श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। आज से प्रत्येक शुक्रवार हम आपके लिए श्री संजय भारद्वाज जी द्वारा उनकी चुनिंदा पुस्तकों पर समीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
संजय दृष्टि – समीक्षा का शुक्रवार # 13
राष्ट्रीय एकता के प्रहरी भारतीय सरोकारः एक राष्ट्रीय सनद – सम्पादक- डॉ. केशव फालके समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज
पुस्तक का नाम- राष्ट्रीय एकता के प्रहरी भारतीय सरोकारः एक राष्ट्रीय सनद
विधा- लेख संग्रह
सम्पादक- डॉ. केशव फालके
प्रसंगवश ☆ श्री संजय भारद्वाज
ऑफलाइन से ऑनलाइन तक नित तकनीक की क्राँति उगलती इक्कीसवीं सदी में किसी पुस्तक का प्रकाशन मशीनी दृष्टि से सामान्य प्रक्रिया है। पुस्तकों के इस ढेर में किसी महत्वपूर्ण विषय पर भिन्न-भिन्न विचारधारा के विद्वानों के विचारों का तटस्थ सम्पादक द्वारा किया गया संग्रह हाथ लगना पुस्तक को ‘ग्रंथ’ तथा प्रकाशन को ‘प्रसंग’ बनाता है। यही कारण है कि पुस्तकों की भूमिका / समीक्षा ‘रूटीन-वश’ लिखती कलम महत्वपूर्ण ग्रंथ पर ‘प्रसंगवश’ लिखती है।
‘राष्ट्रीय एकता के प्रहरी भारतीय सरोकारः एक राष्ट्रीय सनद’ सतही तौर तैयार किया गया ‘एक और ग्रंथ’ मात्र नहीं है। ध्यान आकृष्ट करने की ग्रंथिवश सम्पादित किया गया ग्रंथ भी नहीं है। वस्तुतः यह राष्ट्र-राज्य के तंत्रिका तंतुओं और मज्जा- रज्जु को स्पंदित तथा संतुलित करने वाला ईमानदार प्रयास है। इसे अनेक विशेषताओं और छटाओं से सम्पन्न ग्रंथ कहा जा सकता है।
रसायनविज्ञान में एक शब्द है- ‘कैटेलिस्ट।’ हिंदी में हम इसे उत्प्रेरक कहते हैं। किसी भी रासायनिक प्रक्रिया में भाग न लेते हुए प्रक्रिया को तीव्र या मंद कर उससे वांछित परिणाम प्राप्त करने की भूमिका कैटेलिस्ट की होती है। इस ग्रंथ के सम्पादक डॉ. केशव फालके ने इसी भूमिका का वहन करते हुए ग्रंथ के लिए प्राप्त लेखों में कहीं कोई वैचारिक हस्तक्षेप नहीं किया। यह बहुत महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि ग्रंथ में आपको समान सोच वाले विचार पढ़ने मिलेंगे तो घोर विपरीत ध्रुवों की तार्किकता /अतार्किकता, मंथन के दर्शन भी होंगे। विश्वास किया जाना चाहिए कि यह ग्रंथ न केवल पाठकों को समृद्ध करेगा, अपितु विपरीत धुरी के विद्वानों को भी एक-दूसरे के विचार समझने में सहायता करेगा।
‘राष्ट्रीय एकता के प्रहरी भारतीय सरोकारः एक राष्ट्रीय सनद’ इस विषय के बहुआयामी स्वरूप पर सम्पादक ने गम्भीर चिंतन किया है। प्रातः उठने से रात सोने तक जीवन के जितने पहलू हो सकते हैं, सृष्टि पर आगमन से लेकर सृष्टि से गमन तक जितने आयाम हो सकते हैं, भारत के संदर्भ में एकता के जितने सरोकार हो सकते हैं, अपनी सीमा में अधिकांश तक प्रत्यक्ष या परोक्ष पहुँचने का प्रयत्न लेखक ने किया है। संविधान, नागरिक, स्त्री, लोक, धर्म, संस्कृति, संत-दर्शन, त्योहार, युवा, शिक्षक, सृजेता, कलाकार, ललित कला, संगीत, भक्ति संगीत, संगीत नाटक अकादेमी, साहित्य अकादेमी, सिनेमा, भारतीय नृत्य, अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वद्यालय, शांतिनिकेतन, संग्रहालय, खेल, सेना, विज्ञान, राजनीति, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रसारण-प्रचारण जैसे विभिन्न संदर्भों और परिप्रेक्ष्यों में भारत की राष्ट्रीय एकता पर विचार किया गया है। एक धारणा है कि ‘फूट डालो और राज करो’ राजनीति की बुनियाद होती है। राष्ट्रीय एकता में राजनीति की सकारात्मक भूमिका का विवेचन भी तत्सम्बंधी लेख द्वारा यह ग्रंथ करता है। दिल्ली को शासन का केंद्र मानकर इर्द-गिर्द के कुछ प्रदेशों को ही देश का प्राण समझ लेने की एक भ्रांत धारणा मुगलों-अँग्रेजों से लेकर स्वाधीन भारत के सत्ताधारियों में दीखती रही है। इसे उनकी क्षमता और दृष्टि का परावर्तन भी कह सकते हैं। राष्ट्रीय एकता में सुदूर पूर्वोत्तर भारत और द्रविड़ दक्षिण के योगदान की चर्चा इस ग्रंथ की परिधि को विस्तृत करती है।
