डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  एक भावुक एवं विचारणीय लघुकथा  “बहुमूल्य। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 79 – साहित्य निकुंज ☆

लघुकथा – बहुमूल्य

मैं रोज घर से निकलते समय गाय की रोटी ले जाती और गेट के कोने में रख देती। कभी -कभी रात का बचा खाना भी रख देते।  सोचते चलो गाय के पेट में चला जायेगा। एक दिन  मैं अपना चश्मा घर पर ही भूल गई। आगे जाकर याद आया। वापस लौटी तो क्या देखती हूँ ?  5 – 6 साल के दो बच्चे मेरा रखा खाना उठा रहे थे। जैसे ही मुझे देखा तो छुपाने लगे । मैंने कहा..” क्या बात है बच्चों? आप लोग ये क्या कर रहे हैं ?”

तब लड़की बोली…” आंटी आप जो खाना रोज रख जाती है, हम लोग उठाकर ले जाते हैं। हमारे पिता को दिखता नहीं है। पिता की तबीयत भी ठीक नहीं रहती। हम रोज आपके आने का इंतजार करते हैं। जिस दिन आप नहीं आती हम लोग भूखे रह जाते है।

उनकी बातें सुनकर आंख से आंसू निकल पड़े। हम सोच में पड़ गए। बचा हुआ खाना कितना बहुमूल्य है?

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Hemant Bawankar

अत्यंत भावुक रचना ??