श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  लघुकथा  “नेताजी के अरमान।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 100 ☆

☆ लघुकथा — नेताजी के अरमान ☆ 

नेता ने अपने पास बैठते ही ठेकेदार से कहा, “आजकल बहुत बड़े ठेकेदार बन गए हो। सुना हैं जिसका ठेका मिला है उसे बिना उद्घाटन भी चालू करवाना चाहते हो।”

“जी वह ऐसा है कि….”

“हां, जानता हूं। कोई न कोई बहाना बना कर पैसा बचाना चाहते हो? सोचते हो कि उद्घाटन में जितना पैसा खर्च होगा, उतने में दूसरा अन्य काम कर लोगे? यही ना?”

“नहीं, नेताजी ऐसी बात नहीं है. मैं उद्घाटन तो करना चाहता हूं, मगर, समझ में नहीं आ रहा है कि….”

“समझना क्या है। अच्छासा कार्यक्रम रखो। लोगों को बुलाओ। हम वहां अपने चुनाव का प्रचार भी कर लेंगे और तुम्हारे कार्य का अच्छा आरम्भ भी हो जाएगा।”

“मगर, मैं नहीं चाहता कि उसका उद्घाटन हो।” ठेकेदार अपने कागज पर कुछ हिसाब लिखते हुए बोला, “आप को कुछ पैसा देना था?”

“लेना देना चलता रहेगा। आपको दूसरा ठेका भी मिल जाएगा। मगर इस ठेके का क्या हुआ, जो आपने सीधे-सीधे कार्यालय से ले लिया था। जिसकी भनक तक हमें लगने नहीं दी। मगर इस बार चुनाव है। हम आपका पीछा नहीं छोड़ेंगे। इसका उद्घाटन बड़े धूमधाम से करवाएंगे।”

“हम इसका उद्घाटन नहीं कर सकते हैं नेताजी,” ठेकेदार ने नेताजी की जिद से घबराकर नेताजी को समझाना चाहा। लेकिन नेताजी सुनने के मूड में नहीं थे।

यह सुनते ही नेताजी को गुस्सा आ गया, “जानते हो तुम, हमारे साथ रहकर ठेकेदारी करना सीखे हो। हमारा साथ रहेगा तभी आगे बढ़ पाओगे। फिर इसका उद्घाटन धूमधाम से क्यों नहीं करवाना चाहते हो? या हमारा प्रचार करने में कोई दिक्कत हो रही है?”

“जी नहीं, नेताजी। हम आपके साथ हैं। मगर आप जानते हो हमने किसका ठेका लिया है? जिसका आप धूमधाम से उद्घाटन करना चाहते हो,” ठेकेदार ने सीधे खड़े होकर कहा, “वह श्मशान घाट के अग्निदाह के कमरे का ठेका था। वहाँ किसका उद्घाटन करके भाषण दीजिएगा?”

यह सुनते ही नेताजी को साँप सूँघ गया और उन्हें अपनी मनोकामना की लाश अग्निदाह वाले कमरे में जलती नजर आने लगी।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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