श्री वसंत काशीकर

(परसाई स्मृति” के लिए अपने संस्मरण /आलेख ई-अभिव्यक्ति  के पाठकों से साझा करने के लिए  संस्कारधानी  जबलपुर के वरिष्ठ  नाट्यकर्मी  श्री वसंत काशीकर जी  का हृदय से आभार।  आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं श्री काशीकर जी द्वारा परसाई जी की  रचना  का नाट्य रूपान्तरण  “सदाचार का  तावीज “।)

 

✍  नाटक – सदाचार का तावीज  ✍

 

सूत्रधार – एक राज्य में बहुत भ्रष्टाचार था, जनता में बहुत ज्यादा विरोध था। लोग हलाकान थे। समझ में नही आ रहा था कि भ्रष्टाचारियों के साथ क्या सलूक किया जाये। बात राजा के पास पहुंची।

(लोग राज दरबार को दृश्य बनाते है)

राजा- (दरबारियों से) प्रजा बहुत हल्ला मचा रही है कि सब जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है। हमें तो आज तक कहीं दिखा। तुम्हें कहीं दिखा हो तो बताओ।

दरबारी- जब हुजूर को नही दिखा तो हमें कैसे दिख सकता है।

राजा- नहीं ऐसा नहीं है। कभी-कभी जो मुझे नही दिखता तुम्हें दिखता होगा। जैसे मुझे कभी बुरे सपने नही दिखते पर तुम्हें दिखते होंगे।

दरबारी- जी, दिखते हैं। पर वह सपनों की बात है।

राजा – फिर भी तुम लोग सारे रज्य में ढूंढकर देखो कि कहीं भ्रष्टाचार तो नहीं हैं। अगर कहीं मिल जाये तो हमारे देखने के लिए नमूना लेते आना। हम भी देखंे कि कैसा होता है।

दरबारी- महाराज वह हमें नही दिखेगा। सुना है वह बहुत बारीक होता है। हमारी आंखें आपकी विरारता देखने की इतनी आदी हो गयी है कि हमें बारीक चीज दिखती ही नही है

हमें भ्रष्टाचार दिखा भी तो उसमें हमें आपकी छबि दिखेगी, क्योकि हमारी आंखों में तो आपकी सूरत बसी है।

दरबारी 2 महाराज अपने राज्य में एक जाति है। जिसे विशेषज्ञ कहते है। इस जाति के पास ऐसा अंजन होता है कि वे उसे आंखों में आंजकर बारीक से बारीक चीज़ भी देख लेते हैं।

दरबारी 3 हां महाराज! हमारा निवेदन है क इन विशेषज्ञों को ही हुजूर भ्रष्टाचार ढूंढने का काम सौंपें।

राजा- ठीक है हमारे सामने ऐसे विशेषज्ञ जाति के आदमी हाजिर किये जाये।

सभी (मुनादी जैसे) – विशेषज्ञ हाजिर हो….

पांच लोग विशेषज्ञ बनकर आते है, उन्हे एक आदमी जानवरों जेसा हांककर लाता है

आदमी- महाराज ये इस राज्य के पांच विशेषज्ञ हैं।

राजा- सुना है, हमारे राज्य में भ्रष्टाचार है, पर वह कहां है, यह पता नही चलता। अगर तिल जाये तो पकड़कर हमारे पास ले आना।

सूत्रधार- विशेषज्ञों ने उसी दिन से पूरे राज्य में छानबीन शुरू कर दी। और दो महीने बाद फिर से दरबार में हाजिर हुए।(दरबार का दृश्य)

राजा- विशेषज्ञों तुम्हारी जांच पूरी हो गई ?

विशेषज्ञ- जी सरकार ।

राजा- क्या तुम्हें भ्रष्टाचार मिला ?

