सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास कर रहे हैं। उनके सहयात्री  तथा गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा नर्मदा यात्रा संस्मरण उनके दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं। आज के ही अंक में उनके संस्मरण की दूसरी कड़ी प्रकाशित की गई है। निश्चित ही आपको नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इन पंक्तियों के लिखे जाते तक  यह यात्रा पूर्ण हो चुकी है। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण पर श्री सुरेश पटवा जी  के यात्रा संस्मरण की पांचवी एवं अंतिम कड़ी।  )  

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण # 5  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

☆ झाँसी घाट से सतधारा घाट ☆
(104  किलोमीटर) 

नर्मदा अमरकण्टक से निकलकर डिंडोरी-मंडला से आगे बढ़कर पहाड़ों को छोड़कर दो पर्वत शृंखलाओं दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में कैमोर से आते विंध्य के पहाड़ों के समानांतर दस से बीस किलोमीटर की औसत दूरी बनाकर अरब सागर की तरफ़ कहीं उछलती-कूदती, कहीं गांभीर्यता लिए हुए, कहीं पसर के और कहीं-कहीं सिकुड़ कर बहती है। उसके अलौकिक सौंदर्य और आँचल में स्निग्ध जीवन के स्पंदन की अनुभूति के लिए पैदल यात्रा पर निकलना भाग्यशाली को नसीब होता है।

यह यात्रा वानप्रस्थ के द्वारा सभ्रांत मोह से मुक्ति का अभ्यास भी है। जिस नश्वर संसार को एक दिन अचानक या रोगग्रस्त होकर छोड़ना है क्यों न उस मोह को धीरे-धीरे प्रकृति के बीच छोड़ना सीख लें और नर्मदा के तटों पर बिखरे अद्भुत प्राकृतिक जीवन सौंदर्य का अवलोकन भी करें।

पीछे टाँगने वाले  हल्के बैग में एक जींस या पैंट के साथ फ़ुल बाहों की तीन शर्ट एक जोड़ी पजामा कुर्ता, एक शाल, तोलिया और अंडरवेयर, साबुन तेल रखकर कर चले। वैसे तो आश्रम और धर्मशालाओं में भोजन की व्यवस्था हो  जाती है फिर भी रास्ते में ज़रूरत के लिए समुचित मात्रा में खजूर, भूनी मूँगफली, भुना चना और ड्राई फ़्रूट, पानी की बोतल और एक स्टील लोटा के साथ एक छोटा चाक़ू भी रख उतर पड़े समर में।

कहीं कुछ न मिले तो परिक्रमा वासियों का मूलमंत्र “करतल भिक्षु-तरुतल वास” भी आज़माना जीवन का एक विलक्षण अनुभव रहा।

 

हम सभी परिक्रमा वासियों में जगमोहन अग्रवाल सबसे वरिष्ठ हैं, लेकिन वे सबसे ज़्यादा मज़बूती और जूझारूपन से यात्रा में भाग लेते हैं। उनके पैरों में तकलीफ़ है इसलिए घुटने ज़मीन पर टेककर पंद्रह किलो का भार खड़े हो पाते हैं। अन्य शारीरिक दिक़्क़तों के बावजूद वे निरंतर यात्रा करते रहे। उन्होंने कभी भी नहीं कहा कि वे परेशानी में हैं, नर्मदा जी में उनकी उनकी आस्था प्रबल है। नरसिंहपुर जिले की गाड़रवाडा तहसील के कौंडिया ग्राम के मूल निवासी हैं। जहाँ कभी कौंड़िल्य ऋषि का आश्रम हुआ करता था। जीवंतता, जीवटता और जूझारूपन उनकी सबसे बड़ी पूँजी है।

नर्मदा परिक्रमा दुनिया की सबसे कठिन यात्राओं में से दुरुह यात्रा है। हिंदू हज़ारों सालों से इस यात्रा को करते आ रहे हैं। इस यात्रा के सामने डिस्कवरी चैनल की नक़ली साहसिक यात्राएँ कहीं नहीं लगतीं क्योंकि उनमें ड्रोन केमरा, सैटलायट इमेज, फ़ोटो ग्राफ़र दल और सपोर्ट के रूप में मेडिकल टीम वहाँ साथ चलते हैं, उनके पास बेहतरीन जीवन रक्षक दवाएँ और आकस्मिक जोखिम से निपटने के अस्त्र होते हैं।

नर्मदा यात्रा का कोई तैयार रास्ता नहीं होता क्योंकि प्रत्येक वर्ष नर्मदा के भीषण प्रवाह में सारे किनारे कट कर रास्तों को धो डालते हैं। नर्मदा तेज़ बहाव से कहीं किनारों को तोड़ डालती है, कहीं कँपा छोड़ जाती है, कहीं किसान कछारी खेतों को बखर कर पैदल चलना दूभर कर देते हैं, कहीं स्प्रिंकलर की सिंचाई के कारण कीचड़ से से सने खेतों में क़दम रखने से ऐडी तक पैर गंपते हैं, कहीं नुकीली धारदार पहाड़ी पर चलना ठीक वैसा ही है जैसे खड़ी दीवार पर छिपकली जैसे पैर जमाकर खिसकना, कहीं पहाड़ी नालों की गहराई को फिसल कर पार करना।

उस पर भोजन और ठहरने की व्यवस्था का कोई ठिकाना नहीं, ऐसी विषम परिस्थितियों में नौ दिनों में 104 किलोमीटर की पदयात्रा सारा अहंकार तोड़ कर रख देती है। इसके सामने यूथ होस्टल की ट्रैकिंग बच्चों का मन बहलाव है।

1,65,181 क़दम की यात्रा के दौरान जिन आश्रमों और उनके स्वामियों संचालकों के आश्रय और भोजन दिया वे साधुवाद के पात्र हैं।

 

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments