हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 12 – पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 12 – पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

स्टेट लिबर्टी पार्क एवम अन्य अनेक स्थानों पर देखने मिले ये पोर्टेबल सोलर साइन बोर्ड। जहां आवश्यकता हो वहां , जो सूचना दिखानी हो वह कम्प्यूटर जनित पट्टिका ग्लोइंग लेटर्स में ।

पर फिलहाल मेरी रुचि इसमें नहीं थी कि बोर्ड पर क्या डिस्प्ले हो रहा है , अपने पाठको के लिए मेरी रुचि थी स्वयं इस पोर्टेबल साइन बोर्ड तकनीक पर । ऊपर सोलर पैनल लगे हैं , सूरज की रोशनी बैटरी चार्ज कर रही है , मतलब रात में भी डिस्प्ले बना रहेगा । गार्डन एरिया किसी तरह क्षति ग्रस्त नहीं होगा । यथा आवश्यकता साइन बोर्ड हटाया जा सकता है ।

है न कुछ छोटा पर भारत में बहुत अप्रयुक्त नया सा ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 11 – डाक व्यवस्था ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 11 –  डाक व्यवस्था ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

डाक व्यवस्था 

मेघदूत की डाक व्यवस्था महाकवि कालिदास ने भारतीय वांग्मय में की थी, आज तक इस अमर साहित्य का रसास्वादन, पाठ प्रतिपाठ हम करते हैं और हर बार नए आनंद सागर में गोते लगाते हैं। सात समंदर पार मेरे सामान्य पाठको को जानने में रुचि हो सकती है कि भारत की तुलना में यहां की डाक व्यवस्था कैसी है?

भोपाल में तो मेरा पोस्टमैन होली दिवाली अपेक्षा करता है कि उसे एक मिठाई के डिब्बे के साथ कुछ बख्शीश मिले, आखिर वह मेरी बुक पोस्ट से लेकर समीक्षार्थ किताबो, पत्रिकाओं के स्पीड पोस्ट तक और कभी कभार पारिश्रमिक का मनीआर्डर भी लाया करता है। यद्यपि ई मेल और सीधे बैंक खाते में पेमेंट प्रणाली ने बहुत कुछ बदल दिया है, पर फिर भी डाक के इंतजार का मजा अलग ही होता है। पत्नी चुटकी लेती है, की जितना इंतजार और स्वागत डाकिए का इस घर में होता है उतना शायद ही कहीं होता हो ।

भारतीय पोस्ट आफिस नेटवर्क गांव गांव तक व्याप्त है, गंगाजल से लेकर तिरंगे की बिक्री तक का काम पोस्ट आफिस ने किए हैं।

यहां के डाक विभाग की सामान्य जानकारी इस लिंक पर है >> https://www.usps.com/

कल बेटे के साथ यू एस पोस्ट आफिस जाना हुआ, बेटे को कोई जरूरी रजिस्टर्ड डाक भेजनी थी , उसने घर पर ही पेमेंट करके ट्रेकिंग आई डी सहित एड्रेस प्रिंट कर लिया और उसे लिफाफे पर चिपका कर डाक तैयार कर ली । उसने बताया की वह चाहे तो इसका पिकअप भी घर से ही अरेंज हो सकता है, जिसमे समय लग सकता है, अतः हमने स्वयं डाकघर जाकर वहां डाक देने का फैसला किया । हम डाकघर गए, केवल एक व्यक्ति ही वहां काम पर था , उसने डाक लेकर रसीद हमे दे दी । कोई भीड़ नहीं, कोई लाइन नहीं । सेल्फ सर्विस । लगभग स्वचालित सा ।

घर के बाहर एक मेल बाक्स लगा हुआ है, जिसमे बेटे की ढेर सी डाक पोस्ट से, कुरियर से कब आ जाती है पता ही नहीं लग पाता।

पर दूर देश में संदेश का महत्व निर्विवाद है । चिट्ठी आई है चिट्ठी आई है।

यहां के जिन उपेक्षित, सामान्य, अनदेखे मुद्दों पर आप पढ़ना चाहें जरूर बताएं । अवश्य लिखूंगा ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 10 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

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रुकी हुई कार सड़क पार करता आदमी

