सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा कोहरे के आँचल में लिखी हुई एक  अतिसुन्दर भावप्रवण कविता  “रेत सी यादें …..!!”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 28 ☆

☆ रेत सी यादें …..!!

यादें लौट आती हैं

याद आने को,

आँसू बहा जाती हैं

सूख जाने को।

 

दिल को तार-तार करके

लौट जाती हैं,

कितने ही भेद खोल

करके जाती हैं ।

 

समंदर किनारे रेत का

घर तोड़ जाती हैं,

लहरें बनकर आती हैं

टकरा जाती हैं ।

 

ऊँगली से लिखे शब्द को

मिटा जाती हैं,

हाथों से बने दिल को

छेद जाती हैं ।

 

यादें रेत से सरकती

जाती हैं,

बीते लम्हों की बातें

सताकर जाती हैं ।

 

© सुजाता काले

पंचगनी, महाराष्ट्रा।

9975577684

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