सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “भूल जाते हैं”। )

 

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 3  

 

☆ भूल जाते हैं ☆

 

जो हुआ, सो हुआ, उसे वहीँ ख़त्म कर आते हैं

आओ हम-तुम मिलकर, रंजिश सब भूल जाते हैं

 

सफ़र तो अनमोल था; कुछ फूल, कुछ कांटे थे

चलो, हम खुशबुओं में फिर सारोबार हो जाते हैं

 

आओ पास बैठो, सीने से लिपट जाना चाहती हूँ

तुम्हारे साथ से मौसम के तेवर भी बदल जाते हैं

 

तुम ठुड्डी पकड़कर मेरा चेहरा ज़रा सा उठा लेना

इस ख़याल मात्र से दरख़्त भी गुनगुना जाते हैं

 

ज़िंदगी चंद लम्हों की, न जाने कब गुज़र जाए

अनमोल हैं वो पल जो साथ हैं, उन्हें जी जाते हैं

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

 

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