आप को सड़क पार करता देख, बाअदब कोई मर्सडीज भी रुक जाए और स्टीयरिंग व्हील पर बैठा व्यक्ति मुस्करा कर आपको सड़क क्रास करने का इशारा करे, तो भारत में भले ही अजीब सा लगे, पर अमेरिका में स्टेट ला के अनुसार सड़क पर पहला अधिकार पैदल चलने वाले का होता है। जेब्रा क्रॉसिंग पर यदि कोई सिग्नल नहीं है तो बेधड़क बढ़ जाइए, निश्चिंत रहिए, कार रुक ही जायेगी ।

हिंदुस्तान में फर्राटे भरते, गड्ढों में भरा कीचड़ उछालते गाड़ियों पर सवार अमीरजादों के मनोभाव तो ऐसे होते हैं मानो उन्होंने सड़क ही खरीद ली हो। किंतु यहां की सीमित आबादी, सुशिक्षित जन साधारण, नियमो के प्रति आम आदमी का संवेदन शील रवैया, पोलिस की चाक चौबंद व्यवस्था वे कारण हैं जिनके चलते बिना भीड़ की सड़क पर भी रुकी हुई कार और सड़क पार करते आदमी का दृश्य यहां सहजता से देखने मिल जाता है।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 9 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

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इंसान और पशु पक्षियों का साथ नैसर्गिक है

जो लोग घरों में कोई पशु पक्षी पालते हैं वे अपेक्षाकृत तनाव मुक्त रहते हैं, यद्यपि पालतू प्राणी की चिंता में अवश्य उन्हें व्यस्त रहना पड़ता है । अपने पालतू डागी को लेकर घूमते लोग सहज ही मिल जाते हैं । यहां बिल्लियां बहुत प्यार से पाली जाती हैं । अलग अलग ब्रीड के प्यारे प्यारे कुत्तों पर फिर कभी लिखता हूं । आज महज उन प्राणियों का एक कोलाज देखिए जो यहां घूमते हुए मुझे प्रायः मिले । कबूतर, सड़को पर बेहिसाब बिल्लियां, मोटी तगड़ी गिलहरियां, और झुंड में मिलते ये कैनेडियन गूज।

प्रकृति के मुखर प्रतिनिधि हैं जो यहां इंसानी बसाहट के साथ सामंजस्य बैठाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करते हैं

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 8 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 8 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

गांधी जयंती पर स्टेट लिबर्टी पार्क न्यू जर्सी में

9/11 मेमोरियल पर महात्मा गांधी विश्व में शांति और अहिंसा के आईकान के रूप में जाने जाते हैं। आज उनकी जयंती है । घर के निकट ही हडसन नदी के किनारे स्टेट लिबर्टी पार्क है, मात्र कोई एक किलोमीटर दूर । आज सुबह प्रकृति से मिलने यहीं चला आया ।

किंतु 9/11 मेमोरियल देख, पार्क में लकड़ी की बैंच पर बैठे हुए वैचारिक मुलाकात हो गई, सदी की उस वीभत्स आतंकी घटना से जिसने 93 देशों के लगभग 3000 निरपराध लोगों की जान ले ली थी । वर्ष 2001 की 11 सितंबर को सुबह लगभग 9 बजे, दो विमान 111 मंजिले वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से थोड़े अंतर से टकराए और ट्विन टावर ध्वस्त हो गए। गांधी के सिद्धांत सुबक रहे थे। आतंकी हंस रहे थे । आज भी नव दुर्गा निरंतर संहार कर रही हैं पर नए नए दैत्य क्रूर हंसी हंस रहे हैं।

ठंडी हवाये दुखते जख्म सहलाने की कोशिश कर रही है, सूरज इंसानियत के दुख में शामिल, नजरो से छिपा हुआ है।

मैं मौन श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं गांधी को और 9/11 मेमोरियल, न्यूजर्सी पार्क में बने मेमोरियल वाल पर अंकित हर नाम को जो संभावनाओं से भरा एक असमय मिटा दिया गया उपन्यास था ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

 

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 8 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 7 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

