श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श और भ्रूण हत्या जैसे विषय पर आधारित एक सुखांत एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा “आशा की किरण”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 154 ☆
🌹 लघुकथा 🌹 आशा की किरण ❤️
बड़े बड़े अक्षरों पर लिख था – – – ” भ्रूण का पता लगाना कानूनी अपराध है।”
मेडिकल साइंस की देन गर्भ में भ्रूण का पता लगा लेना।
आशा भी इस बीमारी का शिकार बनी। उसे लगा कि भ्रूण पता करके यदि शिशु बालक है तो गर्भ में रखेगी अन्यथा वह गर्भ गिरा झंझट से मुक्त हो जाएगी।
क्योंकि गरीबी परिस्थिति के चलते अपने घर में बहनों के साथ होते अन्याय को वह बचपन से देखते आ रही थी।
सुंदर सुशील पढ़ी-लिखी होने के कारण उसका विवाह बिना दहेज के एक सुंदर नौजवान पवन के साथ तय हुआ। विवाह के बाद पता चला कि वह माँ बनने वाली है।
किसी प्रकार पैसों का इंतजाम कर अपने पति पवन को मना वह भ्रूण जांच कराने चली गई। रिपोर्ट आई कि होने वाली संतान बालक है खुशी का ठिकाना ना रहा। दुर्गा माता की नवरात्र का समय था। वह अपनी प्रसन्नता जल्दी से जल्दी बताना चाहती थी परंतु यह सोच कर कि लोग क्या कहेंगे समय आने पर पता चलेगा।
आज प्रातः स्नान कर वह खुशी-खुशी अस्पताल पहुंच गई। मन में संतुष्टि थी कि होने वाला बच्चा बेटा ही होगा। वह भी नवरात्र के पहला दिन। निश्चित समय पर ऑपरेशन से बच्चा बाहर आया। आशा को होश नहीं था। होश आने पर उसने देखा… उसका पति एक हाथ में शिशु और दूसरे हाथ में मिठाई का डिब्बा ले, सभी को मिठाइयाँ बाँट रहा है वह प्रसन्नता से भर उठी। उसकी आशा जो पूरी हो गई।
पास आकर पवन ने कहा… “बधाई हो मेरी ग्रहलक्ष्मी हमारे घर आशा की किरण आ गई। अब हमारे दिन सुधर जाएंगे।”
“साधु संतो के मुख से सुना है कि अश्वमेध यज्ञ करने के बाद भी आदमी को संतान की प्राप्ति नहीं होती, परंतु जिसके घर स्वयं भगवान चाहते हैं वहाँ बिटिया का जन्म होता है। स्वयं माँ भगवती पधारती है।”
आशा अपने पति को इतना खुश देख कर थोड़ी हतप्रभ थी क्योंकि, इतनी बड़ी बात उन्होंने छुपा कर रखा था और उसे एक महापाप से बचा लिया।
आँखों से बहते आंसुओं की धार से बेटे और बेटी का फर्क मिट चुका था। आशा अपने किरण को पाकर बहुत खुश हो गई और पति देव का बार-बार धन्यवाद करने लगी।
शुभ नव वर्ष और नवरात्र की कामना करते वह भाव विभोर होने लगी।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