श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – काला पानी ?

सुख-दुख में

समरसता,

हर्ष-शोक में

आत्मीयता,

उपलब्धि में

साझा उल्लास,

विपदा में

हाथ को हाथ,

जैसी कसौटियों पर

कसते थे रिश्ते,

परम्पराओं में

बसते थे रिश्ते,

संकीर्णता के झंझावात ने

उड़ा दी सम्बंधों की धज्जियाँ,

रौंद दिये सारे मानक,

गहरे गाड़कर अपनापन

घोषित कर दिया

उस टुकड़े को बंजर..,

अब-

कुछ तेरा, कुछ मेरा,

स्वार्थ, लाभ,

गिव एंड टेक की

तुला पर तौले जाते हैं रिश्ते..,

सुनो रिश्तों के सौदागरो!

सुनो रिश्तों के ग्राहको!

मैं सिरे से ठुकराता हूँ

तुम्हारा तराजू,

नकारता हूँ

तौलने की

तुम्हारी व्यवस्था,

और स्वेच्छा से

स्वीकार करता हूँ

काला पानी

कथित बंजर भूमि पर,

तुम्हारी आँखों की रतौंध

देख नहीं पायी जिसकी

सदापुष्पी कोख…,

जब थक जाओ

अपने काइयाँपन से,

मारे-मारे फिरो

अपनी ही व्यवस्था में,

तुम्हारे लिए

सुरक्षित रहेगा एक ठौर,

बेझिझक चले आना

इस बंजर की ओर,

सुनो साथी!

कृत्रिम जी लो

चाहे जितना,

खोखलेपन की साँस

अंतत: उखड़ती है,

मृत्यु तो सच्ची ही

अच्छी लगती है..!

 

©  संजय भारद्वाज

प्रातः 10:16 बजे, 10 जुलाई 2021

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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अलका अग्रवाल

अप्रतिम अभिव्यक्ति। कड़वी सच्चाई।