बिना दूधवाले की सुबह

हिंदुस्तान में हमारी सुबह सूरज की धूप की दस्तक के साथ ही पेपर वाले , दूधवाले , सब्जी वाले , कचरे वाले से शुरू होती हैं। पास के मंदिर से आती भजन की आवाजें आती हैं । फिर आती हैं बर्तन वाली , सफाई वाली , कपड़े वाली, खाना बनाने वाली , धोबी , पोस्टमैन , कुरियर, इन दिनों नए चलन में आन लाइन आर्डर के डिलीवरी बाय सहित , कभी रद्दी वाले , या गैस खत्म हो तो सिलेंडर वाला , या अन्य कोई न कोई हाकर को बुलाने की स्वैच्छिक छूट रहती ही है। कभी पिताजी से तो कभी बच्चों से या श्रीमती जी की किटी की फ्रेंड्स, मिलने मिलाने कोई न कोई आते ही रहता है । मतलब डोर बैल बजती ही रहती है।

इसके विपरीत यहां की सुबहे बिना बताए बिना शोर एकदम चुप्पे चाप हो रही हैं । सूरज भी बड़े लिहाज से ही पूरे पाश्चात्य सभ्य अंदाज में हेलो करते लगे ।

दूध के कैन फ्रिज में मौजूद , पेपर पास के स्टोर्स से लाना होगा, गार्बेज कलेक्शन ट्वाईस इन वीक , हाउस हेल्प है नहीं , डाक दरवाजे पर लगे मेल बाक्स में कब आ जाती है पता नहीं लगा । सब कुछ रोबोट सा ,शांत शांत , जिसकी अभी आदत नहीं ।

हां घूमने निकलो तो अपरिचितों से भी स्मित मुस्कान अवश्य मिलती है , जो बड़ी आश्वस्ति देती है, की हम इंसान हैं , रोबोट्स नहीं।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 7 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 7 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

ताकतवर ₹ है या $

इकानामिक्स भी पूरा राकेट साइंस है । जाने किन किन कारणों से करेंसी की क़ीमत कम ज्यादा हो जाती हैं, बजट आते ही शेयर का केंचुआ नीचे ऊपर होने लगता है ।

किसी शक्ति शाली देश की सरकार बदले तब तो दुनियां भर में अर्थशास्त्री अनुमान के गणितों की हेडलाइंस बनाते ही हैं। ब्रिटेन में उसी पार्टी की सरकार है, केवल प्रधान मंत्री बदले हैं, वहां की करेंसी पौंड्स £ के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य ही बदल गए । कभी लगभग 100 भारतीय रु का पाउंड पिछले दो चार दिनों से 87 रु का हो गया है। मतलब लगभग डालर की कीमत पर ।

बहरहाल मैं आम आदमी की दृष्टि से रुपए और डालर की ताकत समझना चाहता हूं। कल शाम मैं पत्नी के साथ कुछ सामान लाने जर्सी के एक एशियन मार्केट गया था। दो चार दिनों के लिए, तीन व्यक्तियों के उपयोग लायक फल सब्जियां और किचन के कुछ अन्य सामान खरीदे , तीन कैरी बैग में सामान आ गया । बिल बना लगभग 100 डालर । अर्थात कोई आठ हजार रुपए । इतने रुपयों के बिल से भारत में मैं ट्राली भरकर महीने भर का राशन ले आता हूं ।

हंसते हुए मैंने यह बात बेटे से कही , तो उसने कहा की आप करेंसी कनवर्ट करके सोचना बंद कर दीजिए अन्यथा जब दस डालर में एक प्लेट समोसे और कोक लेंगे या तीस चालीस डालर में सामान्य सा भोजन करेंगे तो आप परेशान हो जायेंगे ।

जेएफके एयरपोर्ट से जर्सी सिटी तक का टैक्सी का किराया 150 $ होता है अर्थात कोई बारह हजार रुपए , यात्रा कोई एक डेढ़ घंटे में पूरी होती है , वह भी तब जब यहां पेट्रोल सस्ता है , गैलन में मिलता है , महज लगभग 80 रु लीटर ।

अब आप ही तय करिए की आम आदमी के लिए रुपया ताकतवर हुआ या डालर ?

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 6 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 6 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

किताबें जिंदाबाद

आज सुबह ही यह फोटो खींची है ।

गूगल की त्वरित जानकारियों वाली सुविधा से पुस्तकालयों को लेकर हम सभी प्रायः चिंताएं व्यक्त करते हैं । ऐसे समय में अमेरिका जैसे देश में नए पुस्तकालय प्रारंभ होने की ऐसी सूचनाएं हम जैसे पुस्तक प्रेमियों के प्रसन्न होने का पर्याप्त कारण हैं ।

जो मजा किताब पढ़ने में आता है , वह लेपटॉप पर जानकारियों को निकालने से सर्वथा भिन्न होता है । किताबें सच्ची दोस्त होती हैं , वे चिंतन को दिशा देती हैं , संदर्भ बनती हैं और शाश्वत होती हैं ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 5 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 5 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

पवेलियन आन व्हील

महत्वपूर्ण बातें तो कई लोग करते हैं , किताबें तथा मीडिया पर बड़ी बातों पर खूब सी सामग्री सहजता से मिल जाती है, इसलिए मैं उन छोटी और इग्नोर्ड विषयों पर चर्चा कर रहा हूं जो हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। ऐसे अनेक छोटे छोटे मुद्दे हैं जो सुविधाओ तथा दूरियों के चलते भारत से भिन्नता रखते हैं, और उन्हें जानने समझने में आपकी रुचि हो सकती है। ऐसा ही एक विषय है खेलों में आम आदमी की अभिरुचि ।

सुबह घूमते हुए मैने देखा की आवासीय परिसर में ही सड़क किनारे बास्केट बाल का चेन लिंक से घिरा पक्का ग्राउंड भर नहीं है , पर्याप्त दर्शको के लिए एल्यूमिनियम का पवेलियन आन व्हील भी बनाया गया है। फोल्डिंग, फटाफट फिट स्टेडियम, इस प्रकार के चके पर चलते स्टेडियम अपने भारत में मेरे देखने में नहीं आए । इससे पता चलता है की खेलने वाले भी हैं, और उन्हें बकअप कर उत्साह बढ़ाने वाले भी हैं। समाज में व्याप्त यह जज्बा ही अंतराष्ट्रीय स्तर पर मेडल टेली में देश को ऊपर लाता है ।

हमारे देश के वर्तमान हालात के महज चंद खिलाड़ियों के विभिन्न खेलों के कैंप, टीम तो बना सकते हैं पर प्रत्येक खेल में क्रिकेट की तरह का जज्बा तभी पैदा हो सकता है जब सामाजिक प्रवृत्ति खेलने , खेलो में हिस्सेदारी की बने । यह हिस्सेदारी दर्शक की भूमिका से आयोजक प्रायोजक तक गांव शहर मोहल्लों में बने । इसके लिए ऐसे सहज पेवेलियन आन व्हील्स और मैदानो के इंफ्रा स्ट्रक्चर की आवश्यकता से आप भी सहमत होंगे।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 4 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

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जेट लेग…न्यू जर्सी

भारत से अमेरिका की यात्रा , मतलब हमारे बनाए गए समय के अनुसार जिंदगी के साढ़े दस घंटे दोबारा जीने का मौका होता है । टाइम जोन का परिवर्तन । पूर्व से पश्चिम की यात्रा । हिंदू तो सदैव पूर्व के उगते सूरज को नमन करते हैं किंतु चूंकि काबा मक्का मदीना भारत से पश्चिम की ओर है इसलिए हमारे जो मुस्लिम भाई भारत में पश्चिम दिशा को पवित्र मानते हैं , वे भी यहां आकर अपनी इबादत पूर्व की ओर ही नमन करके करते हैं, क्योंकि यहां से मक्का मदीना पूर्व दिशा में ही है।

दरअसल जेटलेग और कुछ नही प्रकृति के साथ शरीर का सामंजस्य बैठना ही है । यह एक मानसिक अवस्था है। खास तौर पर नींद के समय को प्रारंभिक कुछ दिन लोग जेट लेग की समस्या से परेशान रहते हैं । मैंने देखा है की जब अल्प समय के लिए मैंने टाइम जोन पार किया और कोई आवश्यक काम रहा तो दिमाग अलर्ट मोड पर आकर प्राथमिकता के अनुरूप नीद एडजस्ट कर लेता है । पर जब रिलेक्स मूड हो तो यह नींद रात रात रंग दिखाती है। मौसम का परिवर्तन आबोहवा में घुला होता है । नींद न आए तो विचार आ जाते हैं, यादो के पुलिंदे, समस्या और समाधान के बादल मंडराते हैं । अभी भी यहां जर्सी में नर्म बिस्तर पर उलट पलट रहा हूं, तो सोचा लिख ही डालूं जेट लेग पर । अपनी बाडी क्लाक को प्रकृति से मिलाकर रिसेट करने का श्रेष्ठ तरीका है सूरज, धूप, सुबह से दोस्ती । बस घुमने निकल पड़िए भुंसारे ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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