डा. मुक्ता

शहादत

(डा. मुक्ता जी का e-abhivyakti में स्वागत है। आप हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है एक सामयिक एवं सार्थक कविता ‘शहादत’)

 

आज मन बहुत हैरान-परेशान सा है

दिल में उठ रहा तूफ़ान-सा है

हर इंसान पशेमा-सा है

क्यों हमारे राजनेताओं का खून नहीं खौलता

पचास सैनिकों की शहादत को देख

उनका सीना फट क्यों नहीं जाता

 

कितने संवेदनहीन हो गए हैं हम

चार दिन तक शोक मनाते

कैंडल मार्च निकालते,रोष जताते

इसके बाद उसी जहान में लौट जाते

भुला देते सैनिकों की शहादत

राजनेता अपनी रोटियां सेकने में

मदमस्त हो जाते

सत्ता हथियाने के लिए

विभिन्न षड्यंत्रों में लिप्त

नए-नए हथकंडे अपनाते

 

काश हम समझ पाते

उन शहीदों के परिवारों की मर्मांतक पीड़ा

अंतहीन दर्द, एकांत की त्रासदी

जिसे झेलते-झेलते परिवार-जन टूट जाते

हम देख पाते उनके नेत्रों से बहते अजस्र आंसू

पापा की इंतज़ार में रोते-बिलखते बच्चे

दीवारों से सर टकराती पत्नी

आगामी आपदाओं से चिंतित माता-पिता

जिनके जीवन में छा गया है गहन अंधकार

जो काले नाग की भांति फन फैलाये

उनको डसने को हरदम तत्पर

 

दु:ख होता है यह देख कर

जब हमारे द्वारा चुने हुये नुमाइंदे

सत्ता पर काबिज़ रहने के लिए

नित नए हथकंडे अपनाते,

शवों को देख घड़ियाली आंसू बहाते,सहानुभूति जताते

सब्ज़बाग दिखलाते,बड़े-बड़े दावे करते

परंतु स्वार्थ साधने हित,पेंतरा बदल,घात लगाते

 

© डा. मुक्ता,

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत,drmukta51 @gmail.com

 

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