डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं।  आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर लघुकथा ‘बीमा पॉलिसी’।  यह सच है कि हम बीमा पालिसी के साथ ही सपने खरीद लेते हैं। उम्र के एक पड़ाव पर पहुँच कर खरीदे गए सपनों का गणित ही बदलता महसूस होता है।  एक बेहद सार्थक लघुकथा। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इसअतिसुन्दर लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 58 ☆

☆  लघुकथा – बीमा पॉलिसी

तिवारी जी डाइनिंग टेबिल पर इंकम टैक्स के पेपर फैलाए मन ही मन कुछ बडबडा रहे थे – हर साल का खटराग है बीमा पॉलिसी के पैसे भरो, हाउसिंग लोन के कागज दो और भी ना जाने क्या –क्या। पता नहीं क्या बचता है क्या नहीं – बहुत झुंझलाहट आ रही थी आज उन्हें, क्यों और किस पर ये उन्हें भी नहीं पता। बीमा कंपनियां भी, जिंदा रहते कुछ नहीं देती, स्वर्ग सिधारने  के बाद ही ज्यादा मिलेगा। जीवन भर घिसटते रहो, छोटी छोटी इच्छाओं को मारते रहो और पैसे भरते रहो, बस यह सोचकर कि कुछ हुआ तो बीमा पॉलिसी नैया पार लगा देगी। उन्हें बीमा एजेंट की बात याद आ रही थी – आपकी लाईफ सिक्योर है, सब ठीक ठाक चलता रहा तो बढिया है। अगर आपको कुछ हो जाता है तो पचास लाख आपकी पत्नी और बच्चों को मिल जाएगा। पता नहीं क्यों उन्हें एक झटका- सा लगा था यह सुनकर।

क्या बोल रहे हो अकेले में, सठिया रहे हो क्या, रिटायर होने में तो समय है अभी – पत्नी चाय बनाते हुए अपने व्यंग्य पर मुस्कुरा रही थी। तिवारी जी चिढ गये पर संभलकर बोले –  कुछ नहीं ये बीमा पॉलिसी के कागज देख रहा था – इसके हिसाब से तो कई साल पैसे भरना है, पॉलिसी  मैच्योर होने से पहले मैं चल बसा तो तुम लोगों को पचास लाख मिलेगा, वरना भरे हुए पैसे भी नहीं मिलेंगे। सोच रहा हूँ इसे बंद करवा दूँ, क्यों बेकार में तीन– चार लाख भरूँ, किसी और काम आएंगे – धीरे से बोले। काहे बंद करवा दो ? तीन – चार लाख के लिए तुम पचास लाख छोड रहे हो ? तुम्हारे बाद हमें और बच्चों को पैसा मिलेगा तो कुछ बुरा है क्या ? आडे वक्त में काम आएगा उनके। वे सकपका गए – नहीं – नहीं, अच्छा ही होगा। पत्नी जी पता नहीं समझी कि नहीं, पर तिवारी जी सोच रहे थे पचास लाख के लिए पॉलिसी मैच्योर होने से पहले ही स्वर्ग सिधारना पडेगा क्या?

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Chetan Raweliya

आज का सच है यह। अप्रतिम।

Prof.sonal Hardas

Bhut sunder mamdam ji

प्रा.सु.मो.शाह