अँग्रेजी में कहावत है- ‘कैच देम यंग।’ राष्ट्रीय एकता के बीज देश के युवा नागरिकों में रोपित करने में ‘राष्ट्रीय सेवा योजना’ की भूमिका उल्लेखनीय है। सम्पादक अपने सेवाकाल में एन.एस.एस. के राज्य सम्पर्क अधिकारी और विशेष कार्य-अधिकारी रहे। स्वाभाविक है कि उन्होंने योजना के प्रभाव और परिणाम निकट से देखे, जाने हैं। राष्ट्रीय सेवा योजना पर ग्रंथ में समाविष्ट लेख, विषय के एक महत्वपूर्ण आयाम पर प्रकाश डालता है।
सम्पादक ने यह ग्रंथ राष्ट्रीय एकता के अनन्य पैरोकार महात्मा गांधी को समर्पित किया है। गांधीजी के राजनीतिक निर्णयों या व्यक्तिगत जीवन के पक्षों से सहमति या असहमति रखनेवाले भी उनके सामाजिक और मानवीय सरोकारों में आस्था रखते हैं। यही कारण है कि गांधी दर्शन ने व्यापक स्वीकृति पाई और अनुकरणीय बन सका। एकता को साधने की साधना में जीवन होम करनेवाले महात्मा को यह ग्रंथ समर्पित करना इसके उद्देश्य और ध्येय को सम्मान प्रदान करता है।
व्यापक विषय पर व्यापक दृष्टि और व्यापक स्तर पर काम करते समय सामना भी व्यापक समस्याओं से करना होता है। सम्पादक ने इस ग्रंथ को लगभग चार वर्ष दिए हैं। विषय के विविध आयामों को न्याय देने के लिए लेख मंगवाए गए है, केवल इतना भर नहीं है। अधिकांश लेख सम्बंधित विषय के ज्ञाता/ विद्वान/शोधार्थी/अभ्यासक ने लिखे हैं। यह बहुत अच्छी बात है। किंतु विषय का विजिगीषु कलम का भी धनी हो, यह आवश्यक नहीं। फलतः पाठकों को कतिपय लेख किसी शोध प्रबंध का भाग लग सकते हैं, कुछ सरकारी नीतिगत वक्तव्य-से तो कुछ सम्पादक का आग्रह न ठुकरा पाने की विवशता में लिखे गए। तब भी इनमें से प्रत्येक में जानकारी और ग्राह्य तत्व तो हैं ही।
अलबत्ता ग्रंथ की जान हैं वे लेख जो विषय को जीनेवालों द्वारा लिखे गए हैं। डूबकर लिखे गए ये लेख ऐसे हैं कि उनसे उबरने का मन न हो- गहरे और गहरे जाने की इच्छा करे। प्रस्तुत ग्रंथ का ऐसे लेखों के रिक्थ से सम्पन्न होना इसकी समृद्धि में चार चाँद लगाता है।
सम्पादक ‘बन-जारा’ लोक साहित्य के मर्मज्ञ हैं। बंजारा का अपना स्थायी ठौर नहीं होता। वन-प्रांतर का भटकाव उसकी अनुभव पूँजी को समृद्ध करता है। स्थितप्रज्ञ ऐसा कि मोह से मुक्त अपनी यात्रा जारी राखता है। दातृत्व ऐसा कि एक क्षेत्र का अनुभव दूसरे और तीसरे चौथे तक पहुँचाता है। जन-संचेतना, लोक ज्ञान, उपचार, लोक औषधियों का संवाहक होता है वह। ‘बन-जारा’ से बढ़कर राष्ट्रीय एकता का मूर्तिमान प्रतीक दूसरा भला कौन होगा ?
सहज था कि सम्पादक के भीतर बसा यह ‘बन-जारा’ उनसे राष्ट्रीय एकता के सरोकारों पर विविध विचारों को संकलित करवाता। उनका पिछला ग्रंथ भी इसी विषय के एक आयाम ‘राष्ट्रीय एकता की कड़ी: हिंदी भाषा और साहित्य’ पर प्रकाशित हुआ है। जब आग लगी हो तो आग के विरोध में मोर्चे निकालना, नारेबाजी करना, धरना-प्रदर्शन में सम्मिलित होना, हाथ में हाथ धरकर मानव शृंखला बनाने के मुकाबले बेहतर है दौड़कर एक घड़ा पानी लाना और आग पर डालना। डॉ केशव फालके यही कर रहे हैं।
विध्वंस की लंका के विनाश के लिए सद्भाव के सेतु के रूप में ‘राष्ट्रीय एकता के भारतीय सरोकार : एक राष्ट्रीय सनद’ की भूमिका महनीय सिद्ध होगी, इसका विश्वास है।
© संजय भारद्वाज
नाटककार-निर्देशक
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