श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री शक्ति को समर्पित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष लघुकथा  “*लिहाफ *”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 116 ☆

? अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष – लिहाफ ?

आज महिला दिवस पर सम्मान समारोह चल रहा था। सभी गणमान्य व्यक्ति वहां उपस्थित थे। दहेज प्रथा का विरोध कर अपने जीवन में आगे बढ़ कर एक सशक्त मुकाम पर अपनी जगह बनाने के लिए, जिस महिला को बुलाया गया था। आज उन्हीं का सम्मान होना है।

सभी उन्हीं का इंतजार कर रहे थे। मंच पर बैठे गांव के दीवान साहब भी अपने मूछों पर ताव रखते हुए अपने धर्म पत्नी के साथ सफेद लिहाफ ओढ़े सफेद कपड़ों में चमक रहे थे।

निश्चित समय पर महिला अधिकारी आई और धीरे से कदम बढ़ाते मंच की ओर जाने लगी। तालियों से स्वागत होने लगा। परंतु दीवन की आंखें अब ऊपर की बजाय नीचे गड़ी  जा रही थी क्योंकि उन्हें अंदाज और आभास भी नहीं था कि दहेज प्रथा का इतना बड़ा इनाम  बरसों बाद आज उन्हें मिलेगा।

साथ साथ दोनों पढ़ते थे। सुहानी और दीवान तरंग। विवाह तक जा पहुंचे थे। घर के दबाव और दहेज मांग के कारण सुहानी को छोड़कर कहीं और जहां पर अधिक दान दहेज मिला वहीं पर शादी कर लिया तरंग ने।

सुहानी ने बहुत मेहनत की ठान लिया कि आज से वह उस दिन का ही इंतजार करेगी। जिस दिन गांव के सामने वह बता सके वह भी नारी शक्ति का एक रूप है। दहेज पर न आकां जाए। आज वह दिन था माइक पकड़कर सुहानी ने सभी का अभिवादन स्वीकार किया।

अपना भाषण समाप्त करने के पहले बोली.. आप जो सफेद लिहाफ के दीवान साहब को देख रहे हैं उन्हीं की कृपा दृष्टि से मैं यह मुकाम हासिल कर सकी। समझते देर न लगी नागरिकों को। शुरू हो गए अच्छा तो यह वह सफेद लिहाफ है जिसके कारण हमारी मैडम ने अपनी सारी जिंदगी दहेज विरोध के लिए समर्पित किया है।

मंच पर भी बातें होने लगी। अपना सफेद लिहाफ ओढ़े दीवान उठकर जा भी नहीं सकते थे। नारी शक्ति का सम्मान जो करना था।

परंतु बाजू में बैठी धर्मपत्नी ने अपने पतिदेव को बड़ी बड़ी आंखों से देखा और जोर जोर से ताली बजाने लगी। शायद यह तालियां दीवान साहब के झूठे लिहाफ के लिए थीं।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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