विशेषज्ञ- जी बहुत सारा मिला।

राजा- (हाथ बढाते हुए) – लाओ, मुझे बताओ। देखूं कैसा होता है

विशेषज्ञ 1 हुजूर, वह हाथ की पकड़ में नही आता। वदस्थूल देखा नही जा सकता, अनुभव किया जा सकता है।

राजा– (सोचते हुए टहल रहे है)-विशेषज्ञों तुम लोग कहते हो वह सूक्ष्म है, अगोचर है और सर्वव्यापी है। ये गुण तो ईश्वर के है। तो क्या भ्रष्टाचार ईश्वर हैं ?

विशेषज्ञ (सभी) – हां महाराज, अब भ्रष्टाचार ईश्वर हो गया है।

दरबारी 1- पर वह है कहां ? कैसे अनुभव होता है।

विशेषज्ञ – वह सर्वत्र है। इस भवन में है। महाराज के सिंहासन में है।

राजा- सिंहासन में…- कहकर उछलकर दूर खडे़ हो गये।

विशेषज्ञ- हां सरकार सिंहासन में है। पिछले माह इस सिंहासन पर रंग करने के जिस बिल का भुगतान किया गया है, वह बिल झूठा है। वह वास्तव से दुगने दाम का है। आधा पैसा बीच वाले खा गये । आपके पूरे शासन में भ्रष्टाचार है और वह मुख्यतः घूस के रूप में है।

            (सभी दरबारी एक दूसरे से काना फूंसी करते है,राजा चिंतित है।)

राजा- यह तो बड़भ् चिंता की बात है। हम भ्रष्टाचार बिल्कुल मिटाना चाहते है। विशेषज्ञों क्या तुम बता सकते हो कि वह कैसे मिट सकता है ?

विशेषज्ञ- हां महाराज, हमने उसकी योजना तैयार की है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए महाराज को वर्तमान व्यवस्था में बहुत से परिवर्तन करने होंगे। भ्रष्टाचार के मौके ही मिटाने होगें। जैसे ठेका है तो ठेकेदार है, ठेकेदार है तो अधिकारियों की घूस हैं। यदि ठेका मिट जाये तो उसकी घूस मिट जायेगी। इसी तरह बहुत सी चीजें है जिन कारणों से आदमी घूस लेता है, उस पर विचार करना होगा।

राजा- अच्छा आप लोग अपनी पूरी योजनाऐं रख जाये। हम और हमारा दरबार उस पर विचार करेंगे

            (दरबार का दृश्य समाप्त, विशेषज्ञ चले गये)

सूत्रधार- राजा और दरबारियों ने भ्रष्टाचार मिटाने की योजना को पढ़ा। उस पर विचार करते दिन बीतने लगे और राजा का स्वास्थ बिगड़ने लगा। एक दिन एक दरबारी ने राजा से कहा…

दरबारी 1- महाराज चिंता के कारण आपका स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा है। उन विशेषज्ञों ने आपको झंझट में डाल दिया है।

राजा-  हां मुझे रात को नींद नही आती।

दरबारी 2- ऐसी रिपोर्ट को आग के हवाले कर देना चाहिऐ जिसके कारण महाराज की रातों की नींद में खलल पड़ा है।

राजा-  पर करें क्या ? तुम लोगो ने भी तों भ्रष्टाचार मिटाने की योजना का अध्ययन किया है। तुम लोगो का मत है क्या ? उसे काम में लाना चाहिए।

दरबारी 3- महाराज यह योजना क्या है, एक मुसीबत है। उसके अनुसार कितने उलटफेर करने पडेंगे। कितनी परेशानी होगी। सारी व्यवस्था उलट-पुलट हो जायेगी।

दरबारी 4- जो चला आ रहा है, उसे बदलने से नई-नई कठिनाईयां पैदा हो सकती है।

दरबारी 1- हमें तो कुछ ऐसी तरकीब चाहिए जिससे बिना कुछ उलटफेर किये भष्टाचार मिट जाये।

राजा- मैं भी यह चाहता हूं पर हो कैसे ? हमारे प्रपितामाह को तो जादू आता था, हमें तो वह भी नही आता। तुम लोग ही कोई उपाय खोजो।

            (दरबार का सीन विलोप)

सूत्रधार- सभी दरबारी अलग-अलग दिशाओं में चल पडे़ पूरे राज्य का सरकारी दौरा किया। बिना भ्रष्टाचार में लिप्त हुए पूरा राज्य घूमा। स्थितियों का जायजा लिया। और उपाय खोजते रहे। आखिर उपाय मिल गया। उन्होने एक दिन दरबार में राजा के सामने एक साधु को पेश किया।

            (दरबार का दृश्य)

दरबारी 1- महाराज ‘‘एक कन्दरा में तपस्या करते हुए हमने इन महान साधक को देखा, ये चमत्कारी है। इन्होनें एक सदाचार का ताबीज बनाया है। वह मंत्रों से सिद्ध है, इसे पहनते ही आदमी एकदम सदाचारी हो जाता है।

(साधु ने अपने झोले से तबीज निकालकर राजा को दिया)

राजा- हे साधु, इस ताबीज के बारे मंे मुझे विस्तार से बताओ। इससे आदमी सदाचारी कैसे हो जाता है ?

साधु- महाराज, भ्रष्टाचार और सदाचार मनुष्य की आत्मा में होता हैं, बाहर से नही होता। विधाता जब मनुष्य को बनाता है तब किसी की आम्ता में ईमान की कला फिट कर देता है और किसी की आत्मा में बेईमानी की। इस कला में से इमान या बेईमानी के स्वर निकलते है, जिन्हे ‘‘आत्मा की पुकार‘‘ कहतेह है आत्मा की पुकार के अनुसार ही आदमी काम करता है।

राजा- जिनकी आत्मा से बेईमानी के स्वरे निकलते है उनसे कैसे ईमान के स्वर निकाले जायेंगे।

साधु- यही मूल प्रश्न है। मै कई वर्षो से इसी के चिंतन में लगा हूं। अभी मैने यह सदाचार का ताबीज़ बनाया है। जिस आदमी की भुजा पर यह बंधा होगा वह सदाचारी हो जायेगा। मैंने कुत्ते पर भी प्रयोग किया है। यह ताबीज गले में बांध देने से कुत्ता भी रोटी नही चुराता।

            (राजा और दरबारी आश्चर्य चकित हैं)

राजा- और कुछ कुछ बताईये इस ताबीज़ के विषय में। इससे तो राज्य में चमत्कार हो जायेगा, ईमान की गंगा बह निकलेगी।

दरवारह कुछ और बताईए साधु जी ?

साधु- बात यह है कि इस ताबीज़ मे भी सदाचार के स्वर निकलते है। जब किसी की आत्मा बेईमानी के स्वर निकलने लगती है तब इस ताबीज़ की शक्ति आत्मा को गला घोंट देती है और आदमी को ताबीज़ के ईमान के स्वर सुनाई पड़ते है। वह इन स्वरों को आत्मा का स्वर समझकर सदाचार की ओर प्रेरित होता है। यही इस ताबीज का गुण है महाराज।

दरबारी- धन्य हो साधु महाराज।

राजा- मुझे नही मालूम था मेरे राज्य में ऐसे चमत्कारी साधु भी है। हम आपके आभारी हैं। आपने हमारा संकट दूर किया। हम सर्वव्यापी भ्रष्टाचार से परेशान थे। मगर हमें करोड़ो की संख्या में ताबीज चाहिए।

हम राज्य की ओर से ताबीज़ो का एक कारखाना खोल देते है, आप उसके जनरल मैनेजर होगे और आपकी देखरेख में ताबीज़ बनाये जायें।

दरबारी 1- महाराज, राज्य क्यों संकट में पडे़ ? मेरा तो निवेदन है कि इसका ठेका साधु बाबा को दे दिया जाय।

दरबारी 2 हमारा सुझाव है कि साधुबाबा को हरिद्वार में सौ दो सौ एकड़ जमीन दे दी जाय एवं फैक्ट्री खोलने के लिए सरकारी मदद। हरिद्वार पवित्र भूमि है, गंगा किनारे लगी फैक्ट्री से पवित्र सदाचार के ताबीज बनेगें।

राजा – सुझाव मंजूर है। इस पर शीघ्र अमल किया जावे।

            (दरबार समाप्त)

सूत्रधार- सरकार की अनुदान योजना के अंतर्गत साधु बाबा हरिद्वार में ताबीज़ बनाने का कारखाना खुल गया। दो सौ करोड़ रूपये तबीज़ सप्लाई करने बतौर पेशगी राजा ने बाबा को दिये। राज्य के अखबारों में खबर आ गई । भ्रष्टाचारियों को चिंता सताने लगी। लाखों ताबीज़ बन गये। हर कर्मचारी की भुजा में सदाचार का ताबीज़ बांध दिया गया।

भ्रष्टाचार की समस्या का ऐसा हल निकल जाने से राजा और दरबारी खुश थे।

एक दिन राजा की उत्सुकता जागी और उन्होंने सोचा पता लगाया जाये सदाचार का ताबीज़ कैसे काम कर रहा है। वह वेश बदलकर एक कार्यालय पहुचें। जिस दिन पहुंचे महिने की दो तारीख थी।

राजा (एक कर्मचारी के पास) – मुझे जाति प्रमाण पत्र बनवाना है। (उसे सौ रूपये का नोट ेने लगता है)

कर्मचारी- भाग जा यहां से। घूस लेना पाप है।

            राजा खुश होकर चला जाता है – दृश्य लोप

सूत्रधार- राजा बहुत खुश हुए। कुछ दिन बाद राजा फिर वेश बदलकर उसी कर्मचारी पास उसी दफतर में गये उस दिन महिने का आखिरि दिन 31 तारीख थी।

            (कार्यालय का दृश्य)

राजा-  मुझे जाति प्रमाण पत्र बनवाना है। (सौ रूपये का नोट देता है ) कर्मचारी नोट लेकर अपनी जेब में रख लेता है,

राजा (कर्मचारी का हाथ पकड़ते हुए) – मै तम्हारा राजा हूं। क्या तुम आ सदाचार का ताबीज बांधकर नहीं आये।

कर्मचारी- बांधा है सरकार ये देखिये (अस्तीन चढ़ाकर दिखाता है)

सूत्रधार- राजा असमंजस में पड़ गये, सोचने लगे ताबीज़ पहनने के बाद भी ऐसा कैसे हुआ ? क्या ताबीज़ का असर कम हो गया है। राजा ने ताबीज़ पर कान लगाया और सुना –

(सभी कलाकार एक विशेष फार्मेशन में राजा कर्मचारी के ताबीज़ के ऊपर कान लगाये है)

आवाज- (एक साथ) अरे आज इक्कतीस तारीख है, आज तो ले ले …

 

गीत – भरत व्यास

 

मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम

नेकी पर चलें और बदी से डरें

ताकी हंसते हुए निकले दम

ऐ मालिक तेरे बंदे हम …

बड़ा कमजोर है आदमी, अभी लाखों है इसमें कमी

पर तू जो खड़ा, है दयालु बड़ा, तेरी कृपा से धरती थमी

दिया तूने हमें जब जनम, तू ही झेलेगा हम सब के गम

नेकी पर चले और बदी से डरे, ताकि हंसते हुए निकले दम

ऐ मालिक तेरे बंदे हम….

 

© वसंत काशीकर 

जबलपुर, मध्यप्रदेश

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Vijay Tiwari "Kislay"

वाह,
क्या बात है।
सार्थक नाटक।
आभार आदरणीय वसंत जी
– किसलय