता के साप्ताहिक स्तम्भ के लिए हमारे आग्रह को स्वीकार किया, इसके लिए हम हृदय से आपके आभारी हैं। हम आपका “साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना की कवितायें “ शीर्षक से प्रारम्भ कर रहे हैं। वर्षा ऋतु ने हमारे द्वार पर दस्तक दी है। सुश्री स्वप्ना जी के ही शब्दों में “पावसाळ्याची सुरुवात आहे.. आता सगळ्या कवींचे, लेखकांचे मन जागे होते लिखाणासाठी .. म्हणून ह्या वेळेसचे साहित्य “ । इस शृंखला में प्रथम पाँच कवितायें वर्षा ऋतु पर आधारित हैं जो आप प्रत्येक शनिवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की कविता “शिडकावा”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती # -2 ☆
☆ शिडकावा ☆
(१२ओळी)
नभातल्या ढगांची
जणु मैत्री तुटते
कडकडाट वीजेचा
ती कोणा वरती रुसते? ..
विसर पडावा
धरेला त्या उष्माचा
सुगंधी भूल टोचावी
स्पर्ष व्हावा जलाचा .
पावसाच्या ओढीने
धरा व्याकूळ होते
मृदु थेंबाचा शिडकावा
तिला मोहरुन टाकते .
© स्वप्ना अमृतकर , पुणे