सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ “ऐसा भी या ऐसा ही” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

शहर के सुप्रसिद्ध काॅर्डियोलाॅजिस्ट डाॅ वसीम से मिलने आये थे अधिवक्ता समीर।

बचपन के दोस्त।खूब सारी यादों का जमा खर्च  शुरू हुआ।स्कूल, काॅलेज ,व्यवसाय ,शादी और भी बहुत कुछ—-

शादी की बात चली तो समीर मन ही मन मुस्कुराने लगे।

डाॅ वसीम ने उनके मुस्कुराने का राज़ पूछा—बरसों पुरानी  याद आज भी रूमानी बना देती है शायद।

अरे नहीं यार—तुम्हें याद है मेरी शादी से जुड़ा वाकया–

कुछ याद नहीं आ रहा है !

तो सुनो—हमारी शादी की सारी तैयारियां हो चुकी थीं।मेहमान भी आ चुके थे।पूरे एक घंटे तक भी मौलाना जी का अता पता न था।

तब तो फोन भी नहीं थे।थक हार कर एक लड़के को दौड़ाया कि जाओ मौलानाजी को लेकर आओ।

उस लड़के के साथ मौलाना प्रकट हुये।उनसे पूछा गया–आपने इतनी देर क्यों कर दी ?

जवाब मिला—“टी वी पर रामायण देख रहा था।”

* * *

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments