डॉ . प्रदीप शशांक 

 

(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा प्रस्तुत यह लघुकथा  भी वर्तमान सामाजिक परिवेश के ताने बाने पर आधारित है। डॉ प्रदीप जी की शब्द चयन एवं सांकेतिक शैली  मौलिक है। )

 

☆ भेड़िया ☆

 

वह नियमित रूप से भगवान के पूजन अर्चन हेतु  मंदिर जाती थी । वैधव्य के अकेलेपन को वह भगवान के चरणों मे बैठकर दूर करने का प्रयास करती ।

कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि पुजारी उस पर ज्यादा ही मेहरबानी दिखा रहा है ।

एक दिन पुजारी ने उसके हाथ से पूजा की थाली लेते हुए कहा — ” शाम को हमारे निवास पर सत्संग का कार्यक्रम है , आप अवश्य पधारें । ”

उसने विनम्रता से पुजारी से कहा — ”  मैं अवश्य आती यदि आपकी आंखों में मुझे वासना की जगह वात्सल्य नजर आता । तुम भेड़िया हो सकते हो किन्तु में भेड़ नहीँ हूँ ।  ” वह मंदिर से लौटते हुए सोच रही थी कि भगवान ने हम महिलाओं को पुरुषों की नजर पढ़ने की

विशेष क्षमता दी है, फिर भी महिलाएं इन वहशियों के जाल में कैसे फँस जाती हैं?

 

© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णपुरम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,म .प्र . 482002

 

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डॉ भावना शुक्ल

वाह अदभुत