डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  स्त्री विमर्श आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘दुख में सुख’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 124 ☆

☆ लघुकथा – दुख में सुख ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

गर्मी की छुट्टियों में मायके गयी तो देखा कि माँ थोड़ी ही देर पहले कही बात भूल रही है। अलमारी की चाभी और रुपए पैसे रखकर भूलना तो आम बात हो गयी। कई बार वह खुद ही झुंझलाकर कह उठती— ‘पता नहीं क्या हो गया है ? कुछ याद ही नहीं रहता- कहाँ- क्या रख दिया ?’ झुकी पीठ के साथ वह दिन भर काम में लगी रहती। सुबह की एक चाय ही बस आराम से पीना चाहती। उसके बाद घर के कामों का जो सिलसिला शुरू होता वह रात ग्यारह बजे तक चलता रहता। रात में सोती तो बिस्तर पर लेटते ही झुकी पीठ में टीस उठती।

माँ की पीठ अब पहले से भी अधिक झुक गयी थी पर बेटियों के मायके आने पर वह सब कुछ भूलकर और तेजी से काम में जुट जाती। उसे चिंता रहती कि मायके से अच्छी यादें लेकर ही जाएं बेटियां। माहौल खुशनुमा बनाने के लिए वह हँसती-गुनगुनाती, नाती-नातिन के साथ खेलती, खिलखिलाती…?

गर्मी की रात, थकी-हारी माँ नाती – पोतों से घिरी छत पर लेटी है। इलाहाबाद की गर्मी, हवा का नाम नहीं। वह बच्चों से जोर-जोर से बुलवा रही है- ‘चिडिया, कौआ, तोता सब उड़ो, उड़ो, उड़ो, हवा चलो, चलो, चलो,’ बच्चे चिल्ला- चिल्लाकर बोलने लगे, उनके लिए यह अच्छा खेल था।

माँ उनींदे स्वर में बोली – ‘बेटी, जब से थोड़ा भूलने लगी हूँ, मन बड़ा शांत है। किसी की तीखी बात थोड़ी देर असर करती है फिर किसने क्या ताना मारा……. कुछ याद नहीं। हम औरतों के लिए बहुत जरूरी है यह।’ ठंडी हवा चलने लगी थी। माँ कब सो गयी पता ही नहीं चला। चाँदनी उसके चेहरे पर पसर गयी।

माँ ने दु:ख में भी सुख ढूंढ़ लिया था।

© डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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