डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है बाल मनोविज्ञान पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा मासूमियत। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस संवेदनशील एवं विचारणीय लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 72 ☆

☆ लघुकथा – मासूमियत ☆

सुनीता  पेट से है, आठवां महीना चल रहा है अब एक साथ सारा काम नहीं होता उससे, सुस्ताती फिर काम में लग जाती।  मालकिन ने कहा भी  कि नहीं होता तो काम छोड दे, पैसा नहीं काटेंगी, पर सुनीता  को डर है कि बच्चा होने के बाद काम ना मिला तो क्या करेगी? दो लडकियां हैं, एक तीन साल की दूसरी पाँच साल की, तीसरा आनेवाला है। घर कैसे चलाएगी वह? मालकिन दिलदार है, उसके खाने – पीने का बहुत ध्यान रखती है इसलिए इसी घर का काम रखा है, बाकी छोड दिए हैं।

काम निपटाने के बाद सुनीता और उसकी लडकियां एक तरफ बैठ गईं। बडकी बोली – अम्मां ! सब काम होय गवा, अब  भाभी दैहें ना हम लोगन का अच्छा – अच्छा खाए का? भाभी रोज बहुत अच्छा खाना खिलावत हैं ,सच्ची  –।  छुटकी बिटिया की नजर तो रसोई से हटी ही नहीं बल्कि बीच – बीच में होंठों पर जीभ भी फिरा लेती । मालकिन ने एक ही थाली में भरपूर भोजन उन तीनों के लिए परोस दिया। दोनों बच्चियां तो इंतजार कर ही रही थीं तुरंत खाने में मगन हो गईं । खाना देकर मालकिन ने सुनीता से पूछा – नवां महीना  पूरा होने को है, कब से छुट्टी ले रही हो तुम? सुनीता कुछ बोले इससे पहले उसकी पाँच साल की बडकी सिर नीचे झुकाए खाना खाते – खाते जल्दी से  बोली ‌- भाभी ! ऐसा करा अम्मां को रहे दें,  हम तोहार सब काम कर देब – झाडू, पोंछा, बर्तन —जो कहबो तुम — –। बस काम छोडे को ना कहैं।

सब खिलखिलाकर हँस पडे, बचपन रो रहा था।

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
4 2 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments